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कर्नाटक के हक्की-पिक्की और इरुला आदिवासियों को मिला भूमि अधिकार

कर्नाटक के 114 हक्की पिक्की और इरुला आदिवासियों को 9 अगस्त यानी विश्व आदिवासी दिवस पर भूमि का अधिकार दिया गया था. इसे पहले 1962 में इन्हें रागिहल्ली स्टेट फ़ारेस्ट के पास बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के किनारें 350 एकड़ की ज़ामीन मिली थी. वहीं हक्की पिक्की की जनसंख्या 2011 की जनगणना के मुताबिक 11,000 तक पहुंच गई है.

जाहिर है कि जैसे जैसे समय बीतता है जन्संख्या बढ़ती चली जाती है. इसलिए इन्हें भूमि का अधिकार मिलना जरूरी था. इस आधिकार को 62 साल बाद मिलनें की वज़ह ये भी है कि यह मुद्या राजनीति से दूर था. साथ ही आदिवासियों को अपनी ही ज़ामीन के अधिकार के लिए कई दफ़्तरों में भी जाना पड़ा.

आदिवासियों ने सरकार के फैसले पर दी सहमति

हक्की पिक्की और इरुला के आदिवासी समाज ने सरकार के इस फैसलें पर सहमति जाततें हुए सराहना दी है. इन्होनें ये भी कहां की वन सरंक्षण की वज़ह से कर्नाटक के जंगलों में रहने वाले आदिवासियों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा था.

वहीं वन आधिकार अघिनियम 2006 (Forest Right Act 2006 ) ने वन सरंक्षण से जुड़ी इन सभी समस्या को समझा है और इनमें सुधार भी किया है. वन आधिकार अघिनियम 2006 (Forest Right Act 2006 ) में आदिवासियों को जंगलों में खेती और अन्य आधिकार दिए जाते हैं. इन सभी आधिकारों से आदिवासियों को वन सरंक्षण के चलतें बहुत समय से वंचित रखा जा रहा था.

कौन है हक्की पिक्की और इरूला आदिवासी ?

कर्नाटक में हक्की शब्द का मतलब पक्षी और पिक्की शब्द का मतलब पकड़ना होता है. इन आदिवासियों को जंगलों में औषधीय पेड़ की काफी अच्छी समझ होती है. इनमें से अधिकतर आदिवासी अफ्रीका में जड़ी बूटियां बेचतें है. अप्रैल 2023 में अफ्रीका के सुडान में खराब स्थिति के चलते हक्की पिक्की के 181 सदस्य वहां फाँस गए थे.

इरूला आदिवासी
इरुला आदिवासी आधिकतर तमिलनाडु के उत्तरी क्षेत्र में रहते हैं. इन आदिवासियों की उत्पत्ति दक्षिण पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया से हुई थी. यह आदिवासी कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Group – PVTGs ) में आते हैं.

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