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क्या मोहन माझी का मुख्यमंत्री बनना झारखंड में बीजेपी को फ़ायदा पहुंचा सकता है

Bhubaneswar: Odisha Chief Minister-designate Mohan Charan Majhi takes oath during the swearing-in ceremony of the new Odisha government, in Bhubaneswar, Wednesday, June 12, 2024. (PTI Photo)(PTI06_12_2024_000318B)

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) के लिए आरक्षित सभी लोकसभा सीटों पर झारखंड बीजेपी (Jharkhand BJP) हार का सामना करने पड़ा.

लेकिन झारखंड के पड़ौसी राज्य में बीजेपी को पहली बार सरकार बनाने का मौका मिला है. यहां पर बीजेपी ने एक आदिवासी नेता मोहन चरण माझी (Mohan Charan Majhi) मुख्यमंत्री बनाया है.

बीजेपी को यह उम्मीद है कि पड़ौसी राज्य ओडिशा में एक आदिवासी मुख्यमंत्री की नियुक्ति से झारखंड में बीजेपी आदिवासी विरोधी छवि को तोड़ पाएगी.

आदिवासी फैक्टर

ओडिशा में यह पहली बार है कमल खिला है और बीजेपी की सरकार बनी है. राज्य में भाजपा नेता और क्योंझर से चार बार विधायक मोहन चरण मांझी ने पिछले बुधवार को ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

ऐसे में सभी के मन में सवाल आ रहा है कि आखिर एक आदिवासी चेहरे को ही भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाने का फैसला क्यों किया.

मोहन माझी को मुख्यमंत्री बनाने का सबसे बड़ा कारण तो यही है कि वह आदिवासी समाज और संथाल जनजाति से ताल्लुक रखते हैं. ओडिशा में 23 फीसदी के करीब आदिवासी समाज का वोट है. इस वोट के दम पर राज्य में हार जीत तय हो जाती है.

भाजपा पिछले लंबे समय से ओडिशा में आदिवासी वोट बैंक पर अपना फोकस जमा रही थी. इसे साधने के लिए कई वादे भी किए गए और नवीन पटनायक सरकार की कई योजनाओं पर आदिवासी विरोधी का तमगा भी लगाया था.

ऐसे में अब जब बीजेपी की सरकार बनी तो वह किसी भी कीमत पर आदिवासी मतदाताओं को नाराज नहीं करना चाहते थे.

दरअसल, बीजेपी ओडिशा में झारखंड जैसी गलती नहीं करना चाहती थी जहां पर उसने एक गैर आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री की कमान सौंप दी थी.

झारखंड में बीजेपी को यह उम्मीद होगी कि छत्तीसगढ़ के बाद अब एक और राज्य ओडिशा में भी एक आदिवासी को मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी देने से राज्य में उसके लिए माहौल थोड़ा बदल सकता है.

ओडिशा विधानसभा चुनाव में मोहन चरण माझी ने क्योंझर विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की है. ​​वे भाजपा के आदिवासी मोर्चा के सचिव थे और ओडिशा में भाजपा एससी/एसटी विंग का नेतृत्व कर चुके थे.

झारखंड का खनिज समृद्ध पश्चिमी सिंहभूम जिला ओडिशा के क्योंझर जिले से अपनी सीमा साझा करता है. इसके अलावा संथाल राज्य की प्रमुख जनजातियों में से एक हैं.

झारखंड में संथाल आदिवासी कुल आबादी का करीब 30 प्रतिशत हैं. संथाल आदिवासियों की जड़ें झारखंड के संथाल परगना में हैं लेकिन समुदाय की एक बड़ी आबादी बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी बसी हुई है.

झारखंड का आदिवासी क्षेत्र क्योंझर, सुंदरगढ़ और मयूरभंज जैसे जिलों से भी अपनी सीमा साझा करता है. विशेषज्ञों के मुताबिक अधिकांश संथाल आदिवासी इन्हीं जिलों में रहते हैं.

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी मयूरभंज से आती हैं, जो ओडिशा का सबसे बड़ा आदिवासी जिला है. वह भी संथाल आदिवासी समुदाय से हैं.

वहीं सत्तारूढ़ झामुमो को झारखंड की सीमा के करीब आदिवासी क्षेत्रों में भी भारी समर्थन प्राप्त है. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन भी मयूरभंज जिले से ताल्लुक रखती हैं.

झारखंड में आदिवासियों के बीच पैठ बनाने के लिए ही भाजपा में बाबूलाल मरांडी की वापसी हुई. उन्हें विधायक दल का नेता और प्रदेश अध्यक्ष बीजेपी ने बनाया. लोकसभा टिकट बंटवारे में भी उनकी खूब चली लेकिन बीजेपी का यह कदम कुछ खास काम नहीं आया.

अब भाजपा ने नई रणनीति के तहत मोहन चरण मांझी को ओडिशा का सीएम बनाया है. इसके जरिए वह संदेश देना चाहती है कि वो आदिवासी और संथाल के लोगों की हितैषी है.

बाबूलाल मरांडी ने भी कहा है कि संथाल आदिवासी से भाजपा कितना प्रेम करती है, इसका प्रमाण है कि पार्टी ने ओडिशा का मुख्यमंत्री संताल आदिवासी बेटे मोहन चरण मांझी को बनाया है, यह उन्हें बड़ा सम्मान है.

वहीं सूत्रों के मुताबिक, भाजपा आदिवासी मतदाताओं को एकजुट करने के लिए राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना रही है.

ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी स्टार प्रचारकों में शामिल हो सकते हैं, जो झारखंड में आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी 28 विधानसभा क्षेत्रों में रैलियों और जनसभाओं को संबोधित करेंगे.

यह बात सही है कि ओडिशा में एक संथाल आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने से बीजेपी के पास झारखंड के विधान सभा चुनाव में कम से कम यह दावा करने की गुंजाईश होगी कि वह आदिवासी नेताओं को नेतृत्व दे रही है.

लेकिन क्या बीजेपी झारखंड में एक आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करेगी, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा.

क्योंकि फ़िलहाल झारखंड में आदिवासी बीजेपी से सख़्त नाराज़ है. इसका एक बड़ा कारण हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी भी है. राज्य के आदिवासी यह मानते हैं कि हेमंत सोरेन क्योंकि आदिवासी है, इसलिए ही उन्हें टारगेत कर जेल में डाला गया है.

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