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छत्तीसगढ़ : विधान सभा चुनाव से पहले बड़े आदिवासी नेता ने बीजेपी छोड़ी

छत्तीसगढ़ में बीजेपी को विधान सभा चुनाव से पहले तगड़ा झटका लगा है. राज्य के बड़े आदिवासी नेता और अविभाजित मध्य प्रदेश में पार्टी के अध्यक्ष रहे नंदकुमार साय ने पार्टी की सदस्यता से इस्तिफा दे दिया है. 

नंद कु्मार साय तीन बार के लोक सभा सांसद, दो बार राज्यसभा सांसद इसके अलावा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और तीन बार के विधायक रह चुके हैं.

नंद कुमार साय ने बीजेपी के प्राथमिकी सदस्यता सहित सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने अपना इस्तीफा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को भेजा है और इस्तीफा  उनसे स्वीकार करने का आग्रह किया है.

प्रदेश में इसी साल होने हैं विधानसभा के चुनाव

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को लगभग 6 महीने ही बचे हुए हैं. ऐसे में बीजेपी के वरिष्ठ नेता नंद कुमार साय ने भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता के साथ ही पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है.

नंद कुमार साय के भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिकता सदस्य और बीजेपी के सभी पदों से इस्तीफा देने का लेटर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस लेटर में उन्होंने अपने इस्तीफा के कारणों को बताते हुए बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को अपना इस्तीफा भेजा है और अनुरोध किया है कि उनके इस्तीफे को स्वीकार किया जाए.

नंद कुमार का राजनीतिक सफर

1977 में पहली बार बीजेपी की तरफ से नंद कुमार साय मध्य प्रदेश विधानसभा पहुंचे थे. साय अविभाजित मध्य प्रदेश में 3 बार एमएलए, 3 बार लोकसभा सांसद और 2 बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. इसके अलावा वह छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के पहले विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता भी रहे हैं. 

2017 में उन्हें राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. वह 1997 से 2000 के बीच मध्य प्रदेश बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. राज्य गठन के बाद नंद कुमार साय राज्य के विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बने. वर्तमान में वह संगठन महामंत्री के पद पर थे.

पार्टी में नज़ंरअंदाज़ किये जाने से दुखी थे

बीजेपी के वरिष्ठ नेता नंद कुमार साय ने इस्तीफा देने वाले पत्र में लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी के गठन एवं अस्तिव में आने के प्रारंभ से लेकर आज तक पार्टी द्वारा विभिन्न महत्वपूर्ण पदों एवं उत्तरादायित्व की जितनी भी जिम्मेदारी मुझे दी गई. 

उसे पूरे समर्पण एवं कर्तव्य परायणता के साथ मैंने निभाया. पार्टी ने मुझे जो जिम्मेदारियां दी उसके लिए मैं पार्टी का आभार व्यक्त करता हूं, परन्तु पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी में मेरी छवि को धूमिल करने की कोशिश की गई है. 

मुझ पर झूठे आरोप लगाकर और अन्य गतिविधियों के माध्यम से  मेरी गरिमा को ठेस पहुंचाई जा रही है जिससे में अत्यंत आहत महसूस कर रहा हूं. इसलिए बहुत गहराई से विचार करने के पश्चात मैं भारतीय जनता पार्टी  की अपनी प्राथमिक सदस्यता एवं अपने सभी पदों से इस्तीफा दे रहा हूं. अतः मेरी इस्तीफा स्वीकार करने की कृपा करें.

प्रदेश अध्यक्ष बोले कोई गलतफहमी हुई होगी, हम उन्हें मना लेंगे

वहीं बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने साय के इस्तीफा दिए जाने लो लेकर कहा कि नंदकुमार साय जी का इस्तीफा मिला है, उन्हें कोई गलतफहमी हुई होगी तो हम बात करेंगे, वह पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं उनका बड़ा योगदान रहा है, हम उनसे बातचीत करेंगे. 

उन्हें मनाने के हमारी पूरी कोशिश रहेगी. साव ने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व को इस बात की जानकारी दे दी गई है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि साव से उनकी बातचीत होती रहती थी लेकिन उन्होंने कभी भी ऐसी कोई बात नहीं कही. अभी उनका इस्तीफा आया है वह वरिष्ठ नेता हैं हम उनसे बातचीत करेंगे और कोई रास्ता निकालेंगे.

कांग्रेस ने आदिवासी नेता के साथ अन्याय का लगाया आरोप

इधर कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने इस इस्तीफ़े पर कहा कि भारतीय जनता पार्टी में आदिवासी नेताओं को उपेक्षित किया जा रहा है, उनका अपमान किया गया जा रहा है जिसका नतीजा है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता नंद कुमार साय ने भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. 

उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी देश के एक बड़े वर्ग के साथ अन्याय और उपेक्षा कर रही है. साय यह अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाए और बीजेपी छोड़ने को मजबूर हो गए.

आदिवासी नेताओं को पार्टियों में नज़रअंदाज़ किया जाता है

छत्तीसगढ़ में बीजेपी के इस बड़े नेता का इस्तीफ़ा भारत के राजनीतिक दलों में पुरानी समस्या का ही हिस्सा है. भारत में कुल आबादी का 10 प्रतिशत आदिवासी है.

ज़ाहिर है इस आबादी के वोट भी मायने रखते हैं. इसलिए लगभग हर राष्ट्रीय दल आदिवासी समुदाय के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करता है.

लेकिन अभी भी राजनीतिक दलों में यह काम प्रतीकात्मक ही ज़्यादा है. मसलन जब संसद या विधान सभा में बहस होती है तो शायद ही किसी गंभीर या महत्वपूर्ण मसलों पर आदिवासी नेताओं को बोलने के लिए पार्टी नामित करती है.

राजनीतिक दल अपने भीतर के फैसलों में भी आदिवासी प्रतिनिधियों को कम ही शामिल करते हैं. राष्ट्रीय दल आदिवासी बहुल राज्यों में भी ग़ैर आदिवासी नेताओं को ही मुख्यमंत्री या अन्य महत्वपूर्ण पदों के लिए नामित करते हैं.

छत्तीसगढ़ में जब बीजेपी की सरकार थी तो रमन सिंह मुख्यमंत्री बने थे, अब कांग्रेस की सरकार है तो भूपेश बघेल मुख्यमंत्री हैं. हाल ही में आदिवासी बहुल त्रिपुरा में चुनाव के बाद बीजेपी ने माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया है.

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