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एक और आदिवासी समुदाय का दुनिया से नाम मिटा, जुल्म और हमले कारण रहे

ब्राजील के अमेज़ॅन में अपनी जनजाति में एक मात्र बचे आदमी की मौत हो गई. इसके साथ ही दुनिया से एक और आदिवासी समुदाय, भाषा और संस्कृति का भी अंत हो गया.

इस ख़बर से दुनिया भर के मानव वैज्ञानिकों और मूल निवासियों (Indigenous people) पर काम करने वालों में शोक की लहर है. 

अमेज़न के जंगल में रहने वाले इस आदमी का नाम एंडो डो बुराको (indio do Buraco) या फिर गड्डों का मूलनिवासी (the indigineous man of holes) के तौर पर जाना जाता था

क्योंकि उसका अधिकांश समय खुद को छुपा कर रखने के लिए गड्डे खोदने में ही बीत जाता था

दरअसल बाहरी दुनिया के लोगों ने दशकों तक उसके समुदाय पर हमले किये. इन हमलों में धीरे धीरे उसके पूरे समुदाय का सफाया हो गया. लेकिन वह खुद को बचाने में कामयाब हो गया. 

उसने किसी को भी अपने करीब नहीं पहुंचने दिया. अगर कोई उसके करीब जाता तो वह तीरों से हमला कर देता था. इस सिलसले में मूल निवासियों और आदिवासियों के लिए काम करने वाली संस्था ने कहा है, ‘जिस निर्दयता से उसके परिवार, दोस्तों और पूरे परिवार का ख़ात्मा कर दिया गया. जिस तरह से उसकी ज़मीन पर लगातार हमला हुआ, उसके पास खुद को बचाने के लिए बाहरी संपर्क से दूर रहना ही एक रास्ता था. “

इस संगठन के बयान में आगे कहा गया है, “इस तरह से एक और आदिवासी समुदाय का असतित्व ही समाप्त हो गया है. कुछ लोग कहेंगे कि यह समुदाय विलुप्त हो गया है. लेकिन सच्चाई यह नहीं है. सच्चाई तो यह है कि इस समुदाय के वजूद को मिटाया गया है. इस समुदाय का वजूद बाहरी लोगों के आक्रमण और अत्याचारों से मिटा है.”

अमेज़न के घने जंगलों के बारे में यह माना जाता है कि कम से कम 30 आदिवासी समुदाय वहां ऐसे हैं जिनके बारे में अभी तक दुनिया को कुछ नहीं पता है. 

भारत में भी हैं ऐसे समुदाय

अंडमान के सेंटिनिली द्वीप पर रहने वाला समुदाय उस वक्त चर्चा में आ गया था जब उनसे संपर्क की कोशिश कर रहे एक अमरिका के मिशनरी को उन्होंने मार दिया था. 

यह मिशनरी ग़ैर कानूनी तरीके से इस द्वीप पर पहुंच गया था. इस घटना के बारे में हासिल जानकारी के अनुसार इस द्वीक के आदिवासियों ने इस मिशनरी से मिलने में कोई रूचि नहीं दिखाई.

लेकिन यह मिशनरी इनसे मिलने पर अड़ा रहा और आखिरकार उनके तीरों का शिकार हो गया. इन आदिवासियों की कुल कितनी संख्या है इसके बारे में सही सही किसी को नहीं पता है. लेकिन सभी अनुमान बताते हैं कि इनकी संख्या 100 से ज़्यादा नहीं बची है.

इसी तरह से एक समय अंडमान का सबसे बड़ा समुदाय ग्रेट अंडमानी का भी वजूद भी लगभग मिट चुका है. उनकी भाषा को जानने वाला अब उनमें एक भी नहीं बचा है.

लिटिल अंडमान के ओंग भी लगातार ख़तरे में हैं और अब उनका एक ही ग्रुप बचा है. अंडमान द्वीप समूह में जारवा एक और जनजाति है जिसके बारे में दुनिया भर में चर्चा होती रही है.

अंडमान की आदिवासी समुदायों के अलावा भी भारत में कई ऐसी जनजातियां हैं जिनकी जनसंख्या 1000 से भी कम बची है. 

संपर्क ख़तरनाक साबित हुआ है

आज की दुनिया में किसी समुदाय का अलग थलग रहना बेशक उचित नज़र नहीं आता है. लेकिन इतिहास बताता है कि जब भी एकांत में रहने वाले समुदायों का बाहरी दुनिया यानि तथाकथित सभ्य समाज से संपर्क हुआ है, उनका नुकसान हुआ है. 

इस तरह के उदाहरण भारत सहित दुनिया भर के कई देशों में मौजूद हैं. अमेज़न के इस आदिवासी की मौत के बाद यह कहा जा सकता है कि काश इस आदिवासी से कोई संपर्क किसी का हुआ होता.

अगर संपर्क होता तो यह पता चलता कि उनके समुदाय की क्या कहानी थी. वो हमारी दुनिया को किस नज़र से देखते हैं. लेकिन सच्चाई यही है कि हम कहानी जानने से ज़्यादा उनकी कहानी को मिटाने पर तुले रहते हैं. 

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