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भुंजिया आदिवासी: राष्ट्रपति से मिलने से ज़्यादा हवाई जहाज़ में सफ़र के लिए ज़्यादा उत्साहित

ओडिशा के नोपाड़ा ज़िले सुनाबेड़ा अभयारण्य इलाक़े में एक आदिवासी पति पत्नी की काफ़ी चर्चा हो रही है. इन पति पत्नी का नाम भुजबल माझी और कुंजीबाई माझी है. ये दोनों भुंजिया आदिवासी समुदाय से हैं. इन दोनों को आजकल इस पूरे इलाक़े में वीआईपी की तरह देखा जा रहा है.

इसकी वजह कि ये लोग जल्दी ही राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्मु, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाक़ात करेंगे. इनको बाक़ायदा न्यौता दे कर दिल्ली बुलाया गया है. यह आदिवासी जोड़ी 26 जनवरी यानि गणतंत्र दिवस के लिए विशेष मेहमानों की सूचि में शामिल हैं.

यह बताया गया है कि वे 22 जनवरी को पहले ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर पहुंचेंग और वहाँ से फिर दिल्ली की फ़्लाइट लेंगे. उनके परिवार के लोगों ने बताया है कि भुंजिया आदिवासी समुदाय के ये दोनों ही लोग दिल्ली में बुलाए जाने की ख़बर से काफ़ी खुश हैं. लेकिन राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे बड़े नेताओं से मिलने से ज़्यादा वो इस बात से उत्साहित हैं कि वे हावी जहाज़ में बैठ कर दिल्ली जाएँगे.

उनके परिवार के लोग बताते हैं कि वे आपस में भी और दूसरे लोगों से भी हवाई जहाज़ के सफ़र को लेकर अपनी ख़ुशी और रोमांच को बता रहे हैं. यह भी बताया गया है कि जब वे दिल्ली से लौट कर अपने गाँव आएँगे तो उनके लिए विशेष दावत दी जाएगी. इस दावत में उनका पूरा गाँव शामिल होगा. 

ओडिशा के कालाहांडी के सुनाबेड़ा के पठारी इलाक़े में रहने वाले भुंजिया आदिवासियों की कम ही चर्चा होती है. इनकी जनसंख्या भी बहुत ज़्यादा नहीं है. इस आदिवासी समुदाय को दो उप समुदायों में देखा जाता है,चौखुटिया और दूसरा चिंदा भूंजिया.

भुंजिया का शाब्दिक अर्थ धरती पर निर्भर रहने वाले बताया जाता है. इस समुदाय के चौखुटिया भूंजिया आदिवासी को विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति (PVTG) की श्रेणी में रखा गया है. 

रसोई को सबसे ख़ास माना जाता है

चौखुटिया आदिवासियों के घर अभी भी कच्चे ही मिलते हैं. इन घरों पर छप्पर डाला जाता है. इन घरों में रसोई सबसे ज़्यादा ख़ास जगह होती है. इस समुदाय के लोगों के घरों में रसोई घर में रहने वाले हिस्से से थोड़ी दूरी पर बनाई जाती है.

रसोई में परिवार के सदस्यों के अलावा किसी का भी प्रवेश वर्जित होता है. यहाँ तक कि परिवार की विवाहित बेटी के भी रसोई में प्रवेश पर भी पाबंदी होती है. रसोई को लाल मिट्टी से लीपा जाता है. 

औरतें साधारण किंतु ख़ास वेशभूषा में होती हैं

भूंजिया महिलाएँ कपड़े के नाम पर एक ही साड़ी शरीर पर पहनती हैं. साड़ी को ही कमल से बांध कर बंसल से निकाला जाता है और कंधे पर बांधते हैं. ये महिलाएँ कुछ ख़ास तरह के आभूषण पहनती हैं. जिसमें मालाएँ प्रमुख होती हैं. 

भूंजिया महिलाएँ बहुत ही क़रीने से अपने बालों को संवारती हैं. ये महिलाएँ तेल लगा कर अपने बालों को कंघी करती हैं. कंघी करने के बाद सिर के पीछे की तरफ़ एक ख़ास अंदाज़ में जूड़ा बनाया जाता है. 

इस समुदाय के पुरूष एक लँगोटी में ही मिलते हैं. हालाँकि अब जिन लोगों की आर्थिक हालत थोड़ी बेहतर हुई है उनके पुरूष क़मीज़ भी पहनते हैं. 

गाँव और बस्ती

भुंजिया गाँवों या बस्तियों का साइज़ अलग अलग होता है. कहीं कहीं सिर्फ़ 8-10 घरों की बस्तियाँ होती हैं तो कहीं पर 50-60 परिवारों का गाँव भी मिलता है. कई अन्य आदिवासी समुदायों की तरह ये आदिवासी भी मानते हैं कि उनके देवी देवता बुरी आत्माओं से गाँव को बचाते हैं. 

भुंजिया घरों की एक ख़ास बात ये होती है कि एक घर के खुले आँगन में कम से कम तीन झोपड़ी बनाई जाती हैं. इसमें से सबसे बड़ी झोपड़ी बैठक और स्टोर के इस्तेमाल में आती है. जबकि एक झोपड़ी या छप्पर जानवरों के लिए बनाई जाती है. 

जीविका के साधन

भुंजिया आदिवासी की आर्थिक गतिविधियाँ ख़ुद को ज़िंदा रखने भर तक ही सीमित होती हैं. ये आदिवासी ज़िंदा रहने के लिए छोटी मोटी खेती करते हैं. इसके अलावा ये आदिवासी पशु पालन करते हैं. 

पशु पालन में बकरी पाली जाती हैं. बकरी पालन आमतौर पर देवी देवताओं को बलि चढ़ाने के लिए किया जाता है. इसके अलावा अगर परिवार को अचानक किसी ख़र्च का सामना करना पड़े तो हाट में बकरे बेच दिए जाते हैं.

खेती और पशु पालन के अलावा जंगल से भी ये आदिवासी खाना जुटाते हैं. 

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