लोकसभा चुनाव 2024 बेहद नजदीक हैं. नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही है. वहीं विपक्षी दल भी उलटफेर करने की रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं. एक बार फिर फोकस पूरी तरह से आदिवासी मतदाताओं पर है.
ऐसे में आज हम अपनी लोकसभा चुनाव में एसटी आरक्षित सीटों की सीरीज में मध्य प्रदेश के मंडला सीट की चर्चा करेंगे.
आदिवासी गोंड राजाओं के रामनगर के किले के साथ नर्मदा नदी के किनारे बसे मंडला जिले के साल और सागौन के जंगल पूरे इलाके की ऑक्सीजन सप्लाई का मुख्य सोर्स है.
सतपुड़ा पहाड़ियों के बीच स्थित मंडला जिला बांस, टीक और हरड़ वृक्षों के लिए काफी मशहूर है. यहां मुख्य रूप से गेहूं और तिलहन की उपज होती है, यहां के लोगों के मुख्य आय का श्रोत लाख उत्पादन, लकड़ी चीरना, पान उगाना, पशुपालन, चटाई और रस्सियों का निर्माण करना है.
राजनीतिक हिसाब से देखें तो आदिवासियों के लिए आरक्षित मध्य प्रदेश की मंडला संसदीय सीट में 50 फीसदी से अधिक मतदाता आदिवासी वर्ग से हैं. आदिवासी मतदाता ही मंडला सीट पर हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं.
2011 की जनगणना के मुताबिक, इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 27 लाख 58 हज़ार 650 है, जिसमें से 91.3 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं. अनुसूचित जाति (एससी) की जनसंख्या 7.67 फीसदी और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की जनसंख्या 52.54 फीसदी है.
मंडला लोकसभा क्षेत्र का गठन 1957 में हुआ था. यह लोकसभा क्षेत्र डिंडोरी, मंडला, नरसिंहपुर और सिवनी जिलों से मिलकर बना हुआ है. मंडला संसदीय क्षेत्र में शामिल कुल आठ विधानसभा सीटों में से छह विधानसभा सीटें डिंडौरी, शहपुरा, मंडला, निवास, बिछिया और लखनादौन एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं.
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि आज़ादी के बाद हुए लोकसभा चुनावों में मंडला सीट की राजनीति तीन नेताओं – कांग्रेस के मगरू गनु उइके और मोहनलाल झिकराम और बीजेपी के फग्गन सिंह कुलस्ते के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है.
मंडला में कब कौन जीता?
साल 1952 से 1971 तक के चुनावों से लगातार कांग्रेस के मंगरू गनु उइके लोकसभा में मंडला संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे है. मंडला संसदीय सीट पर पहली बार बदलाव इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में दिखा.
साल 1977 में जनता पार्टी के श्यामलाल धुर्वे ने भारतीय लोकदल के टिकट पर जीत दर्ज करके कांग्रेस का किला पहली बार ध्वस्त किया था. इसके बाद साल 1980 से 1991 तक के चुनावों में कांग्रेस ने फिर मंडला का किला फतह करके वापसी की. 1980 से कांग्रेस के मोहनलाल झिकराम चार बार लगातार सांसद निर्वाचित हुए.
इसके बाद से बीजेपी ने एक बार फिर मंडला सीट पर अपनी पकड़ बनाई. साल 1996 से अब तक बीजेपी के आदिवासी नेता और केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते छह बार मंडला सीट से जीत दर्ज कर चुके हैं.
हालांकि, साल 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस के उम्मीदवार बसोरी सिंह मसराम से हार का सामना करना पड़ा था. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते फगन सिंह कुलस्ते एक बार फिर मंडला जिले के सांसद बन गए.
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2019 चुनाव के नतीजे
2019 के लोकसभा चुनाव में मंडला में मतदान 77.79% रहा था. भाजपा ने 48.59% वोट हासिल करके चुनाव जीता, जबकि कांग्रेस ने 42.15% वोट हासिल करके दूसरे स्थान पर रही. भाजपा के फग्गन सिंह कुलस्ते यहां 6वीं बार विजयी हुए थे. चुनाव में उन्होंने 737,266 वोट हासिल किए थे. कांग्रेस ने कमल सिंह मरावी को मैदान में उतारा था, जिन्होंने 6,39,592 वोट हासिल किए थे. वहीं, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) के रामगुलाम उइके को 48,925 वोट मिले, जो कि 3.22% था.
इसके बाद से फग्गन सिंह कुलस्ते मोदी मैजिक के सहारे इस सीट को बीजेपी का मजबूत गढ़ बनाए हुए हैं. हालांकि, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में निवास सीट से फग्गन सिंह कुलस्ते की हार से बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. इसके बाद चर्चा हो रही है कि पार्टी इस बार मंडला सीट पर अपना उम्मीदवार बदल सकती है.
वहीं कांग्रेस भी आदिवासियों के बीच बढ़ती पैठ के चलते मंडल सीट पर जीत की उम्मीद लगाए बैठी है.
मंडला लोकसभा में 2024 के लिए तैयार मतदाता सूची में 6,53,733 पुरुष मतदाता हैं और 6,67,385 महिला मतदाता हैं.
विधानसभा चुनाव के नतीजे
2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा ने शाहपुरा, गोटेगांव और मंडला में जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस डिंडौरी, बिछिया, निवास, लखनादौन और केवलारी में विजयी हुई.
कौन है फग्गन सिंह कुलस्ते
मध्य प्रदेश की मंडला लोकसभा सीट से फग्गन सिंह कुलस्ते छह बार जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं. वह भाजपा का सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा हैं. इसके पहले भी कई बार केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं.
महाकौशल के दिग्गज आदिवासी नेता कुलस्ते मंडल जिले के बारबटी गांव के रहने वाले हैं. एमए, बीएड और विधि में ग्रेजुएट 1990 में पहली बार विधायक बने और 1996 में पहली बार लोकसभा के सदस्य बने. 18 मई 1959 में जन्में कुलस्ते ने अपनी उच्च शिक्षा सागर विश्वविद्यालय व रानी दुर्गावती विवि जबलपुर से हुई है.
कुलस्ते ने भाजपा से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत 1988 में सामान्य कार्यकर्ता के रूप में शुरू की. 1999 के लोकसभा चुनाव में जीतकर केन्द्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री का प्रभार संभाला.
वहीं 1999 से 2004 तक केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्यमंत्री बने. 2012 में राज्यसभा में चुने गए. 2014 में लोकसभा चुनाव जीते. 2016 से 2017 तक केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण राज्य मंत्री रहे. हालांकि बाद में हुए फेरबदल में उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया.
2019 के लोकसभा चुनाव में कुलस्ते ने कांग्रेस के कमल मरावी को हराकर संसद पहुंचे हैं. आदिवासी बहुल इस सीट पर 1996 सीट से फग्गनसिंह कुलस्ते ही भाजपा के प्रत्याशी रहे हैं. 1996 से अब तक भाजपा को यहां से छह बार और कांग्रेस को एक बार जीत हासिल हुई है.
फग्गन सिंह साल 2004 और 2010 (दो कार्यकाल) में भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं.
पलायन और बेरोजगारी बड़ा मुद्दा
मंडला आदिवासी बहुल क्षेत्र है, बेरोजगारी और पलायन यहां का सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है. यहां उद्योग धंधे अधिक न होने से स्थानीय लोग बेरोजगार हैं. संसदीय क्षेत्र में विकास कार्य तो हुए हैं लेकिन पलायन और बेरोजगारी जैसे मुद्दे अब भी हावी हैं, जो इन विकास कार्यों को पीछे छोड़ देते हैं. मंडला जिले में उद्योगों का अभाव है और जो उद्योग हैं, उनमें जिले के लोगों को कम काम मिल रहा है.
ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग हर साल महानगरों की ओर पलायन करते हैं. यह समस्या लंबे वक्त से है, जिसे दूर नहीं किया जा सका है.
ग्रामीणों का कहना है कि सड़क बिजली पानी तो है लेकिन आर्थिक स्थिति कैसे सुधारे? जब रोजगार नहीं मिलेगा तो हमारे बच्चे रोजगार ढूंढने के लिए बाहर जा रहे हैं. पिछले कुछ सालों में हमारे क्षेत्र के लोग दूसरी जगहों पर जाकर बस गए हैं.
इसके अलावा सरकार को सिंचाई परियोजनाओं पर ध्यान देना होगा. कृषि आधारित उद्योगों को विकसित किया जाए, तो मंडला के आदिवासियों के पलायन की समस्या को रोका जा सकता है.
शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति
शिक्षा, स्वास्थ्य में पहले से काफी सुधार हुआ है. हालांकि जिला मुख्यालय में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी बनी हुई है. इसी तरह मेडिकल कालेज की स्वीकृति तो काफी पहले मिल गई थी लेकिन जमीन आवंटित न होने से भवन निर्माण का कार्य टलता रहा.
ठीक विधानसभा चुनाव के पहले जमीन आवंटित हुई, जिसके बाद भवन निर्माण के लिए टेंडर की प्रक्रिया हो सकी. जिले को मिला मेडिकल कालेज आदिवासी अंचल के लिए एक बड़ी सौगात साबित होगा.
जबलपुर-मंडला हाईवे का काम अधूरा
जबलपुर से मंडला के बीच NH 30 का निर्माण साल 2015 से चल रहा है, जो अब भी पूरा नहीं हुआ है. काम अंतिम चरण में है लेकिन गुणवत्ता ठीक न होने की शिकायत है. सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को भी मंडला आगमन पर इस सड़क के लिए माफी मांगनी पड़ी थी और ठेकेदार का टेंडर निरस्त करना पड़ा था.
अब इस सड़क की मरम्मत के लिए 54 करोड़ की राशि जारी की गई है. यह अधूरा निर्माण कब पूरा होगा, कहा नहीं जा सकता.