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केरल की आदिवासी बस्तियों में नशे में हत्याओं का सिलसिला इनका अस्तित्व मिटा देगा

केरल की पहाड़ियों में बसे आदिवासियों के बीच शराब पी कर झगड़ों की घटना बेहद ख़तरनाक और जानलेवा साबित हो रही हैं. पुलिस के अनुसार वायनाड जिले के पहाड़ियों में आदिवासी बस्तियों से शराब पी कर झगड़े ज़्यादा रिपोर्ट हो रहे हैं. 

पिछले शुक्रवार को ही रिपोर्ट हुए झगड़े के एक मामले में एक नौजवान ने अपने चाचा का कत्ल कर दिया. इस आदिवासी लड़के को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. यह घटना कट्टीकुलम उराली कुरूमा नाम की आदिवासी कॉलोनी से रिपोर्ट हुई है.

पुलिस के अनुसार इस नौजवान ने अपने 56 साल के चाचा पर हमला कर दिया. इस हमले में उनके सिर पर चोट आई और उनकी मौत हो गई. यह बताया गया है कि इस लड़के से झगड़े में शामिल लड़के का नाम राजमोहन है और जिसकी मौत हुई है उनका नाम मणि था. 

इस हत्या की घटना से मुश्किल से एक सप्ताह पहले ही  मुथुकड़ नरेंद्रदेव आदिवासी कॉलोनी के अनीश अंबालाकुन्नू नाम के आदमी को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था. 

इस आदमी ने अपनी 55 वर्षीय मां जानू का बिस्तर की चादर से गला घोंटने के आरोप में गिरफ्तार किया था. यह हमलावर भी कथित तौर पर नशे में था.

इस साल जनवरी से अगस्त तक, वायनाड में एसटी कॉलोनियों में नशे की हालत में कुल पांच हत्याएं की गईं. सुल्तान बथेरी पुलिस ने 3 अगस्त को पिलक्कावु कट्टनायकन कॉलोनी निवासी गोपी को उसकी 70 वर्षीय पत्नी चिक्की की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था. गोपी नाम का यह आदमी भी उस समय प्रचंड नशे में था.

जून महीने में 34 वर्षीय सुनीता को उसके पति सुरेश ने पनामाराम कोलाथरा करट्टुकुन्नू आदिवासी कॉलोनी में फांसी पर लटका दिया था। सुरेश भी शराब की लत का शिकर है और उस समय नशे में था जब उसने अपनी पत्नी की हत्या कर दी. 

इसी तरह, नूलपुझा वेंडोल पनिया कॉलोनी की 36 वर्षीय सीता की अप्रैल में उसके शराबी पति 38 वर्षीय कुट्टप्पन ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. पुलिस का कहना है कि ज़्यादातर हत्यों और झगड़ों के मामले में पीड़ित और आरोपी दोनों करीबी रिश्तेदार होते हैं. 

प्रशासन का कहना है कि “अनुसूचित जनजाति विकास विभाग आदिवासी समुदायों के बीच शराब और संबंधित अपराधों के बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है. 

आदिवासी विकास विभाग के एक अधिकारी के अनुसार आदिवासी बस्तियों के आस-पास के गैर आदिवासी इन बस्तियों के लोगों को शराब पिलाते हैं. इसके पीछे उनके कई तरह के स्वार्थ होते हैं. 

कई बार देखा गया है कि आदिवासी मर्दों को शराब की लत लगा कर गैर आदिवासी इन बस्तियों की औरतों का शारीरिक शोषण भी करते हैं. 

प्रशासन का कहना है कि आदिवासी बस्तियों में इस सिलसिले में खास जागरूकत प्रचार अभियान चलाया जा रहा है. शराब आदिवासी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है. लेकिन यह देखा गया है देश के ज़्यादातर आदिवासी इलाकों में शराब की लत इस समाज के लिए खतरनाक साबित हो रही है.

यह लत परिवारों और समाज में तनाव का कारण बन रही है. केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर नीलगिरी के पहाड़ों में बसे ज़्यादातर आदिवासी समुदायों में शराब एक बड़ी समस्या बन चुकी है.

हमें याद है जब दो साल पहले MBB की टीम इस इलाके में गई थी कई बस्तियों में दिन में ही कई लोग शराब पीते हुए या नशे में मिले थे. इन समुदायों में से ज़्यादातर विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति के समूह थे.

अगर शराब की लत के बारे में गंभीरता से कदम नहीं उठाये गए तो ना सिर्फ इन समुदायों में तनाव बढ़ेगा बल्कि इनके अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो सकता है. इसमें अफ़सोस की बात यह है कि जो लोग शराब के नशे में हत्या जैसा जुर्म कर बैठते हैं उनकी तो बाकी उम्र जेल में कटती है. लेकिन जो लोग शारब के नशे में छोटे मोटे अपराध कर बैठते हैं वे भी लंबे समय तक जेल में सड़ते रहते हैं.

क्योंकि उनकी कानून साहयता करने वाल कोई नहीं होता है.

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