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त्रिपुरा में सत्ता परिवर्तन का माहौल बनाने वाला टिपरा मोथा क्या इसे अंजाम तक पहुँचा सकता है

पिछले महीने उतर-पूर्व के राज्य त्रिपुरा में क़रीब 10 दिन बिताने का मौक़ा मिला. इस दौरान यहाँ के कई ज़िलों में घूमे और यहाँ के लोगों से लंबी बातचीत हुई. 

त्रिपुरा में अगले दो महीने के भीतर चुनाव है और राज्य में चुनाव का माहौल पूरी तरह से तैयार हो गया है. चुनाव में सत्ताधारी दल बीजेपी, आदिवासियों का नया मोर्चा टिपरा मोथा और 25 साल तक राज्य में लगातार सरकार चलाने वाली सीपीआई (एम) के अलावा कांग्रेस पार्टी भी मुख्य राजनीतिक दलों में गिने जा सकते हैं.

राज्य की राजधानी अगरतला में इन सभी दलों के नेताओं से भी लंबी बातचीत हुई. इन नेताओं से कैमरे पर जितनी लंबी बातचीत हुई है उसके अलावा कैमरे के पीछे भी लंबी बातचीत हुई.

त्रिपुरा के अलग अलग ज़िलों में घूमते हुए लोगों से मुलाक़ात के दौरान हुई बातचीत और नेताओं के साथ जो अनऔपचारिक चर्चाएँ हुई, उनमें एक बात स्पष्ट समझ में आ रही थी कि आदिवासी मतदाता इस चुनाव में फ़ोकस में है. 

त्रिपुरा में कुल 60 सीटों में से 20 सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. राज्य में कुल 19 जनजातियों के लोग रहते हैं.

राज्य की राजनीति में अपेक्षाकृत नए राजनीतिक दल टिपरा मोथा ने बहुत कम समय में यह साबित किया है कि राज्य के आदिवासी इलाक़ों में उसका एकछत्र प्रभाव है.

टिपरामोथा अलग राज्य ग्रेटर टिपरालैंड की माँग कर रहा है. इस मुद्दे को राज्य के आदिवासी इलाक़ों में ज़बरदस्त समर्थन मिल रहा है. ख़ासतौर से राज्य के आदिवासी नौजवान इस माँग के समर्थन में टिपरा मोथा के कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं.

त्रिपुरा राज परिवार के उत्तराधिकारी प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा टिपरामोथा के नेता हैं. वे एक समय में कांग्रेस पार्टी में शामिल थे. उनसे बातचीत में यह अहसास होता है कि वे बीजेपी की सरकार से खुश बिलकुल नहीं हैं.

इसलिए वे अगले चुनाव में बीजेपी को हराने की बात कर रहे हैं. लेकिन टिपरा मोथा की एक सीमा भी बंध गई है. यह दल एक अलग टिपरालैंड की माँग कर रहा है. इसलिए बीजेपी ही नहीं, सीपीएम या कांग्रेस के लिए भी इस मामले में टिपरामोथा की शर्त को मानना आसान नहीं है.

टिपरामोथा का कहना है कि वह किसी भी दल के साथ ग्रेटर टिपरालैंड के गठन पर लिखित वचन देने की शर्त पर गठबंधन करने को तैयार है. 

हालाँकि राज्य में बीजेपी को हराने के लिए सीपीआई (एम) और कांग्रेस पार्टी ने साथ आने का फ़ैसला किया है. लेकिन चुनाव से पहले टिपरा मोथा के इस गठबंधन में शामिल होने की संभावनाएँ कम नज़र आ रही हैं.

इस मामले में सीपीआई (एम) के एक नेता से लंबी बातचीत हुई. इस बातचीत में उन्होंने मुझे बताया कि वे प्रद्योत किशोर माणिक्य से कई बार लंबी बैठक कर चुके हैं. 

इन बैठकों में उन्होंने प्रद्योत किशोर माणिक्य को ग्रेटर टिपरालैंड की माँग पर अपने स्टैंड में थोड़ा लचीलापन लाने को कहा है. सीपीआई (एम) के नेता का कहना था कि ग्रेटर टिपरालैंड की माँग से टिपरा मोथा पीछे तो नहीं हट सकता है. क्योंकि ऐसा करने से आदिवासी नौजवानों में उसका असर ख़त्म हो सकता है.

लेकिन वे यह चाहते हैं कि इस मुद्दे पर टिपरा मोथा के नेताओं को लचीला रूख अपनाना चाहिए. सीपीआई (एम) की सैद्धांतिक लाइन छोटे राज्यों के पक्ष में नहीं रही है.

लेकिन हाल ही में जब मैंने एक इंटरव्यू में पार्टी के राज्य सचिव जितेन्द्र चौधरी से ग्रेटर टिपरालैंड की माँग पर सवाल पूछा था तो उनका जवाब में नरमी थी. उन्होंने टिपरालैंड की माँग को ख़ारिज नहीं किया. बल्कि उनका कहना था कि यह माँग संविधान के दायरे में हो रही है. इसलिए इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

हमने त्रिपुरा में घूमते हुए जब लोगों और नेताओं से बातचीत की तो यह अहसास हुआ कि राज्य में सत्ता परिवर्तन का माहौल बना हुआ है. सत्ता परिवर्तन का यह माहौल बनाने का श्रेय सबसे अधिक अगर कोई ले सकता है तो वह आदिवासी दल टिपरा मोथा है.

लेकिन टिपरा मोथा की दो बड़ी समस्याएँ हैं. पहली समस्या ये है कि उसका असर 20 जनजातीय सीटों तक ही सीमित है. यानि टिपरा मोथा अगर इन सभी 20 सीटें भी जीत ले तो अपने दम तो सरकार नहीं बना सकता है. 

उसकी दूसरी समस्या यह है कि वह ग्रेटर टिपरालैंड की माँग पर जो स्टैंड उसने ले लिया है, उसमें लचीलापन लाए बिना कम के कम चुनाव से पहले तो उसका गठबंधन में शामिल होना संभव नहीं होगा.

इस स्थिति में राज्य में बीजेपी, सीपीआई (एम)-कांग्रेस और टिपरामोथा मैदान में होंगे. यानि चुनाव में मुक़ाबला त्रिकोणीय होगा और बीजेपी के नज़रिये से यह सबसे बेहतरीन स्थिति हो सकती है.

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