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बस्तर: बांस से बनी तुपकी बंदूक और आदिवासी त्योहार गोंचा की कहानी

छत्तीसगढ़(Tribes of Chattisgarh) के बस्तर का गोंचा महोत्सव (Goncha Festival) आदिवासियों में काफी लोकप्रिय है. यह त्योहार हर साल रथ यात्रा के दौरान मनाया जाता है. इसलिए इसे रथ त्योहार भी कहते हैं.

इस उत्सव में भाग लेने के लिए बस्तर के विभिन्न हिस्सों से आदिवासी आते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार बस्तर में 14,13,199 जनसंख्या है, इनमें से 70 प्रतिशत आबादी आदिवासी हैं.

छत्तीसगढ़ के इस महोत्सव के साथ कई रीति रिवाज जुड़े हुए हैं. जिन्में हिंदु रीति-रिवाज भी शामिल हैं.

त्योहार का नाम गोंचा ही क्यों पड़ा

गोंचा फल के एक प्रकार को कहा जाता है. इसी फल के नाम पर इस त्योहार का नाम गोंचा पड़ा है.

यह फल जंगली लताओं के बीच उगता है. इस उत्सव के दौरान बांस का प्रयोग नकली पिस्तौल बनाने के लिए किया जाता है. इस पिस्तौल का निमार्ण आदिवासी अपनी परंपरा निभाने के लिए करते हैं.

इसके अलावा गोंचा फल का उपयोग गोली के रूप में किया जाता है. यह पिस्तौल नकली होती है, जिसे मनोरंजन के उद्यश्य से बनाया जाता है. इस बंदूक को आदिवासी तुपकी कहते हैं.

यह त्योहार हर साल जुलाई के महीने में मनाया जाता है.

इस त्योहार के आने से एक महीने पहले ही स्थानीय बज़ारों में तुपकी मिलना शुरू हो जाती है.

गोंचा उत्सव के दौरान लोग एक दूसरे को तुपकी से गोली मारते है और मौज-मस्ती करते हैं.

ऐसी भी कहा जाता है की यह त्योहार 600 साल पुराना है.

इसके अलावा आदिवासियों के इस त्योहार को बस्तर में होने वाले हिंदु त्योहार रथ यात्रा से भी जोड़ा जाता है.

आदिवासियों द्वारा बनाई गई तुपकी बंदूक से हिंदू उत्सव रथ यात्रा में सलामी दी जाती है.

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