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आदिवासियों की संस्कृति और बीज बचाने की अनूठी पहल का उत्सव

अट्टापडी के आदिवासी इलाकों में मानसून के स्वागत की सदियों पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करने के प्रयास किये जा रहे हैं. इसके लिए एक महोत्सव की शुरुआत की गई थी जिसे अब हर साल मनाया जाता है.

पिछले तीन साल से आदिवासी समुदाय के बीच छोटे अनाज की खेती को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से कम्बलम नामक इस उत्सव का आयोजन किया जा रहा है.

इस महोत्सव का आयोजन 18 जून को तिरुवनंनतपुर के ऊट्टुकुझी, पलक्कड़ के शोलायार और वायनाड़ के ऊरु गांव में होगा और यह महोत्सव दो हफ़्तों तक चलेगा.

इस त्योहार की शुरुआत छोटे अनाजों की बुआई से होगी. स्थानीय आदिवासी ज़मीन तैयार करेंगे और रागी, बाजरा, मक्का, कोको जैसी पारंपरिक फसलें बोएंगे.

 इस महोत्सव की शुरुआत विथु कम्बलम से होगी. यह एक औपचारिक कार्यक्रम है जिसमें आदिवासी पुजारी बीज, फल, नारियल आदि से भूमि पूजन करके धरती माता का आशीर्वाद मांगते है.

इसके बाद बीज बोने की रस्म होती है और पुरुष, महिलाएँ और बच्चे गीत गाते हैं और नाचते हैं.

फसल की कटाई  को क्योतू कम्बलम कहा जाता है और उस समय भी उत्सव मनाया जाता है.  

इस वर्ष इस महोत्सव का आयोजन कुदुम्बश्री आदिवासी विकास परियोजना के अंतर्गत पंचायत समीति द्वारा किया जा रहा है.

यह बताया गया है कि इस आयोजन के दौरान कृषि पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जाएगा. इसके लिए पंजीकरण के माध्यम से पर्यटकों को आमंत्रित भी किया गया है.

जो लोग इस उत्सव में शामिल होना चाहते हैं उनके लिए पंजीकरण शुल्क 1500 रुपये रखा गया है.

पंजीकरण करने वाले पर्यटकों को आवास और भोजन दिया जाएगा. इसी बहाने पर्यटकों को आदिवासियों द्वारा उगाए छोटे अनाज से बना पारंपरिक भोजन खाने का भी अवसर मिलेगा.

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