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विशाखापत्तनम के इकलौते आदिवासी गांव में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी बनी हुई है

आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम की हलचल भरी शहर सीमा से सिर्फ 15 किलोमीटर दूर स्थित संभुवानीपालेम, इस क्षेत्र का एकमात्र आदिवासी गांव है. करीब 65 परिवारों और 300 से 350 मन्ने डोरा आदिवासियों का घर, यह गांव कंबालाकोंडा वाइल्डलाइफ सेंचुरी आरक्षित जंगल के बीच है.

शहरी क्षेत्रों से नज़दीक होने के बावजूद संभुवानीपालेम कई चुनौतियों से जूझ रहा है. अफ़सोस की बात ये है कि यह गाँव नगरपालिका क्षेत्र में होते हुए भी मामूली सी सुविधाओं से भी वंचित है.

यह गांव भीमिली निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यहां प्रशासन अच्छी सड़क कनेक्टिविटी का दावा करता है.

हालांकि, ग्रामीण इस महत्वपूर्ण मार्ग पर स्ट्रीट लाइट के अभाव पर अफसोस जताते हैं. क्योंकि पैदल चलने वालों और मोटर चालकों के लिए रात का समय खतरनाक हो जाता है.

ग्रामीणों ने सड़कों पर खुले में बहने वाले सीवेज को लगातार अपने स्वास्थ्य के लिए ख़तरा बताते हुए एक बेहतर जल निकासी प्रणाली की सख्त आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला.

ग्राम प्रधान वी डेमुडु ने अफसोस जताते हुए कहा कि हमारे पास पुलिया नहीं है. जल निकासी व्यवस्था बेहद खराब है. नाली का पानी खुले में बहता रहता है, जिससे हमें और हमारे मवेशियों दोनों को बीमारियां होती हैं.

विकास के बाहरी दिखावे के बावजूद संभुवनिपलेम के निवासियों के लिए वास्तविकता बिल्कुल अलग है.

यहां के आदिवासियों के लिए रोजगार के अवसर दुर्लभ हैं, जिससे कई लोगों को दैनिक मजदूरी पर निर्भर रहना पड़ता है.

प्रधान डेमुडु ने बताया कि हमने बहुत पहले अपनी कुछ जमीनें बेचकर अपना घर बनाया था, लेकिन हमारे पास रोजगार का शायद ही कोई साधन है.

वन विभाग फॉरेस्ट वॉचर और ईस्टर्न घाट बायोडायवर्सिटी सेंटर में रोजगार देता है. इसके अलावा ग्रामीण अपनी आय को पूरा करने के लिए काजू के बागानों की खेती करते हैं, जबकि कई लोग कहीं और दैनिक मजदूरी की तलाश करते हैं.

वर्षों के संघर्ष के बाद इस गांव को आखिरकार आरटीसी बस सुविधा मिली. जिसके बाद यह सेवा बच्चों को स्कूल और कॉलेज आने-जाने में मदद करती है और दूसरों को काम के लिए यात्रा करने में सक्षम बनाती है.

गाँव में एक आंगनवाड़ी केंद्र, एक प्राथमिक विद्यालय और एक सामुदायिक हॉल है. लेकिन संभुवानीपालेम में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) का अभाव है.

यह अभाव ग्रामीणों को चिकित्सा आवश्यकताओं के लिए चार से पांच किलोमीटर की यात्रा करने के लिए मजबूर करती है, जिससे उनकी दुर्दशा बढ़ जाती है.

इस कमी पर जोर देते हुए ग्रामीणों ने कहा कि गांव में पीएचसी होने से हमें फायदा होगा, जिससे हमें हर छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्या के लिए लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी.

इसके अलावा, हालिया हेल्थ ट्रेंड परेशान करने वाले हैं. आदिवासियों में गुर्दे की समस्याओं में वृद्धि और लगातार वायरल बुखार ने पीने के पानी की क्वालिटी के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं.

प्रधान डेमुडु ने कहा कि हमारे पास हर समय पानी की आपूर्ति उपलब्ध है लेकिन हमें लगता है कि स्वास्थ्य समस्याओं के कारणों का हमारे पीने के पानी की गुणवत्ता से जरूर कुछ लेना-देना है.

गांव के रखरखाव की जिम्मेदारी संभालने वाले ग्रेटर विशाखापत्तनम नगर निगम (GVMC) के एक कर्मचारी के ट्रांसफर ने गांव वालों की परेशानियां बढ़ा दी हैं.

अब वह महीने में केवल एक बार क्षेत्र का दौरा करते हैं. आदिवासियों का कहना है कि स्वच्छता को प्रभावी ढंग से बनाए रखने के लिए यह अपर्याप्त है.

इसके अलावा प्रधान का कहना है कि हमारी एक और समस्या अनियमित बिजली आपूर्ति की है. उन्होंने कहा कि एक बार बिजली गुल हो जाए तो उसे बहाल करने में उन्हें घंटों लग जाते हैं.

राजनीतिक उदासीनता यहां के आदिवासियों के मोहभंग को और गहरा करती है. इसलिए झूठे आश्वासनों पर ठोस समाधान की मांग करते हुए ग्रामीणों ने कहा, “चाहे कोई भी राजनेता हो या वह किसी भी पार्टी से हो, वे सिर्फ चुनाव से पहले हमारे गांव में आते हैं और फिर चुनाव बीत जाने के बाद कभी नहीं दिखते. हम कोई ऐसा व्यक्ति चाहते हैं जो हमारी समस्याओं का समाधान कर सके, न कि हमें केवल वोटों के आधार पर आश्वासन दे.”

(Representative image)

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