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मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र पर कांग्रेस बनाम बीजेपी चरम सीमा पर पहुंचा

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मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस के बीच द्विध्रुवीय मुकाबले में आदिवासी वोट निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं. क्योंकि दोनों ही पार्टियां लोकसभा चुनाव के दौरान आदिवासी मतदाताओं को अपनी ओर करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं.

पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र में आठ लोकसभा सीटें हैं, जहां 13 मई को मतदान होगा.

क्योंकि मुख्यमंत्री मोहन यादव और उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा, विपक्ष के नेता उमंग सिंघार, मध्य प्रदेश राज्य कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष जीतू पटवारी सहित भाजपा और कांग्रेस दोनों के बड़े नेता इस क्षेत्र से हैं इसलिए प्रचार चरम पर पहुंच गया है.

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत के बावजूद बीजेपी को आदिवासी बहुल इलाकों में अपनी बढ़त बढ़ाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने मालवा और निमाड़ क्षेत्र की सभी सीटों पर जीत हासिल की थी.

कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम के नामांकन वापस लेने के बाद इंदौर का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया. हालांकि भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी बिना किसी खास मुकाबले के जीतते नजर आ रहे हैं लेकिन कांग्रेस ने मतदाताओं से नोटा बटन दबाने की अपील की है.

क्योंकि यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है इसलिए नेता अभियान के दौरान उनसे संबंधित मुद्दों को उजागर कर रहे हैं. यह क्षेत्र एक कृषि क्षेत्र भी है इसलिए उर्वरकों की कमी और उपज के लिए खरीदारों की कमी सहित किसानों की समस्याएं कांग्रेस नेताओं द्वारा उठाए गए प्रमुख मुद्दे हैं.

जहां कांग्रेस ने किसानों की समस्याओं के लिए राज्य और केंद्र दोनों की भाजपा सरकारों को जिम्मेदार ठहराया, वहीं भाजपा राम मंदिर अभिषेक के मुद्दे को लेकर शहर में जा रही है.

झाबुआ के एक किसान कन्हैयालाल ने कहा, “मैंने मार्च में सोयाबीन उगाई लेकिन उत्पादन की बढ़ती लागत के कारण मैं उपज का अच्छा दाम नहीं ले पा रहा हूं.”

राज्य कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा, “क्षेत्र के किसान संकट में हैं. यह मुख्य रूप से राज्य और केंद्र दोनों में सत्तारूढ़ भाजपा सरकारों द्वारा अपनाई गई खराब नीति के कारण है.”

मध्य प्रदेश में जहां 21 फीसदी आदिवासी आबादी है, वहीं मालवा-निमाड़ क्षेत्र में इनकी संख्या अधिक है.

क्षेत्र की 66 विधानसभा सीटों में से 22 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. 2023 के विधानसभा चुनावों में क्षेत्र की 22 एसटी आरक्षित सीटों में से भाजपा ने नौ सीटें जीतीं, वहीं कांग्रेस ने 12 सीटें जीतीं और एक सीट भारतीय आदिवासी पार्टी ने जीती.

झाबुआ, धार, अलीराजपुर, रतलाम और बड़वानी जैसे आदिवासी जिलों में कांग्रेस का परंपरागत रूप से दबदबा रहा है. रतलाम और धार में दोनों पार्टियों के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना है. इस बार बीजेपी ने धार और रतलाम में उम्मीदवार बदल दिए हैं.

इस क्षेत्र के सबसे बड़े आदिवासी नेता पूर्व प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख कांतिलाल भूरिया हैं. वह रतलाम से भाजपा की अनिता नागर सिंह चौहान के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

2023 के विधानसभा चुनावों में मालवा-निमाड़ क्षेत्र की 66 सीटों में से भाजपा ने 47 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस के पास 17 और एक सीट भारतीय आदिवासी पार्टी के पास थी.

आदिवासियों को लुभाने के लिए भाजपा ने कई कार्यक्रम शुरू किए, जिनमें आदिवासी प्रतीकों के नाम पर रेलवे स्टेशनों का नाम बदलना भी शामिल है.

दूसरी ओर कांग्रेस जंगलों और आदिवासी भूमि की रक्षा के लिए पांच गारंटी के आश्वासन के साथ आदिवासियों को लुभाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है.

आदिवासियों के मुद्दे

आदिवासियों को बड़ी उम्मीदें हैं और वे अपनी समस्याओं का समाधान चाहते हैं, जो उन्हें दशकों से परेशान कर रही हैं.

आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य और शिक्षा के अलावा रोजगार बड़ा मुद्दा बना हुआ है. स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसरों की कमी के कारण आदिवासियों को अपने जिले से बाहर निकलकर पड़ोसी राज्य गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में नौकरी तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

आदिवासियों का कहना है कि उन्हें अपने ही क्षेत्र में रोजगार की जरूरत है, जो नहीं हो रहा है. आदिवासी क्षेत्रों में उद्योग स्थापित नहीं होते हैं.

आदिवासियों को दुख है कि राज्य में आने वाली सरकारें उनकी समस्याओं का समाधान करने में विफल रहीं. जनजातीय क्षेत्रों में अच्छी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की कमी एक बड़ा मुद्दा है.

प्रदेश भाजपा एसटी मोर्चा के अध्यक्ष काल सिंह भाबर ने कहा कि भाजपा सरकार ने आदिवासियों की शिक्षा पर ध्यान दिया और छात्रावास सुविधाओं वाले सीबीएसई स्कूल गांवों तक पहुंचे. हालांकि, अभी भी आदिवासी शिक्षा में सुधार की जरूरत है.

एक आदिवासी भाजपा कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करना एक बड़ी समस्या है.

उन्होंने कहा कि सरकार 1950 से पहले के दस्तावेज़ चाहती है और बड़ी संख्या में आदिवासियों के पास ये नहीं हैं. नतीजतन उन्हें जाति प्रमाण पत्र नहीं मिल पा रहा है. जाति प्रमाण पत्र के अभाव में उन्हें नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

इससे भी बुरी बात यह है कि सुरक्षित गारंटी के अभाव में शिक्षित आदिवासियों को बैंक लोन नहीं मिलता है.

बीजेपी पीएमएवाई, बेहतर सड़कें और चिकित्सा सुविधाओं जैसी योजनाओं के नाम पर आदिवासियों को लुभाने की कोशिश कर रही है.

कांग्रेस मनरेगा मजदूरी को 250 रुपये से बढ़ाकर 400 रुपये करने और हर महिला को 1 लाख रुपये देने के अलावा आदिवासियों को रोजगार सुनिश्चित करने का वादा करके आदिवासी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है.

कांग्रेस का कहना है कि वो जाति प्रमाण पत्र का समाधान करेगी. उन्होंने कहा कि इससे आदिवासी युवाओं को रोजगार मिलेगा.

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