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समान नागरिक संहिता लागू हुई तो आदिवासी संस्कृति और स्वशासन का क्या होगा?

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने देश पर में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने पर कहा है कि भारत संस्कृतियों का एक गुलदस्ता है. बीजेपी सरकार को सदैव हिंदू मुसलमान के कोण से नहीं सोचना चाहिए. मंगलवार 27 जून को उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि इस देश में आदिवासी भी रहते हैं. उनकी संस्कृति और परंपराओं का क्या होगा?

मंगलवार को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने पर ज़ोर दिया था. भाजपा कार्यकर्ताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने यूसीसी के कार्यान्वयन की जोरदार वकालत की और कहा कि संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार देने का भी उल्लेख है.

पीएम की टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर, बघेल ने कहा, “आप (भाजपा) हमेशा हिंदू-मुस्लिम दृष्टिकोण से क्यों सोचते हैं? छत्तीसगढ़ में, हमारे पास आदिवासी लोग हैं। उनकी मान्यताओं और रूढ़िवादी नियमों का क्या होगा जिनके माध्यम से वे अपने समाज को नियंत्रित करते हैं? यदि यूसीसी लागू हो गया तो उनकी परंपरा का क्या होगा?”

उन्‍होंने कहा कि कई अन्य जाति समूह भी हैं जिनके अपने नियम हैं। हमारा देश एक खूबसूरत गुलदस्ते की तरह है जिसमें विभिन्न धर्मों को मानने वाले, विभिन्न भाषाएं बोलने वाले, विभिन्न संस्कृतियों का पालन करने वाले लोग हैं. हमें उन्हें भी देखना होगा, बघेल ने कहा.

कई राज्यों में आदिवासी विरोध कर रहे हैं

छत्तीसगढ़ में 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या में 30 प्रतिशत आदिवासी हैं. यहां पर आदिवासी समुदाय में अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के बारे में पहले से ही एक बेचैनी नज़र आती है. 

उधर झारखंड में भी कुल आबादी का 28 प्रतिशत से ज़्यादा आदिवासी जनसंख्या रहती है. यहां पर समान नागरिक संहिता को लागू करने के प्रस्ताव के विरोध में आदिवासी संगठनों ने 5 जुलाई को राजभवन का घेराव करने का ऐलान किया है. इस सिलसिले में राज्य के अलग अलग आदिवासी समुदायों का एक संगठन आदिवासी समन्यवय समिति बनाई गई है.

इस समिति ने तय किया है कि रांची में राजभवन पर प्रदर्शन करने के अलावा विधि आयोग (Law Commission) को भी एक विरोध पत्र लिखा जाएगा. झारखंड में आदिवासी समुदायों में अभी भी आदिवासी समाज काफी हद तक अपने परंपरागत रूढ़ी कानूनूों को मानता है.

उनका सामाजिक और धार्मिक जीवन इन्हीं नियमों से संचालित होता है. इसके अलावा उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए संविधान में उन्हें कई विशेष सुरक्षा दी गई हैं. झारखंड के दो बड़े आदिवासी इलाकों छोटा नागपुर और संथाल परगना के लिए छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट (CNT and SPTA) मौजूद हैं.

इसके अलावा हो आदिवासियों के कोल्हान क्षेत्र में विलकिंसन रूल्स भी हैं. ये सभी कानून आदिवासियों को स्वशासन का अधिकार देते हैं. आदिवासियों को डर है कि समान नागरिक संहिता कानून लागू करने की स्थिति में ये कानून बेमान हो जाएंगे.

छत्तीसगढ़ और झारखंड के अलावा पूर्वो्त्तर के राज्यों मेघालय और नागालैंड से भी जनजातीय समुदायों के संगठनों ने यूसीसी का विरोध किया है. इन संगठनों ने विधि आयोग से आग्रह किया है कि समान नागरिक संहिता के प्रस्ताव को वापस लिया जाए. 

समान नागरिक संहिता पर देश में आज़ादी के बाद से ही बहस होती रही है. बीजेपी के लिए कश्मीर में धारा 370 की तरह ही समान नागरिक संहिता को लागू करना एक राजनीतिक मुद्दा है.

लेकिन भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक विविधता को देखते हुए समान नागरिक संहिता लागू करना आसान काम नहीं है. बीजेपी ने समान नागरिक संहिता के मुद्दे को हिंदू-मुसलमान की दृष्टि से पेश किया है.

लेकिन भारत में कुल जनसंख्या का करीब 8-10 प्रतिशत आदिवासियों का भी है. ये समुदाय अपनी विशिष्ट सास्कृतिक पहचान के लिए जाने जाते हैं.

संविधान में भी ऐसे प्रावधान किये गए हैं जिससे इन समुदायों की पहचान को बचाया जा सके. देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने से पहले आदिवासी समुदायों को विश्वास में लिया जाना बेहद ज़रूरी है.

देश में समान नागरिक संहिता को संसद में संख्या बल के दम पर लागू करना, कई राज्यों में क़ानून व्यवस्था की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण स्थितिया बना सकता है.

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