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आदिवासी ईसाई के शव को दफ़नाने पर तनाव की स्थिति बनी

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित नारायणपुर ज़िले के भाटपाल गांव में एक बार फिर एक कब्र के लिए दो गज जमीन पर वाद हो रहा है. इस गांव में एक ईसाई परिवार के मृतक को गांव में दफ़नाए जाने का विरोध किया जा रहा है. 

बेनूर परगना के गोंडवाना समाज के लोगों ने कलेक्टर को ज्ञापन देकर धर्मांतरित परिवार के शव को कब्र से निकालकर गांव से दूर ईसाई कब्रिस्तान में दफन करने की मांग की है. इससे पहले बेनूर थाना प्रभारी को भी समाज ने एक शिकायती पत्र दिया था. 

इससे पहले इसी गांव में जनवरी महीने में हुए विवाद के बाद चर्च में तोड़फोड़ की गई थी. जिसमें नारायणपुर के एसपी सदानंद कुमार के सिर में चोट आई थी. जिले में फिर से धर्मांतरण को लेकर दो पक्षों में तनाव की स्थिति बन रही है. पिछले दो दिन से जिला और पुलिस प्रशासन के अधिकारी दोनों पक्ष के लोगों को समझाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन बात बनती नहीं दिख रही है.

जनजाति सुरक्षा मंच ने आग में घी डाला

इस बीच सोमवार की शाम जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने एक प्रैस कॉंफ्रेंस की है.  इस पत्रकार वार्ता में मूल आदिवासी धर्म को छोड़कर ईसाई धर्म से जुड़े परिवार के सदस्य की मौत होने के बाद शव को गांव में दफन करने पर कड़ी आपत्ति जताई गई. 

जनजाति सुरक्षा मंच ने बस्तर में शव दफनाने के बढ़ते मामले को लेकर चिंता जाहिर की और जन समस्या निवारण शिविर की तर्ज पर गांव-गांव में धर्मांतरित परिवार की पहचान के लिए सरकार से चौपाल लगाने की मांग की है.

जनजाति सुरक्षा मंच ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि, 14 जुलाई रविवार को लहरू राम पिता सकरू राम ग्राम भाटपाल थाना बेनूर की मौत हो गई. इसके बाद उसके बेटे पिता का शव गांव के देव स्थल के पास दफन कर दिया. जनजाति सुरक्षा मंच का दावा है कि शव दफ़नाने के लिए गांव वालों को ना तो सूचित किया गया और ना ही इसके लिए गांव के लोगों से अनुमति ली गई थी.

जनजाति सुरक्षा मंच छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में आदिवासी समुदाय में धर्मांतरण को मुद्दा बना कर डीलिस्टिंग आंदोलन चला रहा है. यानि यह संगठन धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने की मांग करता है.

आदिवासी समाज में फूट

छत्तीसगढ़ के अलावा कई राज्यों में धर्मांतरण का मुद्दा काफ़ी पुराना है. राष्ट्रीय स्यंव सेवक संघ (RSS) के संगठन आदिवासी इलाकों में लगातार धर्मातंरण को मुद्दा बनाते हुए घर वापसी जैसे कार्यक्रम चलाते रहे हैं.

इस मुहिम में ईसाई धर्म प्रचारकों और चर्च पर यह आरोप लगाया जाता है कि वे डरा धमका कर या फिर लालच दे कर आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कराते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में जनजाति सुरक्षा मंच नाम के संगठन ने नौकरियों में आरक्षण को धर्मांतरण से जोड़ कर बड़ी सभाएं और रैलियां आदिवासी इलाकों में की हैं.

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में इस संगठन ने इस मुद्दे पर आदिवासी समुदायों में ध्रुवीकरण पैदा करने में कामयाबी पाई है. 

(तस्वीर जनवरी महीने के प्रदर्शन की है.)

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