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कैंसर से जीती जंग-जीती हैं गायों के संग

“झारखंड के रांची ज़िले के मांडर ब्लॉक के छोटे-से गाँव कैम्बो की सीमा देवी…जिंदगी के सबसे मुश्किल दिनों से गुज़री हैं — भावनात्मक भी, और आर्थिक भी. लेकिन हर मुश्किल को पार करते हुए, आज वे आत्मनिर्भरताकी एक मजबूत मिसाल बनकर खड़ी हैं. उन्होंने दो गाय से दूध का कारोबार शुरू किया और आज वो अपने ब्लॉक की सबसे बड़ी दूध उत्पादक किसान बन चुकी हैं.

सीमा देवी ने शुरूआत दो गाय से की थी, लेकिन जब राज्य की मेधा डेरी से जुड़ गईं तो उनके अरमानों को पंख लग गए.

दूध के ज़रिए सीमा देवी महीने का औसतन दो-सवा दो लाख रुपए कमाती हैं. इस कमाई की बदौलत उनके बच्चे अलग अलग शहरों में पढ़ाई कर रहे हैं. 

कैम्बों गांव में बाक़ी किसानों ने भी गाय पालन और दूध के कारोबार को रोज़गार का साधन बनाया है, और तेज़ी से यह संख्या बढ़ रही है. 

कैम्बों मूलत: उरांव आदिवासियों का गांव हैं. लेकिन यहां कुछ परिवार ग़ैर आदिवासी भी हैं. इन सभी परिवारों की आर्थिक स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है. छोटी मोटी खेती या फिर मेहनत मज़दूरी से जिंदगी चलती है.

लेकिन गाय पालन ने उन्हें रोज़गार का एक नया आयाम दे दिया है. दरअसल सरकार हर एक लीटर दूध पर मूल्य के अलावा 5 रुपया बोनस भी देती है. यह बोनस किसानों को गाय पालन की तरफ़ खींच रहा है. 

गांव में मौजूद दुध कलेक्शन सेंटर में ना सिर्फ़ किसानों के लिए दूध बेचने की सुविधा है बल्कि यहां उसे उचित दाम पर गाय लिए दाना भी मिलता है.

यहां पर गाय का जो दाना मिलता है उसकी क्वालिटी अच्छी होती है और किसान को ट्रांसपोर्ट पर पैसा भी ख़र्च नहीं करना पड़ता है.

इस कहानी की सबसे ख़ूबसूरत और ज़रुरी बात ये है कि यहां किसान सिर्फ दूध का उत्पादन नहीं कर रहा है…बल्कि वह दूध के पूरे व्यवसाय को समझ रहा है और उसे खुद संचालित कर रहा है.

जब दूध से परिवार की आमदनी बढ़ी तो किसान भी गायों की अच्छी नस्ल की गायों के बारे में जागरुक हुए. उन्होंने राष्ट्रीय गोकुल मिशन जैसी योजनाओं का लाभ उठाते हुए अपनी गायों के लिए कृत्रिम गर्भाधान को अपनाया है. अच्छी नस्ल की गाय…मतलब ज़्यादा दूध का उत्पादन….जिससे किसान का परिवार खुशहाल बनता है. 

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