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7वीं क्लास की बच्ची ने मृत बच्चे को जन्म दिया, ख़ुद की भी जान गई

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ओडिशा में 7वीं क्लास में पढ़ने वाली एक लड़की की बच्चे को जन्म देने के बाद मृत्यु हो गई. इस लड़की ने जिस बच्चे को जन्म दिया वह भी मृत था. यह घटना गुरूवार को कंधमाल ज़िले में सामने आई है. 

यह लड़की आदिवासी कल्याण विभाग के आश्रम स्कूल के हॉस्टल में रह रही थी. 23 सितंबर को पता चला कि यह लड़की गर्भवती है. इसके बाद इस लड़की को ज़िले के चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूटशन में रखा गया था. 5 अक्टूबर को इस लड़की को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई.

उसको अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस बुलाई गई थी. क्योंकि जहां वह रह रही थी वहाँ पर कोई इमर्जेंसी सेवा का प्रबंध नहीं था. जब तक एंबुलेंस आती तब तक यह लड़की मृत बच्चे को जन्म दे चुकी थी. 

कंधमाल ज़िले की बाल संरक्षण अधिकारी (Child Protection Officer) रश्मिता करण के अनुसार बच्चे के जन्म के बाद मां-बच्चे को नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया था. वहां पर डॉक्टर ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया. 

गुरूवार की रात को लड़की की तबीयत बहुत ख़राब हो गई. डॉक्टर ने उसे ज़िला हेडक्वार्टर के अस्पताल में भर्ती कराने के लिए रेफर कर दिया. लेकिन जब तक एंबुलेंस आती, लड़की की भी मौत हो गई. इस पूरे मामले में प्रशासन की भूमिका बेहद अफ़सोसनाक नज़र आती है.

इस लड़की के परिवार का कहना है कि जब लड़की को एक बार बहरामपुर के अस्पताल में ले जाया गया था तो फिर उसे वापस क्यों लाया गाय था. उनका कहना था कि उनकी लड़की की मौत उचित इलाज की कमी की वजह से हो गई.

इस मामले में पुलिस ने मामला दर्ज कर दूसरे स्कूल के 10वीं में पढ़ने वाले एक लड़के को हिरासत में लिया है. हालाँकि इस मामले में अभी पुलिस ने कुछ साफ़ साफ़ नहीं बताया है. जबकि लड़की जिस हॉस्टल में थी वहाँ के वार्डन को निलंबित कर दिया गया है.

इस मामले में स्थानीय विधायक केरेन्द्र माँझी ने की तरफ़ से परिवार के लिए 20 लाख रूपये मुआवज़े की माँग की है.

हॉस्टल में किसी बच्ची के गर्भवती होने का यह पहला मामला नहीं है. इसी साल अगस्त महीने में मल्कानगिरी ज़िले के एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूल में 10 वीं क्लास में पढ़ने वाली एक लड़की गर्भवती पाया गया था. 

पिछले साल दिसंबर महीने में कक्षा 6 में पढ़ने वाली एक लड़की को कंधमाल ज़िले के ही एक स्कूल में गर्भवती पाया गया था. जब हॉस्टल युक्त स्कूलों में लड़कियों के गर्भवती होने के कई मामले मिले तो राज्य सरकार ने स्कूल के हेडमास्टर्स को निर्देश दिए कि स्कूलों में लड़कियों का रेगुलर हैल्थ चेकअप किया जाए. 

आदिवासियों लड़के लड़कियों के लिए चलाए जाने वाले स्कूलों में घटिया खाना परोसे जाने की ख़बरें तो आती ही रहती हैं. जिसकी वजह से कई बार बच्चे बीमार भी पड़े हैं. सितंबर महीने में ही लोकायुक्त ने मल्कानगिरी के आश्रम स्कूलों में छात्रों को घटिया खाना दिए जाने की जाँच कराने के आदेश दिये थे.

लेकिन इन आश्रम स्कूलों में आदिवासी लड़कियों के यौन शोषण की समस्या भी उतनी ही बड़ी है. लेकिन अफ़सोस इस तरह के मामलों में सख़्त कदम उठा कर इसे रोकने की बजाए, इस तरह के अपराध पर लीपा पोती नज़र आती है.

आश्रम स्कूलों का मक़सद

संविधान के आर्टिकल 275 (1) के तहत आदिवासी इलाक़ों में विकास के लिए सहायता उपलब्ध कराई जाती है. इसी व्यवस्था के तहत केंद्र सरकार आदिवासी इलाक़ों में शिक्षा का स्तर बेहतर बनाने के लिए भी धन उपलब्ध कराता है. 

आश्रम स्कूलों के लिए दिए जाने वाले पैसे में लड़कियों के स्कूलों के निर्माण में केंद्र सरकार का योगदान 10 प्रतिशत होता है. इसके अलावा माओवाद से प्रभावित इलाकों में भी आश्रम स्कूलों की स्थापना का पूरा ख़र्च केंद्र सरकार ही वहन करती है. इसके अलावा राज्यों में जो आश्रम स्कूल बनते हैं उनमें केंद्र सरकार आधा यानि 50 प्रतिशत ख़र्चा देती है.

केंद्र सरकार इन स्कूलों की स्थापना में ही सहायता प्रदान करती है. इन स्कूलों के रख-रखाव और निगरानी की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की ही होती है. इन स्कूलों में पढ़ाई के माध्यम की भाषा का फ़ैसला भी राज्य सरकार ही करती है.

देश के अलग अलग राज्यों में इन स्कूलों का आदिवासी इलाक़ों में शिक्षा में बड़ा योगदान है. लेकिन इन स्कूलों में संसाधनों की कमी और स्कूल प्रशासन की लापरवाही के मामले बड़ी संख्या में सामने आते रहे हैं. संसदीय समिति की रिपोर्ट में भी इस मसले पर चिंता ज़ाहिर की जा चुकी है. 

इनमें सबसे ज़्यादा चिंता की बात है कि इन स्कूलों में लड़कियों के यौन शोषण और बच्चों की मौतों के मामले भी शामिल हैं. 

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