केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अपील की है कि वे इस साल के जनजातीय गौरव दिवस को पूरे उत्साह के साथ मनाएं.
जनजातीय गौरव दिवस की शुरूआत नरेन्द्र मोदी सरकार ने की है. इसकी शुरूआत साल 2021 में की गई जनजातीय गौरव दिवस 15 नवंबर यानि बिरसा मुंडा की जयंती के दिन मनाया जाता है.
इसका उद्देश्य भारत के आदिवासी समाज की संस्कृति, योगदान और उनके संघर्षों को सम्मान देना है.
यह दिवस इस बार खास है, क्योंकि यह बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती वर्ष के समापन को भी चिह्नित करेगा.
केंद्र सरकार ने इस अवसर पर 1 नवंबर से 15 नवंबर तक राज्य और ज़िला स्तर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करने का आग्रह किया है.
सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजा पत्र
जनजातीय कार्य मंत्रालय ने हाल ही में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जनजातीय कल्याण विभागों को एक पत्र भेजा है.
पत्र में कहा गया है कि राज्य सरकारें उद्घाटन कार्यक्रमों, लाभ वितरण, नई जनजातीय योजनाओं की शुरुआत, क्षमता निर्माण और सरकारी योजनाओं के प्रचार में सक्रिय रूप से भाग लें.
केंद्र ने जिन योजनाओं पर विशेष रूप से ज़ोर दिया है, उनमें प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन (PM-JANMAN), धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान और आदि कर्मयोगी अभियान शामिल हैं.
मॉडल आचार संहिता के बीच भी आयोजन
कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों की वजह से आचार संहिता यानी मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट (MCC) लागू है.
मंत्रालय ने कहा है कि ऐसे राज्यों को कार्यक्रमों का आयोजन आचार संहिता के दायरे में रहकर करना होगा.
गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उत्सव
केंद्र की योजना है कि इस बार जनजातीय गौरव दिवस सिर्फ एक समारोह नहीं बल्कि जनजातीय पहचान और विकास योजनाओं का उत्सव बने.
इसके लिए राज्यों को कहा गया है कि वे “आदिवासी ग्राम विज़न 2030” (Tribal Village Vision 2030) दस्तावेज़ों की प्रदर्शनी लगाएं.
PM-JANMAN लाभार्थियों के साथ संवाद आयोजित करें, एकलव्य विद्यालयों के विद्यार्थियों की पेंटिंग प्रदर्शनी कराएं और जनजागरूकता अभियान चलाएं.
स्वास्थ्य शिविरों और मोबाइल मेडिकल यूनिट्स के ज़रिए जनजातीय स्वास्थ्य पर विशेष जागरूकता अभियान चलाने की भी सिफारिश की गई है.
जनजातीय गौरव दिवस – संस्कृति या पहचान का सवाल?
जनजातीय गौरव दिवस को लेकर समाज में कई तरह की बहसें भी हैं.
कुछ लोग इसे आदिवासी संस्कृति और योगदान को सम्मान देने का अवसरमानते हैं जबकि कुछ मानते हैं कि यह विश्व आदिवासी दिवस (International Day of The World’s Indigenous People) की भारतीय रूपरेखा है, जिसमें “इंडिजीनस” या “आदिवासी” जैसे शब्दों से परहेज़ किया गया है.
विश्व आदिवासी दिवस का मकसद दुनिया भर में आदिवासियों के अधिकारों को वैश्विक मंच पर स्वीकार करना है.
विश्व आदिवासी दिवस आदिवासी पहचान, भाषा और जल-जंगल-ज़मीन जैसे मुद्दों पर बहस चाहता है जबकि जनजातीय गौरव दिवस आदिवासियों की संस्कृति, सम्मान और गौरव जैसी भावनात्मक बातों से जुड़ा है.
विश्व आदिवासी दिवस और जनजातीय गौरव दिवस में सिर्फ तारीख या नाम का फ़र्क नहीं है. ये फर्क विचारधारा, राजनीति और पहचान का भी है.
सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंति उत्सव को नया नाम दे दिया है. लेकिन इंडिजीनस या आदिवासी शब्द को पूरी तरह से नजरअंदाज़ कर दिया गया है.
कुछ लोग सभी राज्यों द्वारा जनजातीय गौरव दिवस को मनाने के लिए दिए जा रहे ज़ोर को आदिवासी पहचान को बहुसंख्यक पहचान में ‘विलय’ कर देने की कोशिश मानते हैं.

