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डीबीटी स्कीम (DBT) आदिवासी पेंशनभोगियों के लिए बनी चुनौती

विशाखापट्टनम ज़िले में पांचवी अनुसूचि क्षेत्र के आदिवासी इलाकों में घर-घर जा कर पेंशन बांटने की स्कीम को जारी रखने देने के लिए चुनाव आयोग से आग्रह किया गया है.

आदिवासी पेंशन पाने वालों (Tribal pensioners) के लिए डीबीटी स्कीम (Direct benefit transfer scheme) बड़ी चुनौती बन गई है. पहले आदिवासी इलाकों में घर-घर जाकर पेंशन (pension) दी जाती थी.

लेकिन डीबीटी आने के बाद बैंक और पोस्ट ऑफिस की दूरी और तकनीकी ज्ञान की कमी ने आदिवासियों के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.

लीबटेक इंडिया नाम के एक संस्थान ने यह दावा किया है कि उनकी स्टडी में यह तथ्य सामने आया है कि जब से डीबीटी स्कीम के तहत आदिवासी इलाकों के लोगों की पेंशन बैंक में आने लगी है, तब से उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं.

क्योंकि बैंक तक पहुंचने के लिए की आदिवासी गांवों से कोई साधन मौजूद नहीं हैं. इसलिए कई गांव के लोगों को 10-15 किलोमीटर तक पैदल चल कर बैंक जाना पड़ता है.

इसके अलावा यह तथ्य भी पता चला है कि आदिवासी बस्तियों के आस-पास बैंकिंग के जो प्वाइंट बनाए गए हैं वहां आदिवासियों को अपना पैसा निकालने के लिए भारी कमीशन देना पड़ता है.

इन संगठनों ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर कहा है कि आदिवासी बस्तियों में सरकार को पहले की तरह ही घर घर जा कर पेंशनभोगियों को पैसा देना चाहिए.

इससे उनकी कई मुश्किलें भी कम हो जाएंगी और उन्हें ज़्यादा पैसा भी ख़र्च नहीं करना पड़ेगा.

हांलाकि इन दो संगठनों के इस दावे की पूरी पड़ताल की ज़रूरत है. क्योंकि अनुभव यह बताता है पैसा सीधा लाभार्थी के खाते में जाने से भ्रष्टाचार कम होता है.

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