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Lok Sabha Elections 2024: क्या BJP अपनी खोई हुई बस्तर सीट वापस ले पाएगी या फिर होगी कांग्रेस की वापसी

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लोकसभा चुनाव को लेकर पहले चरण के मतदान को लेकर प्रचार-प्रसार थम गया है. छत्तीसगढ़ की आदिवासी बहुल बस्तर लोकसभा सीट के लिए पहले चरण में 19 अप्रैल यानि कल मतदान होना है.

इसके साथ ही वोटिंग के 48 घंटे पहले बस्तर में बुधवार शाम 5 बजे चुनाव प्रचार थम गया. अब बस्तर लोकसभा क्षेत्र में सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशी डोर टू डोर प्रचार कर सकते हैं.

19 अप्रैल को सुबह 7 बजे से मतदान शुरू होगा. संवेदनशील जिलों में सुबह 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक और सामान्य जिलों में सुबह 8 बजे से 5 बजे तक मतदान होगा.

बस्तर लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा क्षेत्र है. इनमें कोंडागांव, नारायणपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा में सुबह 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक मतदान होगा. जबकि बस्तर और जगदलपुर विधानसभा क्षेत्र में सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक वोटिंग होगी.

इस चुनाव में कुल 11 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं. हालांकि, कांग्रेस के कवासी लखमा और भाजपा के प्रत्याशी महेश कश्यप के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है.

बस्तर लोकसभा के लिए 8 विधानसभा में कुल 1957 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. इनमें सबसे ज्यादा मतदान केंद्र दंतेवाड़ा जिले में हैं. यहां 273 केंद्र है. वहीं सबसे कम 212 मतदान केंद्र बस्तर विधानसभा में हैं.

इसके अलावा नारायणपुर में 265, जगदलपुर में 247, कोण्डागांव में 242, चित्रकोट में 240, बीजापुर में 245 और कोंटा में 233 केंद्र बनाए गए हैं. इस बार 234 केंद्रों की शिटिंग भी की गई है.

चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश पर सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी है. जिले में पर्याप्त मात्रा में सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है ताकि मतदान प्रक्रिया शांति पूर्ण तरीके से सम्पन्न हो सके. जिले के अत्यंत सुदूर और संवेदनशील जंगम पाल और मुलेर के लिए पहला जत्था कड़ी सुरक्षा के बीच रवाना किया गया.

बस्तर लोकसभा में इस समय मतदाताओं की कुल संख्या 13 लाख 57 हजार 443 है. इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 6 लाख 53 हजार 620 है. वहीं महिला मतदाताओं की संख्या 7 लाख 03 हजार 779 है. इन आंकड़ों के हिसाब से बस्तर में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले 50 हजार से भी ज्यादा है.

बस्तर लोकसभा सीट

छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में बस्तर जिला स्थित है. यह पहले दक्षिण कोशल नाम से जाना जाता था. खूबसूरत जंगलों और आदिवासी संस्कृति में रंगा जिला बस्तर, प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी जाना जाता है.

बस्तर जिला किसी समय में केरल जैसे राज्य और बेल्जियम, इजराइल जैसे देशों से भी बड़ा था. जिले का सही तरीके से संचालन होने के लिए इसे 1999 में दो अलग जिलों, कांकेर और दंतेवाड़ा में बांट दिया गया.

2011 की जनगणना के मुताबिक, यहां की कुल जनसंख्या 8,34,375 थी. इसमें 4,13,706 पुरुष एवं 4,20,669 महिलाएं हैं. जनसंख्या में 70 फीसदी आदिवासी समुदाय है, जिसमें गोंड, मारिया, मुरिया, भतरा, हल्बा और धुरुवा समुदाय शामिल हैं. यही कारण है कि यहां की राजनीति में भी इन समुदायों का बहुत असर रहता है. बल्कि इन्हें इस क्षेत्र का वोट बैंक भी माना जाता है. 

बस्तर लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल 8 विधान सभा सीट है. इनमें से पांच पर भाजपा और तीन पर कांग्रेस के विधायक हैं. कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा विधान सभाओं में से सिर्फ जगदलपुर ही सामान्य श्रेणी की सीट है. बाकी सभी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.

बस्तर लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास

बस्तर निर्वाचन क्षेत्र 1952 में पहली बार अस्तित्व में आई थी. तब से लेकर 2019 तक 16 लोकसभा चुनाव हुए. 6 बार भाजपा, 5 बार कांग्रेस, 1 बार कांग्रेस (इंदिरा), 1 बार जनता पार्टी और 5 बार स्वतंत्र उम्मीदवार जीते.

एक समय में बस्तर कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती थी. लेकिन 1998 से लेकर 2014 तक यानी पिछले छह लोकसभा चुनावों में इस सीट पर बीजेपी ने जीत का परचम लहराया.

बलिराम कश्यप यहां से लगातार 4 बार सांसद रहे. 2011 और 2014 में बीजेपी के दिनेश कश्यब यहां से सांसद बने. मतलब पिछले 25 साल से कश्यप परिवार के सदस्य यहां से लगातार जीत रहे हैं.

फिर 25 साल बाद 2019 में दीपक बैज ने यहां कांग्रेस का झंडा फहराया. उन्होंने भाजपा के बैदूराम कश्यप को 38,982 वोटों से हराया था.

कवासी लखमा vs महेश कश्यप

इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बस्तर से उनकी ही पार्टी से छह बार के विधायक और पूर्व मंत्री 70 वर्षीय कवासी लखमा को टिकट दिया है. जबकि भाजपा ने एक बार फिर जाति आधारित कार्ड खेलते हुए 49 वर्षीय महेश कश्यप को पहली बार चुनावी रण में उतारा है.

आदिवासी नेता कवासी लखमा बस्तर संभाग में ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ की राजनीति में जाना पहचाना नाम है. नक्सल प्रभावित क्षेत्र कोंटा से वे 6 बार विधायक चुने जा चुके हैं. इससे पहले पार्टी ने उन्हें 2011 के लोकसभा उप चुनाव में टिकट दिया था, लेकिन वह हार गए थे.

वहीं भाजपा के प्रत्याशी महेश कश्यप पहली बार चुनावी मैदान में उतर रहे है. हालांकि, भाजपा ने इससे पहले दो बार कश्यप वर्ग (बलिराम कश्यप और दिनेश कश्यप) को टिकट दिया है. इस बार देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा अपना खोया हुआ सीट वापस ले पाती है या कांग्रेस दोबारा अपनी सरकार बनाती है.

बस्तर लोकसभा सीट छत्तीसगढ़ की राजनीति में बहुत महत्त्व रखती है क्योंकि अगर पिछले कई दशकों से यह नक्सलवाद का गढ़ रही है तो इस जंगल की भूमि के नीचे तमाम खनिज पदार्थ भी हैं जिन पर निजी कंपनियों की निगाहें गड़ी हुई हैं.

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