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आदिवासी: भारत में नया वोट बैंक बन सकता है?

भारतीय जनता पार्टी ने जब द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया तो इसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मास्टर स्ट्रोक करार दिया गया था. यह शायद मास्टर स्ट्रोक ही था क्योंकि उनके इस फ़ैसले ने विपक्ष की रणनीति की हवा निकाल दी थी.

बीजेपी के इस कदम के बाद राजनीति के जानकारों ने कहा कि द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के पीछे सिर्फ़ रणनीति राष्ट्रपति का चुनाव जीतना नहीं था. बल्कि गुजरात सहित कई राज्यों के विधान सभा चुनावों में आदिवासी मतदाता को रिझाना भी था.

यह बात सही भी लगती है क्योंकि गुजरात के अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान और त्रिपुरा में भी आदिवासी मतदाता सत्ता तक पहुँचने में मददगार होता है.

लेकिन पिछले एक साल में बीजेपी ने जिस तरह से आदिवासी चर्चा को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया है, ऐसा लगता है कि उसकी रणनीति राज्यों के चुनाव से आगे जाती है.

क्या आदिवासी समुदाय भी राष्ट्रीय स्तर पर दलितों, मुसलमानों और पिछड़ों की तरह ही एक नया वोट बैंक बन रहे हैं. इस मसले पर हमने देश में चुनाव विश्लेषण के क्षेत्र में सबसे भरोसेमंद नाम संजय कुमार से बातचीत की है. आप उपर लिंक पर क्लिक कर यह पूरी बातचीत देख सकते हैं.

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