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कर्नाटक के सोलिगा आदिवासी प्रशासन से नाराज, चुनाव बहिष्कार की दी धमकी

कर्नाटक (Tribes of Karnataka) के चामराजनगर ज़िला (Chamarajanagar District) सोलिगा आदिवासियों (Soliga Tribes) का घर है. जिला प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक यहां कुल 23,182 सोलिगा आदिवासी रहते हैं.

सोलिगा आदिवासी के अलावा यहां कदुकुरूबा और जेनुकरूबा आदिवासी समुदाय भी रहते हैं.

2022 में वन विभाग ने सोलिगा समुदायों का सर्वेक्षण करने की बात कही थी ताकि उनकी जनसंख्या और जरूरतों का अनुमान लगाया जा सके.

इसके साथ ही आदिवासियों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले. लेकिन इसका परिणाम कुछ नहीं निकला.

यह आदिवासी अभी भी अपनी मूलभूत सुविधाओं की मांग कर रहे हैं. अपनी मांग की पूर्ति के लिए पहले महज़ 60 परिवार ही विरोध (Tribal protest) कर रहे थे.

लेकिन तीसरे दिन इस विरोध में 650 से भी ज्यादा आदिवासी परिवार जुड़ गए. यह 650 आदिवासी चामराजनगर के पास मौजूद 9 बस्तियों से आए हैं.

प्रदर्शनकारियों ने यह फैसला किया है कि वे अपने एकमात्र हथियार वोट का इस्तेमाल करेंगे.

दरअसल प्रदर्शन में मौजूद 650 आदिवासी परिवार ने यह फैसला किया है कि वे लोकसभा चुनाव का बहिष्कार Election boycott) करेंगे.

सोलिगा आदिवासियों की लंबे समय से यह मांग है कि उनके गाँव तक पक्की सड़क, पीने के लिए स्वच्छ पानी की व्यवस्था और बिजली प्रदान की जाए.

प्रदर्शन में मौजूद आदिवासियों ने कहा, “आखिर कब तक हमारे बच्चें अंधकार में रहेंगे. पक्की सड़कें मौजूद न होने के कारण बच्चों को आज भी जंगल में मौजूद छोटे रास्तों से होकर जाना पड़ता है.”

आंदोलन में मौजूद एक आदिवासी ने बताया कि उनके गाँव के बच्चे स्कूल जाने के लिए हर रोज़ 5 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करते हैं.

गाँव की इस स्थिति के लिए आदिवासियों ने वन और राजस्व अधिकारियों को दोषी ठहराया है.

आदिवासियों ने यह भी आरोप लगाया कि किसी भी पार्टी के प्रत्याशी ने सोलिगा आदिवासियों की इस स्थिति के बारे में बात नहीं की है.

आदिवासियों ने बताया कि तीन दिन के इस विरोध प्रदर्शन ने सरकारी अधिकारियों का ध्यान हमारी ओर आकर्षित किया है.

वहीं प्रदर्शन में मौजूद एक आदिवासी महिला, लक्ष्मी ने गाँव में उच्च शिक्षा व्यवस्था की मांग की. उन्होंने कहा कि गाँव के आश्रम स्कूलों में उच्च शिक्षा का कोई विकल्प नहीं है. न ही गाँव के बच्चे उच्च शिक्षा के लिए पास की बस्तियों में जा सकते हैं.

क्योंकि गाँव में पक्की सड़के भी नहीं हैं. ऐसे में गाँव में बच्चों का भविष्य भी संकट में है.

वहीं गाँव के लोग वन उपज़ और शहद इकट्ठा करके अपना गुज़ारा करते हैं. क्योंकि यहां आस-पास रोज़गार का कोई अन्य विकल्प मौजूद नहीं है.

सहायक आयुक्त शिवमूर्ति और अन्य अधिकारियों ने प्रदर्शन के मुख्य नेता से बातचीत की है. उन्होंने ये वादा किया है कि वे 45 दिनों तक गांव में बिजली प्रदान और स्कूलों में सुधार करेगें.

यह बात ध्यान देने वाली है कि 45 दिनों के भीतर कर्नाटक में लोकसभा चुनाव की वोटिंग हो जाएगी. तो क्या आदिवासियों का मत बटोरने के लिए प्रशासन उनकी यह मांग पूरी करेगा?

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