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अरुणाचल में जनजातियों की पहचान और विविधता को स्वीकार करने वाला विधेयक

संसद ने अरुणाचल प्रदेश में जनजातियों की पहचान से जुड़ा एक अहम बिल पास किया है. आदिवासी समुदायों की पहचान और विविधता उनके लिए सांस्कृतिक मामला भर नहीं है.

उनकी पहचान और विविधता को मान्यता नहीं मिलने से उनको संविधान में दिए गए अधिकार और सुरक्षा से भी नहीं मिल पाती है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तो अरुणाचल प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों की सूची में संशोधन के इस प्रस्ताव को एक साल पहले ही मंजूरी दे दी थी.

लेकिन संसद ने पिछले सप्ताह संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक 2021 पारित किया.

 इस विधेयक का उद्देश्य अरुणाचल प्रदेश की कुछ जनजातियों के नामों में संशोधन करना था. अरुणाचल प्रदेश का उल्लेख संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में किया गया है.

केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू, जो अरुणाचल प्रदेश से हैं और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने विधेयक को “ऐतिहासिक” करार दिया है. अरुणाचल प्रदेश के इन दोनों ही बड़े नेताओं ने कहा है कि यह संशोधन “जनजातियों को उनकी असली पहचान वापस दे देगा.”

बिल क्या संशोधन करता है?

विधेयक संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 की अनुसूची के भाग-XVIII को संशोधित करने का प्रयास करता है. दरअसल 1950 के इस आदेश में अरुणाचल की 16 जनजातियों को सिलसिलेवार रखा गया है.

ये जनजातियाँ हैं – अबोर, आका, अपतानी, निशी, गैलोंग, खम्पटी, खोवा, मिश्मी [ इडु, तारून], मोम्बा, कोई भी नागा जनजाति, शेरडुकपेन, सिंगफो, ह्रसो, तागीन, खंबा और आदि. 

इस विधेयक के ज़रिए जनजातियों के नामों में ग़लती को सुधारने का प्रयास किया गया है. इस विधेयक ने इस आदेश में यानि अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों की सूचि में कुछ जनजातियों के नाम जोड़े हैं. अभी तक इन जनजातियों के नाम या तो अस्पष्ट या उनके मूल समूह का नाम ही था, जबकि ये जनजातियाँ किसी उपनाम से जानी जाती हैं. 

निशी समुदाय के एक समारोह की तस्वीर

इस विधेयक के ज़रिए जो 5 बदलाव किए गए हैं वो कुछ इस तरह से हैं – सीरियल नंबर 1 पर ‘अबोर’ (जनजाति) को हटाना; क्रमांक 6 पर ‘खम्पटी’ को बदलकर ‘ताई खामती’ कर दिया गया है.

मिश्मी [इडु, तरूण] के स्थान पर क्रमांक 8 पर ‘मिश्मी-कमान (मिजू मिश्मी),  ‘इदु (मिश्मी)’ और ‘तारों (दिगारू मिश्मी)’ सहित; ‘मोम्बा’ के स्थान पर क्रमांक 9 पर ‘मोनपा’, ‘मेम्बा’, ‘सरतांग’, ‘सजोलंग (मिजी)’ सहित; और अंत में, सीरियल नंबर 10 पर ‘एनी नागा ट्राइब्स’ की जगह चार जनजातियों के नाम: ‘नोक्ते’, ‘तांगसा’, ‘तुत्सा’ और ‘वांचो’ के नाम रखे गए हैं. 

यह विधेयक क्या मायने रखता है, क्या यह ज़रूरी था ?

जनजातियों का मूल नामकरण की माँग अरुणाचल प्रदेश में लंबे समय से हो रही है. अरुणाचल प्रदेश में इस माँग के पीछे दो बड़े कारण बताये जाते हैं . पहला है व्यक्तिगत पहचान और मान्यता के लिए इन त्रुटियों को सुधारना ज़रूरी था. दूसरा अभी तक भी इस अनुसूची में जनजातियों के अधिकांश नाम “औपनिवेशिक व्याख्या” के अनुसार थे. 

अरुणाचल प्रदेश में इस कदम को ज़्यादातर बुद्धिजीवी भी ज़रूरी और सही कदम बता रहे हैं.  

आमतौर पर अरुणाचल प्रदेश के बारे में यह धारणा है कि यहाँ पर  में 26 जनजातियां हैं, लेकिन जमीन पर संख्या बहुत अधिक है.  क्योंकि वहां बहुत सारी जनजातियां, उप-जनजातियां हैं, जिन्हें सूचीबद्ध नहीं किया गया है.

उदाहरण के लिए, मिश्मी  समुदाय के ही तीन समूह हैं: इडु, कमान और तराँव.  लेकिन 1950 के आदेश में इसका उल्लेख मिश्मी के रूप में ही किया गया है.

लेकिन वास्तव में, इडु भाषाई और साथ ही संस्कृति के पहलुओं में कमान और तारां से अलग है. कमान और तारां सांस्कृतिक रूप से समान हैं (पोशाक, आभूषण आदि के मामले में) लेकिन भाषाई रूप से भिन्न हैं.

इसी तरह, नोक्टे, तांगसा, तुत्सा और वांचो का उल्लेख “अन्य नागा जनजातियों” के रूप में किया गया है, जिन्हें सीधे औपनिवेशिक रिकॉर्ड से उधार लिया गया है. लेकिन इन समुदायों का अपना नामकरण है और वे सांस्कृतिक रूप से इनमें विवधता मिलती है. ह 

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