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तेलंगाना में आदिवासी vs लम्बाडा की लड़ाई तेज, राज्य से बाहर करने की मांग

तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के खिलाफ आदिवासी समुदाय ने नाराजगी जताई है. शुक्रवार को राज्य के आदिवासियों ने मुख्यमंत्री के तेलंगाना की सीमा में पलायन कर आए गुट्टी कोया समुदाय को छत्तीसगढ़ वापस भेजने के प्रयासों के लिए कड़ी आलोचना की.

उन्होंने कहा कि केसीआर (KCR) को सबसे पहले महाराष्ट्र से तेलंगाना आए लम्बाडाओं को उनके मूल स्थानों पर वापस भेजना चाहिए. उन्होंने कहा कि लम्बाडा को राज्य में एसटी सूची से हटा दिया जाए क्योंकि वे “यहां आदिवासियों के लाभ हड़प रहे हैं.”

आदिवासी नेताओं ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र की पिछड़ी जाति के लम्बाडा समुदाय के लोग 1970 के दशक से अब तक तेलंगाना में प्रवास करते आ रहे है,. इन नेताओं ने मांग की कि राज्य सरकार गुट्टी कोयाओं को राज्य से बाहर निकालने और छत्तीसगढ़ वापस भेजने के लिए नोटिस जारी करना बंद करे, उन्हें डराना बंद करे. इन नेताओं ने गुट्टी कोयाओं को अपना समर्थन देते हुए कहा “हम इस देश की मिट्टी के पुत्र हैं.”

आदिवासी संगठन थुदुम देब्बाने इंद्रवेली शहीद स्मारक पर जनसभा आयोजित की. ‘आदिवासुला अस्तित्व पोरु गरजाना’ नामक जनसभा में आदिवासी नेताओं ने सरकार से लम्बाडाओं को एसटी सूची से हटाने की मांग की. उन्होंने कहा कि लम्बाडा अवैध रूप से सूची में बने हुए हैं.

उन्होंने कहा कि तेलंगाना में वन अधिकार अधिनियम 2006 से ज्यादा लाभ प्रवासी लम्बाडा को मिला है.

थुदुम देब्बा के प्रदेश अध्यक्ष बुर्सा पोचैया ने आरोप लगाया कि लम्बाडा समुदाय राज्य के सभी शैक्षिक और सरकारी रोजगार के अवसरों के साथ-साथ एसटी के लिए राजनीतिक आरक्षण को भी हड़प रहे है. उन्होंने कहा कि लम्बाडाओं को तेलंगाना में 29 सरकारी विभागों में शीर्ष पदों पर नियुक्त किया गया और इन अधिकारियों ने अन्य आदिवासी समूहों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया है.

उन्होंने सरकार से एक आदिवासी बंधु योजना लाने और राज्य में पेसा अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग की.

दरअसल राज्य में लम्बाडा समुदाय की आबादी काफी ज्यादा है और यह तेलंगाना के सबसे बड़े समुदायों में से एक है. 2011 तक, तेलंगाना की अनुसूचित जनजातियों की आबादी का 64% हिस्सा लम्बाडाओं का था. राज्य में 33 समुदाय अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध हैं.

कर्नाटक में ये समुदाय अनुसूचित जाति और महाराष्ट्र में पिछड़ी जाति में शामिल है. ऐसे में तेलंगाना के आदिवासियों का मानना है कि राज्य में ST का दर्जा मिलने के कारण ये लोग अब भी दूसरे राज्यों से यहां प्रवास कर रहे है.

वहीं राज्य में अगले साल यानी 2023 में विधानसभ के चुनाव भी होने है. ऐसे में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव लंबाडा समुदाय को आकर्षित करने का प्रयास करते दिख रहे हैं, जिसकी उत्तर भारत में मजबूत उपस्थिति है क्योंकि यह राष्ट्रीय राजनीति में उनके प्रवेश के लिए अनुकूल है. लंबाडा समुदाय के सदस्यों को टीआरएस के लिए एक मजबूत वोट बैंक माना जाता है क्योंकि उन्हें एसटी आरक्षण के तहत कल्याणकारी योजनाएं और शिक्षा और रोजगार में एक बड़ा हिस्सा मिलता है.

सितंबर माह में ही राव ने अपने भाषण में कहा था ” लम्बाडा या बंजारों को पूरे देश में एक समान दर्जा मिलना चाहिए. उन्हें तेलंगाना में एसटी माना जाता है जबकि वे महाराष्ट्र में बीसी श्रेणी में और कुछ राज्यों में ओसी में आते हैं. उन्होंने कहा कि इस असंतुलन की स्थिति को समाप्त किया जाना चाहिए. बंजारों को कर्नाटक में अनुसूचित जाति माना जाता है.”

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