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झारखंड में वन अधिकार कानून को लागू करने में सरकार सुस्त क्यों है

नवंबर 2022 में अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान  राहुल गांधी ने कहा था कि भले ही कांग्रेस सरकार वन और भूमि पर आदिवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) लाई थी लेकिन इसे बीजेपी शासित राज्य में पर्याप्त रूप से लागू नहीं किया जा रहा.

हालांकि, देखने वाली बाते है कि यूपीए शासित राज्य झारखंड आदिवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने में किस हद तक सक्षम है.

झारखंड में तीन साल से कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार है. दोनों पार्टियों ने अपने-अपने घोषणापत्र में आदिवासियों को यथासंभव ज्यादा से ज्यादा वन भूमि टाइटल देने का वादा किया था.

हाल ही में आउटलुक पत्रिका में छपे एक लेख से पता चलता है कि गढ़वा जिले के भंडारिया प्रखंड में आदिवासी बहुल मरदा गांव के आदिवासियों पर वन विभाग द्वारा दायर कई मुकदमें चल रहे हैं.

आदिवासियों को हर महीने सुनवाई के लिए अपने गांव से गढ़वा की जिला अदालत तक 70 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है, जिसमें हर घर से चंदा मांगकर खर्चा वसूला जाता है.

ये आदिवासी दैनिक मजदूरी और मौसमी खेती-किसानी कर गुजारा कर रहे हैं वो इस अतिरिक्त बोझ का सामना करने के लिए मजबूर क्यों हैं?

उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक मरदा के चार लोगों के खिलाफ मामले दर्ज हैं. भारतीय वन अधिनियम, 1927 (बिहार संशोधन 1989) की धारा 33 व 63 के तहत 30 दिसंबर 2014 को दर्ज मुकदमे में नौ लोगों को नामजद किया गया है.

11 मार्च 2015 को 15 आरोपितों पर एक और मुकदमा दर्ज किया गया. 6 सितंबर, 2018 और 18 अगस्त, 2021 को दायर मामलों में क्रमशः सात और पांच लोगों को भारतीय वन अधिनियम की धारा 33(ए), 33(1)(ए) और 33(1)(सी) के तहत आरोपित किया गया है.

सभी मामलों में अपराध समान हैं – ग्रामीणों पर अवैध रूप से संरक्षित वन भूमि पर पेड़ों या झाड़ियों को साफ करने और झोपड़ी बनाने या खेती के लिए भूमि की जुताई करने का आरोप लगाया गया है. झारखंड के लगभग सभी जिलों में ऐसे मामले मिल सकते हैं.

अदालती मामलों से छुटकारा पाने के लिए मरदा के ग्रामीणों ने 7 नवंबर, 2019 को रंका उप-मंडल में लगभग 2,700 एकड़ भूमि के एफआरए के तहत वन टाइटल के लिए एक सामुदायिक दावा दायर किया. हालांकि इसके बाद उन्हें गांव से बेदखल करने के प्रयास बंद हो गए. लेकिन दावे के तीन साल बाद भी उन्हें जमीन का अधिकार दिए जाने के कोई संकेत नहीं दिख रहा है.

आखिरकार, क्या सरकार ने मरदा के वन अधिकार दावे को स्वीकार किया? संक्षिप्त उत्तर नहीं है क्योंकि जनजातीय मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध मासिक रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड सरकार को मार्च 2019 तक कुल 1 लाख 10 हजार 756 दावे प्राप्त हुए थे, जिनमें व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों दावे शामिल थे.

मार्च 2019 और नवंबर 2022 के बीच झारखंड सरकार को एक भी दावा प्राप्त नहीं हुआ. कुल दावों की संख्या 1 लाख 10 हजार 756 पर अपरिवर्तित बनी हुई है.

वेबसाइट के मुताबिक, आखिरी बार राज्य में दावों की संख्या मार्च 2019 में बढ़ी थी और वह तब था जब आखिरी बार भूमि के टाइटल दिए गए थे. फरवरी 2019 में कुल दावों की संख्या 1 लाख 9 हजार 30 से बढ़कर उस वर्ष मार्च में 1 लाख 10 हजार 756 हो गई. जबकि दिए गए टाइटल की संख्या 60 हजार 143 से बढ़कर 61 हजार 970 हो गई.

इसका मतलब है कि इस अवधि के दौरान 1,726 नए दावे प्राप्त हुए और 1,827 नए टाइटल वितरित किए गए. कुल मिलाकर पिछले तीन वर्षों से सरकार ने न तो एक भी दावा प्राप्त करने की बात स्वीकार की है, न ही एक की स्वीकृति दी है.

2006 का वन अधिकार अधिनियम 1 जनवरी 2008 को देश भर में लागू हुआ. इस कानून के तहत अन्य पारंपरिक वन निवासियों (OTFDs) को गांव में रहने और तीन पीढ़ियों या 75 साल से वन भूमि का उपयोग करने का प्रमाण प्रस्तुत करना होता है. इस बीच आदिवासियों, या अनुसूचित जनजातियों को 13 दिसंबर 2005 की समय सीमा से पहले के समान प्रमाण जमा करने होंगे.

एफआरए के तहत आवेदक पहले ग्राम सभा द्वारा गठित एफआरसी को दावे से संबंधित दस्तावेज और सबूत जमा करता है जिसे दस्तावेजों को सत्यापित करने और उन्हें एसडीएलसी को आगे भेजने करने का काम सौंपा गया है. इस बिंदु तक पूरी प्रक्रिया की निगरानी ग्राम सभा द्वारा की जाती है.

उपर्युक्त दावों से जुड़े आवेदक और अन्य प्रासंगिक आंकड़े इस बात पर जोर देते हैं कि उन्होंने एफआरए, 2006 के तहत निर्धारित सभी शर्तों का पालन करते हुए अपना दावा दायर किया है.

कानून के मुताबिक उप-विभागीय अधिकारी की अध्यक्षता में एसएलडीसी दावों की जांच करेगा और अनुमोदित होने पर इसे कलेक्टर की अध्यक्षता वाली जिला स्तरीय समिति को भेजेगा. यह जिला समिति है जो भूमि का टाइटल जारी करती है. एक आवेदक व्यक्तिगत दावे के तहत 10 एकड़ तक वन भूमि का दावा कर सकता है जबकि सामुदायिक दावों की कोई सीमा नहीं है.

2019 मे हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, झारखंड के 32 हजार 112 गाँवों में से 14 हजार 850 गाँव जंगलों से सटे हुए हैं, जिनका क्षेत्रफल 73,96,873.1 हेक्टेयर है. इन क्षेत्रों में 18,82,429.02 हेक्टेयर वन भूमि है जिस पर एफआरए के तहत दावा किए जाने की संभावना है.

इस क्षेत्र की जनसंख्या 2 करोड़ 53 लाख 64 हजार 129 है, जो 46 लाख 86 हजार 235 परिवारों में फैली हुई है. अनुसूचित जनजाति की आबादी 75 लाख 66 हजार 842 और अनुसूचित जाति की आबादी 30 लाख 98 हजार 330 दर्ज की गई थी.

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