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आदिवासी छात्रों पर लाठी चार्ज, भाषा की रोमन लिपि की मांग के लिए प्रदर्शन

त्रिपुरा में टिपरा मोथा के अध्यक्ष प्रद्योत किशोर माणिक्य ने अगरतला में आदिवासी छात्रों पर लाठीचार्ज की निंदा की है. इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार और राज्य सरकार को चेतावनी दी है. उन्होंने कहा कि अगर त्रिपुरा के आदिवासियों की भाषा कोकबोरोक की रोमन स्क्रिप्ट की मांग पर सरकार सहमत नहीं होती है तो राज्य में बड़ा आंदोलन किया जाएगा.

उन्होंने इस बात पर अफ़सोस प्रकट किया है कि राज्य के राज्यपाल ने छात्रों से मिलने का समय नहीं दिया. 

आज यानि बुधवार 14 जून को राजधानी अगरतला में टिपरा मोथा के छात्र संगठन ने राजभवन पर प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में शामिल छात्र नेताओं की मांग थी कि उन्हें राज्यपाल से मिलने का समय दिया जाना चाहिए.

ये छात्र कोकोबोरोक भाषा के लिए रोमन स्क्रिप्ट की मांग के संबंध में एक ज्ञापन राज्यपाल को सौंपना चाहते थे. यहां पर कानून व्यवस्था देखने के लिए मौजूद पुलिस अधिकारियों ने छात्रों को बताया कि उनके नेताओं में से कुछ को राजभवन में बुलाया गया है.

लेकिन जब राजभवन के भीतर राज्यपाल के स्थान पर उनके स्टाफ़ ने ज्ञापन स्वीकार करने की बात कही तो छात्र भड़क गए. इसके बाद छात्रों ने नारज़गी प्रकट करने के लिए नारेबाज़ी की थी. 

छात्रों को काबू में करने के लिए पुलिस ने पानी की बौछार और हल्की लाठी चार्ज का इस्तेमाल किया. हांलाकि छात्र संगठन का कहना है कि पुलिस प्रशासन ने उनके साथ नाजायज सख़्ती की है. 

कोकबोरोक की स्क्रिप्ट एक राजनीतिक मुद्दा

कोकबोरोक भाषा भारत के त्रिपुरा के अलावा बांग्लादेश के भी कुछ हिस्सों में बोली जाती है. कोक का मतलब होता है भाषा और बोरोक का मतलब होता है लोग. यानि लोगों की भाषा को कोकबोरोक कहा जाता है. इस भाषा को भारत की उन भाषाओं की सूचि में रखा गया है जो ख़तरे में हैं.

त्रिपुरा के आदिवासियों की ये सबसे बड़ी भाषा मानी जाती है. इस भाषा को बचाने के प्रयास लंबे समय से चल रहे हैं. इस सिलसिले में सबसे ज़रूरी काम हुआ है इस भाषा कि लिपी तैयार करना. लेकिन अफ़सोस की कोकबोरोक की लिपी एक बड़ा राजनीतिक मसला बन गया है. 

पिछले क़रीब 40 सालों में लगभग एक दर्जन से ज़्यादा बार इस भाषा की लिपि को लेकर फ़ैसले बदले हैं. त्रिपुरा में लंबे समय तक सत्ता में रही वामपंथी मोर्चा की सरकार इस भाषा की बांग्ला लिपि के पक्ष में थी. लेकिन यहाँ के आदिवासी संगठन और राजनीतिक दल रोमन स्क्रिप्ट चाहते हैं. 

अब राज्य में बीजेपी की सरकार है और कोकबोरोक के लिए देवनागरी स्क्रिप्ट की वकालत की जा रही है. इस भाषा की स्क्रिप्ट के मसले पर हो रही राजनीति का सबसे बड़ा ख़ामियाज़ा वो छात्र भुगत रहे हैं जो इस भाषा में पढ़ाई करते हैं.

इस भाषा की स्क्रिप्ट रोमन हो या बंगाली इस बहस में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि कोकबोरोक भाषा के कुछ शब्दों का उच्चारण या उन्हें लिखना बांग्ला भाषा में संभव ही नहीं है. इसलिए इसकी स्क्रिप्ट रोमन ही हो सकती है. 

एक अध्यापक का अनुभव

बौधरेय देबबर्मा त्रिपुरा में एक रिटायर्ड टीचर हैं. उन्होंने इस भाषा की लिपि के बनने और बदलने को लगातार देखा है. वो कहते हैं कि 1979 में यह तय हुआ कि कोकबोरोक की स्क्रिप्ट बंगाली होगी. उसके बाद लिपि तैयार हुई और उसी में स्कूलों की पढ़ाई भी होती है.

अभी भी 12वीं कक्षा तक स्कूलों में कोकबोरोक के लिए बंगला लिपि का ही इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन कॉलेज और यूनिवर्सिटी में रोमन स्क्रिप्ट ही इस्तेमाल हो रही है. देबबर्मा कहते हैं कि जब कोकबोरोक की लिपि बांग्ला तय की गई थी तो यह कोई राजनीतिक फ़ैसला नहीं था. 

यह भाषा के उच्चारण और छात्रों की सुविधा दोनों को देख कर तैयार की गई थी. लेकिन रोमन स्क्रिप्ट की माँग पूरी तरह से राजनीतिक है. उनका कहना है कि अंग्रेज़ी भाषा में वो अक्षर ही नहीं हैं जो कोकबोरोक भाषा की अभिव्यक्ति कर सकें. 

वो कहते हैं कि यह छात्रों के साथ अन्याय है. इस भाषा में पढ़ने वाले छात्र स्कूल में बांग्ला लिपि पढ़ते हैं और कॉलेज में उन्हें रोमन में लिखना पड़ता है. रोमन लिपि उन पर थोप दी गई है. 

वो कहते हैं कि या तो इस आदिवासी भाषा की लिपि के लिए अंतर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (International Phonetic Alphabet) का इस्तेमाल आदर्श है. उसके बाद अगर कोई भाषा इस भाषा के क़रीब आती है तो वो बांग्ला हो सकती है. 

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