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आदिवासी साबित करने के लिए अफ्फिनिटी टेस्ट (affinity test)अंतिम सत्य नहीं – सुप्रीम कोर्ट

आदिवासियों को जारी होने वाले अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र के मापदंडों से जुड़े असमंजस को सुप्रीम कोर्ट ने ख़त्म करने की कोशिश की है. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस फैसले के बाद इस मामले में स्पष्टता आएगी और जाति प्रमाणपत्र से जुड़े विवाद कम होंगे.

किसी व्यक्ति को आदिवासी मानने के लिए अफ्फिनिटी टेस्ट (affinity test) अनिवार्य शर्त नहीं हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार यानि 24 मार्च 2023 को एक महत्वपूर्ण सवाल का जवाब देते हुए यह कहा है. यानि किसी व्यक्ति को आदिवासी यानि अनुसूचित जनजाति का सदस्य मानने के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि वह व्यक्ति अपने समुदाय की जीवनशैली और रीति रिवाजों का पूरी तरह से ही पालन करता हो.

सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एएस ओक और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि अफ्फिनिटी टेस्ट को लिटमस टेस्ट नहीं माना जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मौजूद असमंजस को ख़त्म करने की कोशिश करते हुए कहा है अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति जाँच समिति उसी सूरत में अफ्फिनिटी टेस्ट के लिए कह सकती है जब मामला सतर्कता सेल (vigilance cell) को भेजा जा रहा है.

जब जाँच समिति किसी मामले को सतर्कता सेल में भेजेगी तो उसके लिए यह बताना अनिवार्य है कि उसके सामने मौजूद साक्ष्यों पर उसे भरोसा क्यों नहीं है. मोटेतौर पर सुप्रीम कोर्ट बेंच ने आनंद बनाम कमेटी फ़ॉर स्क्रूटनी एंड वेरिफ़िकेशन ऑफ़ ट्राइब क्लेम और अन्य मामले में दिए गए फ़ैसले को क़ायम रखा है.

असमंजस क्यों था ?

मार्च 2022 में यह बात सामने आई थी कि कास्ट सर्टिफिकेट के सत्यापन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ही दो फ़ैसले मौजूद हैं जो अलग अलग मापदंड की बात करते हैं. जब यह सवाल जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की बेंच के सामने आया तो उन्होंने तीन जजों की बेंच को इस मामले को रेफर किया.

सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की इस बेंच ने सवाल को कुछ इस तरह से फ़्रेम किया, “कास्ट सर्टिफिकेट के सत्यापन के लिए जाँच समिति के पास उपलब्ध मानदंड क्या होने चाहिएँ, यह साल अधिनियम और उसमें बनाए गए नियम की व्याख्या से उत्पन्न होने वाला महत्वपूर्ण विषय है. 

यह फ़ैसला महत्वपूर्ण क्यों है

देश के आदिवासी समुदायों के बारे में यह बात सच है कि अभी भी उनकी बड़ी आबादी दूर-दराज के जंगलों में रहते हैं. लेकिन इन समुदायों के कुछ लोग धीरे धीरे मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज का हिस्सा भी बन रही हैं. उनमें से कुछ लोग कामकाज के सिलसिले में क़स्बों या शहरों में आ कर बस रहे हैं.

जब ये परिवार अपने पैतृक स्थान से दूर हो जाते हैं तो उनकी जीवनशैली में बदलाव लाज़मी है. इसके साथ ही जब कोई व्यक्ति या परिवार अपने समुदाय से बाहर निकल कर शहर में बस जाता है तो उसके लिए अपने सांस्कृतिक या परंपरागत नियमों का पालन करना भी आसान नहीं होता है.

इस स्थिति में उनके जाति प्रमाण पत्र को अगर अफ्फिनिटी टेस्ट (affinity test) के आधार पर परखा जाएगा तो इस तरह के परिवारों या व्यक्तियों के लिए ख़ुद को आदिवासी साबित करना लगभग असंभव हो सकता है. इस सूरत में ये परिवार या व्यक्ति इन समुदायों को बराबरी का मौक़ा दिये जाने के लिए किये गए प्रावधानों से वंचित हो सकते हैं. 

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