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दंडकारण्य की दुविधा: मोटरसाइकिल डायरी

छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले की पखांजुर तहसील में कोटरी नदी के पार मैं भी भारत की टीम ने कई दिन बिताए. बेचाघाट से डोंगी में नदी पार कर हम सबसे पहले कंदाड़ी गाँव पहुँचे थे. यहाँ हमने एक रात बिताई और फिर अगले दिन हम आमाटोला नाम के गाँव के लिए निकल गए थे.

इस जंगल में घूमने के दो ही तरीक़े थे. पहला तरीक़ा था मोटरसाइकिल की सवारी और दूसरा तरीक़ा था पैदल ही घूमना. हमारी टीम के सामान के साथ मोटरसाइकिल की सवारी आसान नहीं थी. लेकिन इतना वज़न लेकर चलना भी आसान नहीं था.

मनकू नेताम, लक्ष्मण और राजेश की मदद से हम यह यात्रा कर पाए थे. इस जंगल में बसे गाँवों में हमारी कई आदिवासी परिवारों से मुलाक़ात हुई. इन मुलाक़ातों में हमें गोंड आदिवासी समुदाय को थोड़ा और क़रीब से देखने समझने का मौक़ा भी मिला.

इन आदिवासियों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हम कुछ दिन के लिए ही सही शामिल हो गए थे. हमने देखा कि कैसे आदिवासी औरतें परिवार और पशुओं के लिए ख़ाना जुटाने में पूरा दिन काम करती रहती हैं.

जंगल हो या खेत, औरतों के हिस्से में काम ज़्यादा ही आता है. आदमी या तो मज़दूरी पर जाते हैं या फिर खेत में फ़सल बुआई के समय हल चलाने का काम करते हैं. लेकिन रोज़मर्रा की ज़िंदगी में मर्द कोई ख़ास कामकाज नहीं करते हैं.

इस इलाक़े में एक जगह जंगल के भीतर हमें बांस से बना एक लाल गेट भी मिला. इस पर माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थापना दिवस को मनाने संबंधी कुछ नारे लिखे थे. इस इलाक़े में माओवादी संगठन का असर साफ़ नज़र आ रहा था.

यहाँ के गाँवों में सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के बारे में कई लोगों से चर्चा हुई. इन चर्चाओं में लोगों ने स्कूल और अस्पतालों पर सबसे अधिक ज़ोर दिया. इस तरह की बातचीत में बार बार लोगों ने आदिवासी छात्रों के लिए बनाए गए हॉस्टल खोलने की माँग की.

कोरोना की वजह से ये हॉस्टल लंबे समय से बंद पड़े हैं. ये बातें मुझे काफ़ी प्रभावित कर रही थीं. आदिवासी दंडकारण्य में अगर स्कूल, अस्पताल और हॉस्टल की माँग कर रहे हैं तो इससे बेहतर भला क्या हो सकता है.

इस बातचीत में शामिल लोगों से मैंने पूछा कि कोटरी नदी पर पुल नहीं है. लोग डोंगी या फिर पानी में घुस कर नदी पार करते हैं. इसके अलावा जंगल में तो बरसात के समय मोटरसाइकिल भी चलान मुश्किल होती होगी ?

इस सवाल का जवाब नहीं आया, सब चुप थे. मैंने अपने सवाल दोहराये तो उनमें से कुछ लोग मुस्कराते हुए बोले, “पुल और सड़क नहीं चाहिए”.

मैंने उनसे पूछा कि अगर पुल और सड़क नहीं होगा तो स्कूल, हॉस्टल और अस्पताल कैसे आएगा? कोई भी मास्टर या डॉक्टर कैसे रोज़ नदी पार करने के लिए डोंगी का इंतज़ार करेगा फिर किलोमीटरों तक पैदल चलेगा?

इस सवाल का जवाब मुझे नहीं मिला था.

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