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सुप्रीम कोर्ट से मध्य प्रदेश को धर्मांतरण क़ानून पर फ़ौरी राहत नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी लोग लोभ-लालच या फिर किसी डर से धर्म परिवर्तन करते हैं यह नहीं माना जा सकता है. यह कहते हुए सर्वोच्च अदालत ने मध्य प्रदेश सरकार के धर्म परिवर्तन को रोकने वाले क़ानून (Anti Conversion Law) को लागू करने पर लगी रोक को फ़िलहाल हटाने से मना कर दिया है.

हालाँकि अदालत ने कहा है कि वो मध्य प्रदेश सरकार की इस मामले में दायर अपील को सुनेगी और उस पर फ़ैसला भी देगी. जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रवि कुमार की बेंच ने इस सिलसिले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फ़ैसले पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया. 

मध्य प्रदेश में धर्म परिवर्तन रोकने के लिए लाए गए क़ानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति को धर्म परिवर्तन करने से पहले राज्य प्रशासन को कम से कम दो महीने पहले बताना पड़ेगा. 

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस कानून के सिलसिले में दिए आदेश में कहा था कि इसे लागू नहीं किया जा सकता है. इस आदेश के ख़िलाफ़ मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. 

पिछले साल नवंबर महीने में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि राज्य के धर्म परिवर्तन को रोकने वाले क़ानून (Madhya Pradesh Freedom of Religion Act 2021) की धारा 10 संविधान के अनुकूल नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट 7 फ़रवरी को फिर से मामले की सुनवाई करेगा.

सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ़ से सॉलिसिटर जनरल ऑफ़ इंडिया ने दावा किया कि धर्मांतरण एक राष्ट्रीय मुद्दा है. उन्होंने पूरा ज़ोर लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से मध्य प्रदेश के धर्म परिवर्तन से जुड़े क़ानून पर हाईकोर्ट के फ़ैसले पर अंतरिम रोक की माँग रखी.

उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले पर रोक नहीं लगाई तो देश भर में अलग अलग हाईकोर्ट में इस फ़ैसले का प्रभाव देखा जाएगा. उन्हें आशंका है कि धर्म परिवर्तन से जुड़े जो क़ानून अलग अलग राज्यों में पास किये गए हैं, उनको भी ख़ारिज किया जा सकता है.

सॉलिसिटर जनरल ने अदालत में दावा किया है कि धर्म परिवर्तन कराने के लिए शादियाँ की जाती है. अदालत में अपना तर्क रखते हुए उन्होंने कहा कि सरकार इस तरफ़ से आँख नहीं मूँद सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने फ़िलहाल तो मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगाने से इंकार डकर दिया है. लेकिन इस मामले को 7 फ़रवरी को फिर से सुना जाएगा और तब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगाई जानी चाहिए या नहीं.

देश में मध्य प्रदेश ही नहीं बीजेपी शासित कई राज्यों में धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए क़ानून बनाए गए हैं. संघ परिवार और बीजेपी लंबे समय से लव जिहाद को एक राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश में है.

लव जिहाद के सहारे अक्सर मुसलमानों को टारगेट किया जाता है. लेकिन अब यह देखा जा रहा है कि देश के आदिवासी इलाक़ों में भी धर्मांतरण को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान आदिवासियों से जुड़े अपने भाषणों में धर्म परिवर्तन और लव जिहाद को मुद्दा बना रहे हैं. उधर छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी और आरएसएस से जुड़े संगठन इस मुद्दे को उछालने में कामयाब रहे हैं.

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर और बस्तर के कुछ और इलाक़ों में धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने आदिवासियों के साथ मार-पीट की घटनाएँ हुई थीं. उसके बाद भीड़ ने कुछ चर्चों को निशाना बनाया था. 

इस मामले में बीजेपी के ज़िला अध्यक्ष सहित उनकी पार्टी के कई कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए हैं. अभी भी बीजेपी इस विवाद को और हवा देने की कोशिश कर रही है. उसके कई बड़े नेता नारायणपुर के उन इलाक़ों में जाने की ज़िद पर अड़े हैं जहां तनाव बना हुआ है.

इसके अलावा कुछ दिन पहले ही आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत छत्तीसगढ़ में आए थे. उन्होंने अपनी इस यात्रा में दिलीप सिंह जूदेव की प्रतिमा का अनावरण भी किया था. दिलीप सिंह जूदेव धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों की घर वापसी यानि फिर से धर्म परिवर्तन करवाने के लिए जाने जाते थे.

आरएसएस और बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में हिन्दू सम्मेलन कराने की घोषणा भी की है.

इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला बेहद अहम होगा. क्योंकि यह केवल क़ानूनी दांव पेंच का मामला नहीं है, बल्कि देश के सामाजिक ताने-बाने का मामला है. उसमें भी आदिवासी समाज का वह तबका है जो निशाने पर है. 

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