पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के लिए बड़ी-बड़ी रैलियों के साथ घर-घर जाकर प्रचार जोर-शोर से चल रहा है. झारग्राम राज्य की 42 सीटों में से एक है. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. 25 मई को इस सीट पर मतदान होगा.
इस सीट से बीजेपी ने रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रणत टुडू को मैदान में उतारा है, जो पहले झारग्राम सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में काम करते थे. उनके प्रतिद्वंद्वी तृणमूल कांग्रेस (TMC) के कालीपद सोरेन हैं.
झारग्राम लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के सात विधानसभा क्षेत्रों में से चार झारग्राम जिले में दो पश्चिम मेदिनीपुर जिले में और एक पुरुलिया जिले में हैं. ये सभी पश्चिम बंगाल के जंगल महल जिलों के रूप में जाने जाते हैं.
2011 की जनगणना के मुताबिक, झारग्राम जिले की 29 प्रतिशत से अधिक आबादी अनुसूचित जनजाति की है. जबकि जनसंख्या की दृष्टि से संथाल सबसे बड़ा समूह है, यहां कई अन्य समूह भी रहते हैं.
झारग्राम सभी विकास संकेतकों (Development Index) के मामले में बहुत वंचित इलाका है. यहां खेती-किसानी की बात हो या फिर शिक्षा और स्वास्थ्य के बारे में बात की जाए, यहां के चुनाव में इन सभी ज़रूरी मुद्दों पर चर्चा नज़र नहीं आती है.
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के कुंअर हेम्ब्रम ने टीएमसी के बिरबाहा सोरेन को 11 हज़ार से अधिक वोटों से हराकर झारग्राम सीट जीती थी. लेकिन इस साल चुनाव से कुछ महीने पहले हेम्ब्रम ने “व्यक्तिगत कारणों” का हवाला देते हुए पार्टी छोड़ दी.
उन्होंने कहा था, ”व्यक्तिगत कारणों से मैं पार्टी छोड़ना चाहता हूं. मेरी किसी अन्य पार्टी में शामिल होने की कोई इच्छा नहीं है. मैं अन्य सामाजिक कार्यों में लगा हुआ हूं. मैं इस तरह की पहल के माध्यम से लोगों की सेवा करना जारी रखूंगा.”
जबकि कुछ सूत्रों ने तब कहा था कि भाजपा उन्हें दोबारा टिकट देने की मूड में नहीं थी. कुछ लोगों का मानना था कि उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से यह फैसला लिया था.
इस साल टीएमसी ने 66 वर्षीय कालीपद सोरेन को मैदान में उतारा है. सोरेन को 2022 में भारत सरकार ने दशकों से संताली साहित्य और कविता में उनके योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया था.
टीएमसी उम्मीदवार कालीपद अपने उपनाम ‘खेरवाल सोरेन’ से अधिक प्रसिद्ध हैं और संथाल जनजाति से हैं.
हांसदा कहते हैं, “कालीपद सोरेन संथाल समुदाय के एक वरिष्ठ सदस्य हैं. संताली भाषा में साहित्य और कविता पर उनकी कई किताबें पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में हाई स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं. बहुत से युवा उन्हें पहचानते हैं लेकिन वे उन्हें उनके उपनाम से अधिक पहचानते हैं.”
कौन हैं कालीपद सोरेन?
झारग्राम जिले के रघुनाथपुर गांव में जन्मे सोरेन साधारण परिवार से आते थे. उन्होंने कोलकाता के रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और कई वर्षों तक एक बैंक कर्मचारी के रूप में काम किया.
इसके साथ-साथ अपने लेखन करियर को भी आगे बढ़ाया. जिससे उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले, जिनमें भारत की साहित्य अकादमी द्वारा दिए गए पुरस्कार भी शामिल थे. 1990 के दशक में कोलकाता में रहते हुए सोरेन ने एक थिएटर ग्रुप, खेरवाल ड्रामेटिक क्लब भी शुरू किया, जो संथाली में सोरेन द्वारा लिखे गए नाटकों का निर्माण करता था.
दो दशकों से अधिक समय तक सोरेन और उनके थिएटर समूह ने अपनी कला को कोलकाता के बाहर जंगल महल की भूमि पर लेकर गए. जहां वे एक गांव से दूसरे गांव की यात्रा करते थे और क्षेत्र के आदिवासी समुदायों से संबंधित सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित नाटकों का प्रदर्शन करते थे.
संताल समुदाय में सोरेन को सम्मानित शख्स माना जाता है. लेकिन इससे भी अहम बात यह है कि सोरेन जमीनी स्तर पर अपने काम के लिए दिखाई दे रहे हैं.
साल 2003 में अपने नाटकों के माध्यम से वह उस विरोध प्रदर्शन में शामिल थे, जो संताली समुदाय ने संविधान की आठवीं अनुसूची में संताली को शामिल करने के लिए शुरू किया था.
कालीपद सोरेन को यह उम्मीद है कि उनकी लोकप्रियता और समुदाय की संस्कृति और भाषा की सेवा में योगदान को ध्यान में रखते हुए लोग उन्हें वोट देंगे और वे चुनाव जीत सकते हैं.
कौन हैं डॉ. प्रणत टुडू
इसकी तुलना में झाड़ग्राम और बड़े जंगल महल क्षेत्र में आम लोगों के लिए कालीपद सोरेन के प्रतिद्वंद्वी, भाजपा के प्रणत टुडू कम प्रसिद्ध हैं.
टुडू दोबाती गांव में पले-बढ़े और बाद में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए चले गए. 2012 में टुडू झारग्राम वापस गए और झारग्राम मेडिकल कॉलेज में रेडियोलॉजी विभाग में शामिल हो गए.
टुडू अपनी चुनाव सभाओं में ज़िले की स्वास्थ्य सेवाओं पर ही ज़्यादा बात करते हैं. वे कहते हैं कि अगर लोग उन्हें चुनते हैं तो वे यहां की स्वास्ष्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए काम करेंगे.
जीवन के अधिकांश समय टुडू शिक्षा और अपनी नौकरी से जुड़े रहे. टुडू कभी सक्रिय राजनीति में नहीं रहे हैं और संताल समाज उनके बारे में ज़्यादा नहीं जानता है.
लेकिन उन्हें उम्मीद है कि बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि उन्हें चुनाव जिता देगी.
बीजेपी बैकफुट पर
2019 के आम चुनाव के बाद से पांच वर्षों में झाड़ग्राम में बहुत कुछ बदल गया है. जब 2019 में कुंअर हेम्ब्रम के दम पर बीजेपी ने झारग्राम में जीत हासिल की तो पार्टी के पास जमीन पर बहुत सारे कार्यकर्ता थे.
लेकिन पिछले पांच वर्षों में इनमें से कई जमीनी स्तर के कार्यकर्ता राजनीति छोड़ चुके हैं या फिर टीएमसी या अन्य स्थानीय सामाजिक संगठनों में शामिल हो गए हैं.
राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि इससे झारग्राम में 2023 के पंचायत चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और टीएमसी ने लगभग आसानी से जीत हासिल की.
विश्लेषक का कहना है कि मुद्दा यह है कि इस बार बीजेपी के पास पर्याप्त पार्टी कार्यकर्ता नहीं हैं और टीएमसी के पास हर गांव में अपने पार्टी कार्यकर्ता हैं जो झाड़ग्राम में आक्रामक तरीके से प्रचार कर रहे हैं.
यहां एक बड़ा कारक कुर्मी वोट भी है,जो 2019 में बड़े पैमाने पर भाजपा के पास था लेकिन पार्टी ने इस समुदाय का समर्थन खो दिया है खासकर झारग्राम निर्वाचन क्षेत्र में.
2019 के चुनावों में बीजेपी झारग्राम सीट पर सिर्फ 11 हज़ार वोटों से जीती थी.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2024 के चुनाव में बीजेपी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. वहीं 2019 के बाद से टीएमसी अपनी स्थिति में सुधार करने में सक्षम रही है.
यह भी माना जा रहा है कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी से भी यहां पर संताल आदिवासी नाराज़ हैं.