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असम में चाय जनजाति ने ST दर्जे की मांग को लेकर निकाली रैली, BJP को दी बहिष्कार की धमकी

असम के तिनसुकिया ज़िले में बुधवार (8 अक्टूबर, 2025) को चाय जनजाति (Tea tribe) के हज़ारों लोगों ने अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर बुधवार को एक बड़ी रैली निकाली.

चाय जनजातियों के प्रदर्शनकारी तिनसुकिया ज़िले के 125 चाय बागानों से आए थे, जिससे बागानों में काम बाधित हुआ.

उन्होंने तिनसुकिया शहर के थाना चरियाली में एक बैठक भी की और डूमडूमा सर्कल अधिकारी को एक ज्ञापन सौंपने के बाद तितर-बितर हो गए.

ज्ञापन में तीन माँगें सूचीबद्ध की गईं – एसटी का दर्जा, ज़मीन के पट्टे और चाय बागान श्रमिकों की दैनिक मज़दूरी में पर्याप्त वृद्धि.

BJP को बहिष्कार की धमकी

प्रदर्शनकारियों ने एक दशक पहले किए गए वादों को ‘‘पूरा न करने’’ के लिए भाजपा सरकार की आलोचना की.

विरोध प्रदर्शन में केंद्र और राज्य दोनों की भाजपा सरकार पर निशाना साधा गया क्योंकि उन्होंने समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का वादा पूरा नहीं किया.

विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए समुदाय के नेताओं ने कहा कि अगर राज्य चुनावों से पहले उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वे भाजपा को वोट नहीं देंगे.

लेकिन यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ एसटी दर्जे की मांग तक सीमित नहीं था. उन्होंने अपनी सामाजिक-आर्थिक चिंताओं को भी रेखांकित किया.

दरअसल, असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा इस समय तिनसुकिया जिले के दौरे पर हैं.

ऐसे में सीएम सरमा के शहर में आधिकारिक कार्यक्रम के लिए आने के समय प्रदर्शनकारियों ने सड़कों को प्लेकार्ड और बैनर के साथ रोक दिया.

उन्होंने लंबे समय से लंबित मांगों पर सरकार की निष्क्रियता के खिलाफ जोरदार नारे लगाए.

प्रदर्शनकारियों ने नारा लगाया, “एसटी नहीं, विश्राम नहीं.” वे केंद्र सरकार की देरी से बेहद नाराज़ थे.

इस प्रदर्शन का समन्वय असम चाय मजदूर संघ (एसीएमएस), असम चाय जनजाति छात्र संस्था (एसीजेसीएस), आदिवासी छात्र संघ (एएसए), विभिन्न महिला समूहों सहित विभिन्न संगठनों द्वारा किया गया.

असम टी ट्राइब्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AATSA) के अध्यक्ष धीरज गोवाला ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव में उन्हें एसटी दर्जा दिलाने का वादा किया था.

अब 11 साल बीत चुके हैं, लेकिन केंद्र इस मुद्दे में लगातार देरी कर रहा है. धीरज गोवाला ने इसे आदिवासी समुदायों के साथ धोका बताया.

गोवाला ने कहा कि आज की महंगाई में कोई 250 रुपये में कैसे जीवित रह सकता है. इसलिए वे 551 रुपये प्रतिदिन की न्यूनतम मजदूरी चाहते हैं.

साथ ही, उन्होंने भूमि अधिकारों का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने उन लोगों के लिए भूमि पट्टों की मांग की, जिनके पास अपनी जमीन नहीं है लेकिन जो पीढ़ियों से चाय बागानों में रहते और काम करते आए हैं.

तिनसुकिया शहर के थाना चरियाली में एक बैठक की गई. इसके बाद ज़िला अधिकारी स्वपनिल पॉल को प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपकर, उनसे इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की गई.

आयोजकों का कहना है कि यह राज्य में चाय जनजाति का अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन था.

सीएम ने एक बार फिर दिया भरोसा

असम में चाय जनजाति के अलावा और भी 5 समूह हैं जो एसटी दर्जे की मांग कर रहे हैं. इसमें ताई अहोम, माटक, मोरन, चुटिया और कोच राजबोंगशी समुदाय शामिल हैं.

पिछले कुछ महीनों से ये सभी समुदाय एक के बाद एक आंदोलन करके अपनी एसटी दर्जे की मांग पूरी करवाने पर अड़े हैं.

बुधवार को जब मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने तिनसुकिया में आयोजित कई कार्यक्रमों में भाग लिया तो उन्होंने एसटी दर्जे की मांग पर बात की.

हालांकि उन्होंने इन समुदायों को एक बार फ़िर सिर्फ आश्वासन ही दिया.

उन्होंने इस मांग को जायज़ ठहराया और कहा कि जरूरी मांगों के लिए विरोध प्रदर्शन होगा. अनुसूचित जनजाति (ST) की मांग को लेकर प्रदर्शन करने वाले लोग सच्चे हैं.

उन्होंने कहा कि छह समुदायों को एसटी दर्जा देने की मांगों पर अध्ययन करने के लिए गठित मंत्रियों के समूह से उम्मीद की जा रही है कि नवंबर में विधानसभा में अपनी रिपोर्ट पेश करेंगे.

उन्होंने आगे कहा, “इसके बाद हम आगे की कार्रवाई करेंगे.”

आयोजकों ने चेतावनी दी कि ठोस कार्रवाई न होने तक यह आंदोलन पूरे असम में जारी रहेगा और इस विरोध प्रदर्शन को सम्मान, पहचान और न्याय की लड़ाई बताया.

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि मुख्यमंत्री ने केवल छह समुदायों के एसटी दर्जे का ज़िक्र किया.

चाय बागान श्रमिकों की न्यूनतम मज़दूरी दर, भूमि पट्टे और अपने अधूरे वादों के बारे में उन्होंने कोई बात नहीं की. 

चुनावी माहौल में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ी

हालांकि मुख्यमंत्री ने छह समुदायों को एसटी दर्जा देने की प्रक्रिया पर आश्वासन दिया, लेकिन असली चुनौती अभी भी बनी हुई है.

मार्च-अप्रैल 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों से कुछ ही महीने बचे हैं और लगातार हो रहे आंदोलनों ने भाजपा के लिए इसे संवेदनशील मामला बना दिया है.

अगर चुनाव से पहले एसटी दर्जा दे दिया गया, तो मौजूदा एसटी समुदाय नाराज़ हो सकते हैं और यदि नहीं दिया गया तो एसटी दर्जा मांग रहे छह समुदायों का वोट बैंक भाजपा के हाथों से निकल सकता है.

इसलिए आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी दोनों तरफ से फंसी हुई नज़र आ रही है. इन मुद्दों पर भाजपा को फूंक-फूंककर कदम रखना होगा.

वहीं, चाय बागान श्रमिकों की न्यूनतम मज़दूरी और भूमि पट्टों की मांगों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. चाय जनजाति की संख्या और उनका राजनीतिक असर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकता है.

इन मांगों पर ठोस कार्रवाई न होने पर विपक्ष इसका चुनावी लाभ आसानी से उठा सकता है.

चाय जनजाति संगठन 13 अक्टूबर को पड़ोसी डिब्रूगढ़ जिले में एक और विरोध प्रदर्शन करेंगे.

Image credit – X

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