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पोक्सो एक्ट आदिवासी इलाकों में ज़ुल्म और शोषण का हथियार बना?

ओडिशा हाई कोर्ट (Odisha High Court) ने कहा है कि पोक्सो एक्ट के तहत आदिवासियों पर ज़ुल्म हो रहा है. यह कहते हुए हाई कोर्ट ने पोक्सो एक्ट के तहत दायर कई मुकदमों को ख़ारिज कर दिया है.

अपने विस्तृत फ़ैसले में कोर्ट ने कहा है कि देश की दंड संहिता के साथ साथ आदिवासियों के कस्टमरी लॉ यानि प्रथागत कानूनों को भी समझने की ज़रूरत है.  

हाई कोर्ट में मौजूद न्यायमूर्ति सिबो शंकर मिश्रा (Justice Sibo Sankar Mishra) ने कहा कि पोक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत कई आदिवासियों की जबरन गिरफ्तारी की गई है.

आदिवासी समाज में अक्सर कस्टमरी लॉ या पांरपरिक कानूनों का ही पालन होता है.

यह कस्मटरी लॉ आदिवासी समाज के तौर-तरिकों के अनुसार बनाए गए है. इसलिए यह कभी-कभी संविधान में मौजूद प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं.

ओडिशा हाई कोर्ट ने आदिवासी कस्टमरी लॉ और संविधान में मौजूद कानूनों के इन्हीं अंतर पर जोर दिया.

हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सिबो शंकर आईपीसी धारा 482 के तहत याचिकर्ताओं पर सुनवाई कर रहे थे.

इन याचिकर्ताओं की मांग थी कि पोक्सों एक्ट के तहत उन पर हो रही कार्यवाही को रद्द किया जाए.

याचिकर्ताओं का कहना था कि उन्होंने अपने कॉस्टमरी लॉ के अनुसार शादी की है. ऐसे में उन पर लगे आरोप गलत है.

इसके अलावा पोक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत उन पर हो रही कार्यवाही और गिरफ्तारी अन्याय है.

इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यायमूर्ति सिबो शंकर ने कहा कि आदिवासियों के अपने रीति रिवाज और पंरपराएं है. इन पंरपराओं के तहत आदिवासी समाज में लड़के-लड़कियां युवावस्था में पहुंचने के बाद शादी कर लेते है.

आदिवासी समाज में 21 वर्षीय लड़के 18 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ शादी करते है. जो उनके सामाजिक कानूनों या कास्टमरी लॉ के हिसाब से ठीक है.

लेकिन संविधान में मौजूद पोक्सो एक्ट के हिसाब से यह गलत ठहराया गया है.

पोक्सो एक्ट 2012 में लाया गया था. यह कानून नाबालिग बच्चियों के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न के निपटने के लिए बनाया गया था.

यह कानून 18 साल से कम उम्र के लड़के या लड़कियों के साथ शरीरिक संबंधों की अनुमति नहीं देता.

इसलिए आदिवासी समाज में 18 साल से कम उम्र के लड़कियों के साथ शादी करना भी गैर कानूनी माना जा रहा है. इस कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र की लड़की यौन संबंध बनाने की सहमति दे भी दो तो भी इस तरह के संबंध को अपराध ही माना जाता है.

क्योंकि कानून के अनुसार इस उम्र की लड़की की समझ उतनी विकसित नहीं होती है कि वह ऐसे संबंध का भला बुरा समझ सके.

कोर्ट ने इस मामले पर क्या कहा?

ओडिशा हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सिबो शंकर मिश्रा ने कहा कि आदिवासियों के अपनी रीति रिवाज और पंरपराएं है.

इन पंरपराओं के अनुसार 21 वर्षीय आदिवासी लड़के 18 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ शादी करते है.

उन्होंने यह भी कहा कि देश में आदिवासी इतने शिक्षित नहीं है. इसलिए उन्हें पोक्सो एक्ट के तहत फंसा दिया जाता है.

इसके अलावा न्यायमूर्ति सिबो शंकर मिश्रा ने कहा कि आदिवासी समाज में लड़के-लड़कियों को शादी के योग्य उनके पांरपरिक कानूनों के अनुसार माना जाता है.

उन्होंने यह भी बताया कि मुस्लिम समाज के निजी कानूनों में भी लड़की के मासिक धर्म आ जाने पर, उसे विवाह योग्य मान लिया जाता है.

ऐसे में यह सवाल जरूर उठता है कि क्या 18 साल से कम उम्र के लड़के-लड़कियों की शादी वैध मानी जानी चाहिए?

ओडिशा हाईकोर्ट का यह फैसला आदिवासी इलाकों में दायर पोक्सो के कई मामलों में नज़ीर बन सकता है.

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