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बड़े उद्योगपतियों को आदिवासी जमीन ट्रांसफर करने के खिलाफ असम जनजातीय परिषद में विरोध प्रदर्शन

12 अगस्त को असम के उच्च न्यायालय के जज संजय कुमार मेधी अदालत में यह सुन कर सन्न रह गए कि सरकार ने एक सीमेंट कंपनी को आदिवासियों की 3000 एकड़ ज़मीन देने का फ़ैसला कर लिया.

जब कंपनी की वकील ने उन्हें यह बताया कि कंपनी को 3000 एकड़ ज़मीन दिए जाने का फ़ैसला किया जा चुका है तो जस्टिस मेधी ने हतप्रभ होते हुए पूछा कि क्या पूरा नॉर्थ कछार ज़िला ही कंपनी को दे दिया गया है?

उनकी यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. राज्य के उच्च न्यायलय के एक जज की टिप्पणी और उनकी हैरानी अपनी जगह पर है, लेकिन इस ख़बर से हर वो आदमी परेशान होगा जो यह जानता है कि जहां यह ज़मीन कंपनी को दी गई है, वहां कोई भी ग़ैर आदिवासी ज़मीन नहीं ख़रीद सकता है.

यह इलाका संविधान की अनुसूचि 6 के तहत आता है और यहां पर एक स्वायत्त आदिवासी परिषद का प्रावधान है.

सरकार के इस आदिवासी विरोधी फ़ैसले के ख़िलाफ़ राजनीतिक लड़ाई भी चल रही है.

असम के कार्बी आंगलोंग (Karbi Anglong) जिले के मुख्यालय दीफू में बुधवार (20 अगस्त, 2025) को बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए. ये लोग असम सरकार द्वारा आदिवासी भूमि को बड़े कॉर्पोरेट घरानों को सौंपने के कदम का विरोध कर रहे थे.

ऑल पार्टी हिल्स लीडर्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष जोन्स इंगती कथार (Jones Ingti Kathar) के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली कार्बी आंगलोंग स्वायत्त जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी सदस्य तुलीराम रोंगहांग के खिलाफ नारे लगाए.

यह विरोध तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब गुवाहाटी हाई कोर्ट के एक जज ने असम सरकार द्वारा कोलकाता में पंजीकृत एक निजी फर्म को आदिवासी बहुल दीमा हसाओ जिले में 3,000 बीघा ज़मीन आवंटित करने पर हैरानी जताई.

उधर रैली में शामिल हुए असम जातीय परिषद के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई (Lurinjyoti Gogoi) ने तुलीराम रोंगहांग पर कॉर्पोरेट संस्थाओं के साथ मिलीभगत करने और कार्बी आंगलोंग के आदिवासी और मूल निवासी समुदायों के हितों के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, “परिषद के प्रमुख 200 करोड़ रुपये का आलीशान घर बनवा रहे हैं. वहीं इस पहाड़ी जिले के आदिवासी कच्चे, अस्थायी घरों में रहने को मजबूर हैं. भाजपा कॉर्पोरेट घरानों को ज़मीन सौंपकर पहाड़ी समुदायों की सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान को ख़तरे में डाल रही है.”

इससे पहले जुलाई में असम कांग्रेस अध्यक्ष गौरव गोगोई द्वारा एक निर्माणाधीन मकान का वीडियो जारी करने के बाद विवाद खड़ा हो गया था.

जिसके बारे में गोगोई ने दावा किया था कि यह मकान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के एक “करीबी दोस्त” का है. उनका इशारा रोंगहांग की ओर था.

क्या है पूरा मामला?

गुवाहाटी हाई कोर्ट ने पिछले हफ़्ते एक सुनवाई में असम के आदिवासी बहुल दीमा हसाओ जिले में एक निजी कंपनी को सीमेंट फ़ैक्टरी लगाने के लिए 3,000 बीघा ज़मीन आवंटित किए जाने पर तीखी टिप्पणियां कीं.

साथ ही राज्य को वह नीति पेश करने का निर्देश दिया जिसके तहत भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में इतनी बड़ी जमीन आवंटित की गई है.

दीमा हसाओ असम का एक आदिवासी बहुल पहाड़ी ज़िला है. इसका प्रशासन भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के प्रावधानों के तहत एक North Cachar Hills Autonomous Council (NCHAC) द्वारा किया जाता है.

लेकिन अक्टूबर 2024 में कोलकाता में रजिस्टर्ड पते वाली एक निजी कंपनी महाबल सीमेंट प्राइवेट लिमिटेड को 2,000 बीघा जमीन आवंटित की गई थी. उसी साल नवंबर में 1,000 बीघा जमीन का एक और भूखंड उसी कंपनी को आवंटित की गई.

NCHAC के अतिरिक्त सचिव (राजस्व) द्वारा जारी आवंटन आदेश में कहा गया है कि इसका उद्देश्य एक सीमेंट प्लांट की स्थापना है.

पिछले हफ़्ते इस आवंटन से संबंधित दो याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान बेंच ने कड़ी प्रतिक्रिया दी.

जस्टिस संजय कुमार मेधी ने कहा, “यह कैसी निर्णय प्रक्रिया है? मज़ाक है क्या ये? 3,000 बीघा का क्या मतलब समझते हैं? यह तो जिले का आधा हिस्सा हो जाएगा. कंपनी बहुत ही प्रभावशाली होगी तभी इतनी ज़मीन उसे दी गई है.”

अदालत ने कहा कि जहां पर जमीन आवंटन हुआ है, वह संविधान की 6वीं अनुसूचि में आता है. संविधान में यह व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि स्थानीय आदिवासियों के हितों की सुरक्षा की जा सके.

अदालत ने आगे कहा कि जिस क्षेत्र (उमरांगसो) में जमीन का आवंटित की गई है, वह पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है. यहां प्रवासी पक्षियों की बड़ी संख्या पाई जाती है. इसके अलावा यह क्षेत्र कई वन्यजीवों का ठिकाना है.

हाई कोर्ट ने नॉर्थ कछार हिल्स ऑटोनॉमस काउंसिल (NCHAC) को आदेश दिया कि ज़मीन आवंटन की पूरी नीति और रिकॉर्ड अदालत में पेश किए जाएं.

कोर्ट ने फिलहाल कहा कि वह आवंटन की पूरी प्रक्रिया की जांच करेगी. मामले की अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी.

दरअसल, बेंच उन ग्रामीणों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें अपनी बेदखली के खिलाफ अदालत का रुख करना पड़ा. दूसरी ओर महाबल सीमेंट्स ने भी याचिका दायर कर अपने व्यावसायिक कामकाज को बाधित करने वाले “गैरकानूनी तत्वों” से सुरक्षा की मांग की है.

कंपनी की ओर से अधिवक्ता, जी गोस्वामी ने दलील दी कि ज़मीन उन्हें 30 साल की लीज़ पर विधिवत टेंडर प्रक्रिया के बाद मिली है.

वहीं स्थानीय आदिवासियों की ओर से अधिवक्ता एआई कथार और ए रोंगफर ने कहा कि ग्रामीणों को अपनी ज़मीन से बेदखल नहीं किया जा सकता.

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