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उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सुनी लुप्त होते आदिवासियों की आवाज़

उत्तराखंड का कमजोर होता आदिवासी समुदाय ‘वनरावत’, जो हमेशा बाकी दुनिया से कटा रहता था, को अपनी आवाज नैनीताल हाई कोर्ट में मिली है. कोर्ट ने राज्य सरकार और केंद्र से सवाल किया कि समुदाय को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों से क्यों वंचित रखा गया है.

नैनीताल हाई कोर्ट ने बुधवार को केंद्र और उत्तराखंड सरकार से पूछा कि उधमसिंह नगर, चंपावत और पिथौरागढ़ जिलों के वन क्षेत्रों में बमुश्किल 850 सदस्यों वाली यह आदिवासी आबादी दशकों तक जन कल्याण योजनाओं से अछूती क्यों रही.

कोर्ट ने दोनों सरकारों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने इस पूरे मामले की कार्यवाही करते हुए केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं पर सवाल उठाया. उन्होंने पूछा की क्यों अब तक वनरावत जनजाति को किसी भी जन कल्याण योजनाओं लाभ नहीं दिया गया?

इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस विपिन सांघी और राकेश थपलियाल द्वारा की गई थी. इसके अलावा इस याचिका को उत्तराखंड स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा कोर्ट में दर्ज कराया गया था.

कोर्ट ने याचिका पर क्या कहा

कुछ दिन पहले जिला विधिक सेवा प्राधिकरण पिथौरागढ़ ने वनरावत आदिवासियों का सर्वे किया था. जिसके बाद इस रिपोर्ट के जरिए उत्तराखंड स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी को कई बातों का पता लगा हैं.

उन्होंने मामले में की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट में इस मामले को दर्ज कराया. इस याचिका में बताया गया की इन आदिवासियों का मुख्यधारा से कोई भी संपर्क नहीं है. इसके अलावा वनरावत जनजाति कोई भी मूलभूत सुविधाओं का लाभ नहीं उठाती.

जिसकी वजह से इनकी औसत आयु 55 वर्ष है और वहीं पूरे देश की औसत आयु 70.19 वर्ष है. अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो यह आदिवासी खत्म हो जाएंगें.

साथ ही कोर्ट में याचिका के द्वारा यह आग्रह किया है की इन्हें भी केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जन कल्याण योजनाओं का लाभ दिया जाना चाहिए. जिससे इन्हें भी मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिले.

इस याचिका को सुनने के बाद कोर्ट ने अपनी नाराज़गी जताई है. उन्होंने कहां की सरकार केस की अगली पेशी से पहले इन आदिवासियों को योजनाएं ना मिलने की वजह कोर्ट को बताएं.

इस मामले की अगली सुनवाई नवंबर के पहले हफ़्ते के भीतर की जाएगी.

कौन है वनरावत जनजाति

वनरावत आदिवासी उत्तराखंड के तीन जिले पिथौरागढ़, चम्पावत और उधम सिंह नगर में रहते हैं. साथ ही इनका मुख्यधारा से कोई भी संपर्क नहीं है.

इन आदिवासियों की जनसंख्या 850 है. इसका मतलब की यह आदिवासी समुदाय लुप्त होने की कगार पर है. इसके अलावा यह किसी भी मूलभूत सुविधाएं जैसे शिक्षा, चिकित्सा, बिजली और सड़क का लाभ नहीं उठाते हैं.

साथ ही इन्हें सरकार की कोई भी हेल्थ केयर योजनाओं के साथ अन्य किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलता. इसलिए इनकी औसत आयु 55 वर्ष ही रह गई है वहीं पूरे देश की औसत आयु 70.19 वर्ष है.

रिपोर्ट के मुताबिक इन आदिवासियों के लिए शिक्षा तो बहुत दूर की बात है इन्हें सही तरीके से चिकित्सा सुविधा तक नहीं मिल पा रही है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी यहां से 20 से 25 किलोमीटर की दूरी पर है. अगर सरकार ने जल्द ही कोई एक्शन नहीं लिया तो हो सकता है की उत्तराखंड की यह जनजाति लुप्त न हो जाए.

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