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निकोबार आदिवासियों की चिंताएं फिर से NCST के सामने

ग्रेट निकोबार द्वीप मेगा प्रोजेक्ट (Great Nicobar Island mega project) से प्रभावित होने वाली आदिवासी ज़मीनों और जंगल के अधिकारों के भविष्य को लेकर चिंताएं एक बार फिर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के चेयरपर्सन की टेबल पर आ गई हैं.

लिटिल और ग्रेट निकोबार द्वीप के जनजातीय परिषद के अध्यक्ष ने इस महीने की शुरुआत में NCST को चिट्ठी लिखकर ग्रेट निकोबार मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का आदिवासी ज़मीनों और जंगल के अधिकारों पर पड़ने वाले असर के बारे में पहले उठाई गई “अनुत्तरित” शिकायतों पर ध्यान दिलाया है.

ट्राइबल काउंसिल की तरफ से NCST को 6 दिसंबर को दी गई ताज़ा याचिका, NCST के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्य के 26 नवंबर को द इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक इंटरव्यू के बाद दी गई थी.

उस इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि कमीशन को इस प्रोजेक्ट के लिए ट्राइबल रिज़र्व को डिनोटिफाई करने और जंगल की ज़मीन को डाइवर्ट करने के लिए काउंसिल द्वारा नो-ऑब्जेक्शन वापस लेने के बारे में कोई रिप्रेजेंटेशन नहीं मिला है.

लिटिल एंड ग्रेट निकोबार ट्राइबल काउंसिल के अध्यक्ष, बरनबास मंजू ने NCST का ध्यान उस शिकायत की ओर भी दिलाया है जो काउंसिल ने 21 जुलाई को केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम को की थी.

इसमें बताया गया था कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह प्रशासन ने आदिवासी समुदायों के वन अधिकारों के निपटारे के बारे में झूठा दावा किया था.

अध्यक्ष ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत अधिकारों के निपटारे के दावे किए गए थे, जबकि द्वीपों पर अधिकारों को मान्यता देने की प्रक्रिया अभी शुरू भी नहीं हुई थी.

जनजातीय परिषद के अध्यक्ष ने अपने पत्र में कहा कि उन्हें इस बात का दुख है कि इन किसी भी रिप्रेजेंटेशन पर कोई जवाब नहीं मिला.

6 दिसंबर के जनजातीय परिषद के पत्र में कहा गया है, “मैं 26 नवंबर, 2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में छपे आपके इंटरव्यू के जवाब में लिख रहा हूं, जिसमें आपने कहा था कि NCST को जंगल के डायवर्जन के लिए NOC वापस लेने और ट्राइबल रिजर्व को डी-नोटिफाई करने के बारे में कोई रिप्रेजेंटेशन नहीं मिला है.”

परिषद के अध्यक्ष ने यह भी कहा कि पुरानी अर्जियां इसलिए उपलब्ध कराई जा रही हैं ताकि NCST इस मामले को देखे और इस बार हमारी चिंताओं पर ध्यान दे.

इंडियन एक्सप्रेस ने ट्राइबल काउंसिल के लेटर पर जवाब के लिए आर्य से संपर्क किया.

आर्य ने कहा कि हालांकि ये लेटर मार्च 2024 में उनके पद संभालने से पहले कमीशन को भेजे गए थे, लेकिन उन्होंने कहा, “मैं इस मामले में जानकारी लूंगा और इस पर गौर करूंगा.”

इस बीच, इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बरनबास मंजू ने कहा कि उन्हें “उम्मीद है कि ये अर्जियां NCST के सामने आदिवासी समुदायों की मांगों और मुद्दों की सही तस्वीर पेश करेंगी क्योंकि द्वीपों का दौरा करने वाली NCST टीम उनसे नहीं मिली थी.”

81 हज़ार करोड़ रुपये का ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट 166 वर्ग किलोमीटर में फैला होगा और इसमें 130 वर्ग किलोमीटर जंगल की ज़मीन का डायवर्जन शामिल है. इसमें एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, एक इंटीग्रेटेड टाउनशिप, सिविल और मिलिट्री इस्तेमाल के लिए एक एयरपोर्ट, 450 MVA का गैस और सोलर पावर-बेस्ड प्लांट बनाया जाएगा.

NCST को एक बार फिर भेजे गए पुराने रिप्रेजेंटेशन और शिकायतों में मेगा प्रोजेक्ट के निकोबारी समुदाय की पुश्तैनी ज़मीनों पर पड़ने वाले असर के बारे में बताया गया है.

इस समुदाय को 2004 की बड़ी सुनामी के दौरान उनके गांवों से विस्थापित किया गया था और इसमें खास तौर पर कमज़ोर शोम्पेन जनजाति पर पड़ने वाले असर का भी ज़िक्र है.

जनजातीय परिषद ने जुलाई में जनजातीय मामलों के मंत्री से साफ तौर पर कहा था कि वे नहीं चाहते कि प्रस्तावित प्रोजेक्ट उनके गांवों में या किसी ऐसे इलाके में बने जो जनजातीय रिज़र्व एरिया का हिस्सा हो, या उन इलाकों में बने जिनका इस्तेमाल शोम्पेन जनजाति करती है, जिनकी संख्या सिर्फ़ सैकड़ों में है.

जनजातीय परिषद के अध्यक्ष के पत्र में 2022 में भेजे गए दो कम्युनिकेशन की लिस्ट दी गई है.

पहला कम्युनिकेशन, जिसकी तारीख 22 अगस्त, 2022 थी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लेफ्टिनेंट गवर्नर को भेजा गया था और NCST के साथ-साथ दूसरी एजेंसियों को भी मार्क किया गया था. यह ग्रेट निकोबार द्वीप के निकोबारी लोगों को जल्द से जल्द सुनामी से पहले (2004 की सुनामी) वाले गांवों में वापस बसाने से जुड़ा था.

दूसरा लेटर, जिसकी तारीख 22 नवंबर, 2022 थी, उसमें ट्राइबल काउंसिल ने ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए 130 वर्ग किमी जंगल को डाइवर्ट करने के लिए दिए गए नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट को रद्द कर दिया था और 84.10 वर्ग किमी में फैले ट्राइबल रिजर्व को डी-नोटिफाई करने की सहमति भी वापस ले ली थी.

अपने नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट को रद्द करने वाले लेटर में ट्राइबल काउंसिल ने बताया था कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी कि उनका ट्राइबल रिजर्व मेगा-प्रोजेक्ट के लेआउट में आएगा.

काउंसिल ने तब कहा था कि उन्हें यह जानकर झटका लगा और दुख हुआ कि सुनामी से पहले के चिंगेनह गांव, जो दक्षिण-पूर्वी तट पर हैं और कोकेओन, पुलो पुक्का, पुलो बहा और इन-हेंग-लोई, जो दक्षिण-पश्चिमी तट पर हैं…उनके कुछ हिस्सों को भी डी-नोटिफाई करके प्रोजेक्ट के लिए डाइवर्ट किया जाएगा.

उन्होंने बताया था कि यह तथ्यों को छिपाना था और इससे उनके अपने पैतृक गांवों में वापस जाने की मांगों पर असर पड़ा.

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