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तेलंगाना: टाइगर रिजर्व से एक और आदिवासी बस्ती हटाई गई

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तेलंगाना (Tribes of Telangana) के कवल टाइगर रिज़र्व (Kawal Tiger Reserve) में 142 आदिवासी परिवार रहते थे.

इनमें 105 परिवार मैसाम्पेट गाँव (Maisampet) में रहते थे. बाकि के 37 आदिवासी परिवार रामपुर गाँव (Rampur village) में रह रहे थे.

ज़िला प्रशासन का यह कहना है कि विस्थापित परिवार नई बस्तियों में खुश हैं. इसके अलावा यह दावा भी किया गया है कि इन आदिवासियों को जिन नई बस्तियों में बसाया गया है वहां बेहतर सुविधाएं दी गई हैं.

यहां के आदिवासियों को सरकार ने निर्मल ज़िले के कदम मंडल में विस्थापित करने की योजना बनाई  है.

142 आदिवासी परिवार को बुधवार को इनके नए घरों में स्थानांतरित कर दिया गया है.

सरकार ने सभी आदिवासियों से यह वादा किया है कि अगर वे सरकार द्वारा बताए गए स्थान पर खुशी-खुशी विस्थापित हो जाते है, तो उन्हें सभी मूलभूत सुविधाएं मिलेगी.

इसके साथ ही सरकार ने आदिवासियों को आश्वासन दिया है कि इन्हें विस्थापन के बाद पक्का मकान, बोरवेल का पानी, 2 एकड़ खेती के लिए ज़मीन और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैसी सभी मूलभूत सुविधा दी जाएंगी.

अधिकारियों के अनुसार कवल टाइगर रिज़र्व को 2012 में आरक्षित क्षेत्र बना गया था. जिसके बाद 2016 से प्रशासन आदिवासियों को विस्थापन के लिए मनाने में लगी थी.

आदिवसियों को विस्थापन के लिए अलग-अलग कार्यक्रम के ज़रिए प्रेरित किया जाता था.

अधिकारियों ने बताया कि यह क्षेत्र टाइगर रिज़र्व है, जिसके कारण यहां आदिवासियों तक कई मूलभूत सुविधा पहुंचाने में रूकावट आती थी.

जल्द ही मैसाम्पेट और रामपुर में रहने वाले सभी आदिवासी विस्थापन के लिए तैयार हो गए. जिसके बाद इन सभी के लिए निर्मल ज़िले के कदम मंडल में पक्का मकान जैसी सुविधा का प्रबंध किया गया.

पक्का मकान बनाना और अन्य सुविधाओं के प्रबंध में करोड़ों रूपये खर्च हुए है. जिसमें से 60 प्रतिशत यानि 21.03 करोड़ खर्चा केंद्र सरकार ने उठाया है बाकि 40 प्रतिशत राज्य सरकार ने खर्च किया है.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि नई बस्तियों में नए मकानों में आदिवासियों को रहने में सुविधा होगी. इसके अलावा यहां पर बिजली और पानी की सुविधा भी दी गई है.

सरकार ने आदिवासियों को बसाने के साथ ही उन्हें खेती के लिए दो एकड़ ज़मीन देने का वादा भी किया है.

लेकिन जब आदिवासी जंगल में रहता है तो खेती के अलावा उसके पास जंगल से मिलने वाले उत्पादों यानि फल, सब्ज़ी और कांदे जमा करने का विकल्प भी रहता है.

नई जगह बसा दिये जाने पर यह विकल्प अक्सर आदिवासियों से छीन जाता है. इसके अलावा जब आदिवासियों के परिवार बढ़ते जाते हैं तो वे जंगल में सुविधा अनुसार अपना घर बना लेते हैं.

लेकिन नई बस्तियों में उनके पास यह विकल्प भी नहीं बचता है.

इस लिहाज़ से आदिवासी के विस्थापन से उसे अंतत: घाटे का सौदा मिलता है. सरकार उनके इस घाटे को शिक्षा और रोज़गार के नए अवसर दे कर पूरा कर सकती है.

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