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आदिवासी विकास के लिए 40 मंत्रालय काम करते हैं, फिर विकास क्यों नहीं होता…ये है कारण

संसद की पब्लिक अकाउंट कमेटी (Public Account Committee) ने ‘ट्राइबल सब प्लान’ (Tribal Sub Plan) के मामले में सरकार के रवैये से नाखुश है. संसद की इस महत्वपूर्ण माने जाने वाली कमेटी ने ट्राइबल सब प्लान के बारे में सरकार को कुछ ज़रूरी सिफ़ारिश भेजी थीं.

इन सिफ़ारिशों में सबसे महत्वपूर्ण सिफ़ारिश ट्राइबल सब प्लान के फंड को नॉन लैप्सेबल पूल (nofn-lapsable pool) में डालने की सिफ़ारिश सबसे अहम थी. सरकार ट्राइबल सब प्लान के तहत आदिवासी इलाक़ों के विकास पर खर्च करने के लिए अलग से पैसे का प्रावधान करती है.

लेकिन कई बार सरकार के अलग अलग मंत्रालय, विभाग या राज्य सरकारें समय से इस पैसे को ख़र्च नहीं कर पाती हैं. जब समय सीमा के भीतर यह पैसा ख़र्च नहीं होता है तो यह पैसा लैप्स हो जाता है. यानि सरकार इस पैसे को जारी नहीं करती है.

ज़ाहिर है कि सरकार के मंत्रालयों, विभागों या फिर राज्य सरकारों की लापरवाही या सुस्ती का परिणाम होता है कि आदिवासी इलाक़ों के विकास पर पैसा कम खर्च होता है.

संसदीय समिति ने कहा है कि TSP फंड के बारे में दी सिफ़ारिशों पर सरकार चुप्पी साध गई है.

संसद की पब्लिक अकाउंट कमेटी ने इस सिलसिले में सिफ़ारिश दी थी कि ट्राइबल सब प्लान का पैसा नॉन लैप्सेबल पूल में डाल दिया जाना चाहिए. यह कदम उठाने से आदिवासी इलाक़ों के विकास के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध हो सकेगा.

फ़िलहाल केंद्र सरकार के कम से कम 40 मंत्रालयों में आदिवासी इलाक़ों में विकास कार्यों के लिए धन उपलब्ध कराने का प्रावधान है. 2017 में संसद की इस कमेटी ने तीन मंत्रालयों  – शिक्षा, स्वास्थ्य और आयुष – की योजनाओं को लागू करने के काम की समीक्षा की थी. 

अपनी रिपोर्ट में संसदीय कमेटी ने बताया था कि इस समीक्षा में इन मंत्रालयों के काम में कई कमियाँ पाई गई थीं. कमेटी ने यह पाया था कि वित्त वर्ष के समाप्त होने के साथ ही योजनाओं के लिए उपलब्ध कराया गया धन लैप्स हो जाता है.

2017 की इस रिपोट में संसदीय कमेटी ने यह भी बताया कि आदिवासी मंत्रालय ने ट्राइबल सब प्लान का पैसा सही तरीक़े से सही समय पर और सही जगह पर खर्च किया जाए, इसके लिए कोई निगरानी व्यवस्था या गाइडलाइन्स नहीं बनाई हैं.

इसलिए कमेटी ने यह सिफ़ारिश की थी कि आदिवासी इलाक़ों के लिए ट्राइबल सब प्लान का जो पैसा है, वह वित्त वर्ष समाप्त होने पर लैप्स ना हो इसका प्रावधान किया जाना चाहिए. 

लेकिन कमेटी ने संसद में 14 दिसंबर को जो रिपोर्ट पेश की है उसमें यह बताया है कि सरकार ने उसकी सिफ़ारिश को नज़रअंदाज़ कर दिया है. संसदीय कमेटी की एक्शन टेकन रिपोर्ट में यह बताया गया है कि सरकार कमेटी की इस सिफ़ारिश पर चुप्पी साध गई है. 

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