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कोयला सत्याग्रह: ज़मीन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ आदिवासियों का अनोखा प्रदर्शन

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तमनार विकासखंड मुख्यालय में गांव-गांव से लोग हाथ में कोयला लेकर आ रहे थे. हमार कोयला हमार हक जैसे नारे एक साथ गूंज रहे थे. क्या बच्चे क्या बुजुर्ग सभी के हाथों में कोयले की डली थी, कुछ लोग कांवड में कोयला ढो रहे थे. 

एक जगह पर जमा करने के बाद गांव में ही उसे नीलाम कर दिया गया. देश में बड़ी कंपनियां कोयला जमीन से निकालती हैं और उसे बेचती हैं लेकिन ग्रमीणों द्वारा कोयले को अपनी जमीन से निकालकर बेचना एक  तरह का विरोध प्रदर्शन है.

आदिवासियों की ज़मीन अधिग्रहण का यह एक अनूठा विरोध प्रदर्शन है. शुरुआत में इस आंदोलन को ख़ास तव्वजो नहीं मिली पर आज देश-विदेश में इस अनोखे विरोध प्रदर्शन को नोटिस किया जा रहा है.  

इस आंदोलन की शुरुआत करने वाले लोगों में शामिल राजेश त्रिपाठी ने MBB को बताया, ” यह आंदोलन 2011 में प्राकृतिक संसाधनों पर सामुदायिक अधिकार के लिए शुरू किया गया था. जिस तरह से महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह किया था. प्राकृतिक संपदा में समुदाय का हक़ होता है किसी कंपनी या सरकार का हक़ नहीं हो सकता है. “

उन्होंने आगे कहा, “इस आंदोलन की शुरुआत गारे नाम के एक गाँव से हुई थी. लेकिन आज इस आंदोलन में रायगढ़ ज़िले के कम के कम 55 लोग शामिल हो रहे हैं. इन 11 सालों में अलग अलग राज्यों के सामाजिक संगठन इस आंदोलन से प्रेरित हो रहे हैं. यहाँ से प्रेरणा लेकर वहाँ भी प्राकृतिक संसाधनों पर समुदाय के हक़ की लड़ाई की जा रही है.”

राजेश त्रिपाठी ने बताया कि उनकी माँग है कि अगर सरकार को कोयले और दूसरे प्राकृतिक संसाधनों की ज़रूरत है तो यह काम समुदाय से कराया जाए ना कि किसी प्राइवेट कंपनी को ये संसाधन बेच दिए जाएँ.

कोयला सत्याग्रह में शामिल लोग

ग्रामीण अपनी भूमि दे ही नहीं रहे 

एक दशक से अधिक समय से हर वर्ष 2 अक्टूबर को रायगढ़ जिले की चार तहसील रायगढ़, तमनार, धर्मजयगढ़ और घरघोड़ा के लगभग 55 गांवों में कोयला सत्याग्रह आयोजित होता है. लोग अपने-अपने गाँव से कोयला कानून तोड़कर यहाँ आते हैं.

 इसके बाद सामूहिक रूप से इस सत्याग्रह में शामिल होते हैं. ग्रामीण किसी भी स्थिति, शर्त और मुआवजे पर अपनी जमीन देना नहीं चाहते हैं. 2008 में हुई जनसुनवाई में पुलिस द्वारा किये गए लाठीचार्ज के बाद आदिवासी ज्यादा सतर्क हो गए हैं.

 उसी समय से वे इन बातों के लिए सड़क पर लड़ते और आंदोलन करते हुए इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि जब जमीन उनकी है तो उस पर प्राप्त संसाधन पर भी मालिकाना हक उनका ही होना चाहिए.

जैसे एक मुट्ठी नमक उठाकर गाँधीजी और उनके अनुयायियों ने ब्रिटिश काल में नमक कानून तोड़ा था ठीक उसी तरह शासन-प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए यह आंदोलन शुरू हुआ है. सरकार की ज़मीन अधिग्रहण और बड़े-बड़े उद्योगपतियों को कोयला खनन में आने देने से रोकने के लिए 2011 से कोयला सत्याग्रह शुरू किया गया. 

कोयला खोद रहे आदिवासी

इस बड़े आयोजन में हर किसी को अपना सुझाव प्रस्तुत करने के लिए मंच मिलता है. ताकि गाँववासियों की बात सरकार तक पहुँच सके. यह पूरा कार्यक्रम सामूहिक व्यवस्था से ही आयोजित होता है. जिसमें हर घर से बीस रुपये की सहयोग राशि और एक ताम्बी चावल (एक ताम्बी मतलब 2 किलोग्राम) लेते हैं और इकट्ठे हुए पैसे से सब्जी आदि बनाने की व्यवस्था की जाती है. 

हजारों आदमी यहाँ खाना खाते हैं और कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते हैं. इस बार तीन राज्यों तमिलनाडु, ओड़िशा और झारखण्ड, के आदिवासी भी यहाँ पर आंदोलन में समर्थन देने पहुँचे. छत्तीसगढ़ के दो जिलों और 55 गांव के हजारो लोग इस आंदोलन में शामिल हुए.

कैसे हुई कोयला सत्याग्रह की शुरुआत

बात 5 जनवरी 2008 की है, जब गारे 4/6 कोयला खदान की जनसुनवाई, गारे और खम्हरिया गाँव के पास के जंगल में की गई. ग्रामीणों ने जन सुनवाई के विरुद्ध एक याचिका हाईकोर्ट में लगाई गई और एनजीटी (National Green Tribunal) ने ग्रामीणों के पक्ष में फैसला दिया. 

लेकिन सड़क पर विरोध-प्रदर्शन जारी रहा, जिसमें धरने, रैलियाँ और पदयात्राएँ चलती रहीं. गाँव-गाँव में बैठकों का दौर चलता रहा. 25 सितंबर 2011 को ग्रामीणों ने अपनी बैठक में फैसला किया कि अगर देश के विकास के लिए कोयला जरूरी है तो क्यों न हम कंपनी बनाकर स्वयं कोयला निकालें. 

इसके बाद सभी तकनीकी पहलुओं पर बातचीत की गई। गाँव में सभी लोगों ने गारे ताप उपक्रम प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड का गठन किया।

ग्रामीणों ने बनाई खुद की कंपनी

कोयला सत्याग्रह के संस्थापकों में से एक डॉ हरिहर पटेल ने बताया ‘हम लोगों ने जमीन हमारी संसाधन हमारा के आधार पर खुद ही कोयला निकालने के लिए एक कंपनी बनाई गारे ताप उपक्रम प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड बनाई, जिसमें गारे और सरईटोला गाँव की 700 एकड़ जमीन का एग्रीमेंट भी करवा लिए हैं.’ 

इसके बाद गाँव वाले लगातार अपनी जमीन से कोयला निकालना शुरू कर दिए. हमें रोकने के लिए पुलिस-प्रशासन का बहुत दबाव बनाया गया. हम लोगों ने कहा कि ‘हम अपनी जमीन से कोयला निकाल रहे हैं, आप रोक नहीं सकते. 

सुप्रीम कोर्ट के एक केस बालकृष्णन बनाम केरल हाईकोर्ट में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय था कि संसाधनों पर पहला हक भूस्वामी का होता है. बालकृष्णनन ने जब अपनी जमीन से डोलोमाइट निकालना शुरू किया तो सरकार ने आपत्ति दर्ज की थी. तब बालकृष्णन कोर्ट में गया और निर्णय वादी के पक्ष में आया. इसी निर्णय के आधार पर गारे के ग्रामवासियों ने कोयला सत्याग्रह की शुरुआत की.

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