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वन संरक्षण नियम 2022 आदिवासी हक़ मारते हैं – राष्ट्रीय जनजाति आयोग

वन संरक्षण नियम 2022 (Forest Conservation Rules 2022) को आदिवासी अधिकारों के ख़िलाफ़ बताते हुए राष्ट्रीय जनजाति आयोग के अध्यक्ष ने वन और पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव को इन नियमों को लागू ना करने की हिदायत दी है. इसके अलावा आयोग ने जनजातीय कार्य मंत्रालय (Tribal Affairs Ministry) के तर्क को भी ख़ारिज किया है.

आयोग ने वन संरक्षण नियम 2022 को आदिवासी विरोधी माना है. आयोग ने कहा है कि वन संरक्षण के नए नियम वन अधिकार क़ानून 2006 में आदिवासियों और परंपरागत रूप से जंगल में रहते आए समुदायों के अधिकारों में हस्तक्षेप करता है.

राष्ट्रीय जनजाति आयोग ने पर्यावरण और वन मंत्रालय को चिट्ठी लिख कर इन नियमों को लागू ना करने को कहा है. 

आयोग ने वन और पर्यावरण मंत्रालय को साल 2017 के पर्यावरण संरक्षण नियमों को और मजबूत बनाने को कहा है. इस पत्र में आयोग ने लिखा है कि वन अधिकार क़ानून 2006 के तहत जंगल की ज़मीन को किसी भी परियोजना के लिए देने से पहले समुदाय से अनुमति का प्रावधान है. 

2017 के वन संरक्षण नियम में यह प्रावधान स्पष्ट रूप से किया गया है. इसलिए इन नियमों को मज़बूती से लागू किया जाना चाहिए और साथ साथ यह निगरानी भी रखी जानी चाहिए कि नियमों का उल्लंघन ना किया जाए.

राष्ट्रीय जनजाति आयोग की तरफ़ से आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह एक गंभीर हस्तक्षेप किया गया है. आयोग का निष्कर्ष है कि वन संरक्षण नियम 2022 में सहमति का प्रावधान (Consent Clause) समाप्त कर दिया गया है. 

साल 2014/2017 के वन संरक्षण के नियमों में प्रावधान था कि जंगल की ज़मीन को किसी और उद्देश्य के लिए देने के प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजने से पहले स्थानीय प्रशासन आदिवासियों और ग्राम सभाओं से अनुमति लेगा.

राष्ट्रीय जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने इस पत्र में लिखा है, “नए नियमों के तहत ग्राम सभाओं की सहमति के प्रावधान को ख़त्म कर दिया गया है. पहले चरण और कई मामलों में दूसरे चरण की अनुमति मिलने के बाद ही ग्राम सभा की अनुमति की ज़रूरत होगी.”

उन्होंने लिखा है कि वन संरक्षण नियम 2022 लैंड बैंक बनाने की प्रक्रिया में भी वन अधिकार क़ानून 2006 का उल्लंघन करते हैं. 

जब वन संरक्षण नियम 2022 के सार्वजनिक होने पर काफ़ी बड़ा विवाद खड़ा हुआ था. संसद में कई विपक्षी दलों ने इस मसले को उठाया था. राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राष्ट्रीय जनजाति आयोग को इस मसले पर पत्र लिख कर हस्तक्षेप की माँग की थी.

इस पत्र के बाद अगस्त महीने में राष्ट्रीय जनजाति आयोग ने इस मसले को गहराई से समझने के लिए वर्किंग ग्रुप बनाया था. जब आयोग को यह शिकायत मिली थी तब आयोग ने यह माना था कि पहली नज़र में शिकायत सही लगती है. 

वन और पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव को लिखी चिट्ठी में राष्ट्रीय जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा नए नियमों को दिए समर्थन को भी ख़ारिज किया है. भूपेन्द्र यादव को लिखे पत्र में आयोग के अध्यक्ष ने इस तरह के फ़ैसलों पर निराशा प्रकट की है.

उन्होंने कहा है, “वन अधिकार क़ानून 2006 के प्रावधान को लागू करने की प्रक्रिया और वन संरक्षण नियमों की प्रक्रिया अलग अलग नहीं देखे जा सकते हैं. बल्कि दोनों ही क़ानूनों को एक दूसरे के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए लागू करना है.”

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