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फड़ा पेन: मध्य प्रदेश के आदिवासियों का धर्म और दर्शन

मध्य प्रदेश के मंडला ज़िले में यह हमारा तीसरा दिन था. हम लोग एक कहानी की तलाश में यहां के ओढ़ारी गांव में पहुंच थे.

ओढारी गाँव के बाहर ही देव स्थान बनाया गया है. जहां पर उनके सर्वोच्च देवता को स्थापित किया गया है. आम भाषा में वे अपने सर्वोच्च देव को बड़ा देव पुकारते हैं.

औपचारिक तौर पर उनके सर्वोच्च देव को फ़डा पेन कहा जाता है. फड़ापेन को गोंड आदिवासी प्रकृति शक्ति का प्रतीक मानते हैं. यह देव वह शक्ति है  जो समस्त जीव जगत को जीवन प्रदान करता है.

आज उसी बड़ा देव को पूजने के लिए गाँव के लोग  निकले हैं जो परंपरागत वाद्य यंत्रों के संगीत पर झूमते हुए देव स्थान की तरफ़ बढ़ते हैं, इस पूजा में स्त्री पुरूष सभी शामिल रहते हैं.

गोंड समुदाय भी अन्य आदिवासी समुदायों की तरह ही अपने पुरखों की आत्माओं में बहुत गहरा विश्वास रखता है. उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवों के अलावा पुरखों को शांत करना परिवार, गाँव और समाज के कल्याण के लिए बेहद ज़रूरी है.

यह समुदाय मानता है कि आह्वान करने पर उनके सेरमिया यानि पुजारी के भीतर बड़ा देव प्रवेश करता है. एक बार जब देव सेरमिया के भीतर प्रवेश कर जाता है तो उसके शब्दों को सर्वशक्तिमान भगवान का आदेश माना जाता है. 

बड़ा देव या फडा पेन की पूजा में गाँव के पुरूष और स्त्री दोनों ही शामिल होते हैं. लेकिन पूजा का विधि विधान सब पुरूष ही करते हैं. महिलाएँ मौजूद रहती हैं लेकिन वे सभी पीछे की तरफ़ बैठती है.

गोंड समुदाय के लोगों की आस्था के अनुसार उनके सर्वोच्च देव यानि प्रकृति शक्ति या बड़ा देव जंगल में ही वास करते हैं. वहाँ वे एक ख़ास वृक्ष में होते हैं.

गांव में यह जो देव स्थान बना है यहाँ पर साधारण पूजा होती है. इस पूजा में गाँव के सभी परिवार शामिल होते हैं. लेकिन बड़ा देव की मुख्य पूजा एक ख़ास समय पर जंगल में की जाती है.

फड़ा पेन या बड़ा देव की पूजा कराने की ज़िम्मेदारी गोंड समुदाय में ख़ास लोगों की होती है. इनमें ग्राम पटेल की ज़िम्मेदारी मुख्य होती है. उसके अलावा उसका सहयोग करने के लिए दीवान, कोटवार के अलावा कुछ और लोग होते हैं.

ये लोग मिलकर पूरी व्यवस्था को देखते हैं. जो व्यक्ति पुजारी की भूमिका निभाता है उसे सेरमिया कहा जाता है.

ओढ़ारी गाँव में हमने देखा कि बड़ा देव की पूजा के बाद आरती हो रही थी. यह आदिवासी भारत में कुछ अलग था. आदिवासी समुदायों या फिर गोंड समुदाय में भी पहले हमें यह देखने का मौक़ा नहीं मिला था.

हारमोनियम और ढोलक का इस्तेमाल भी कुछ नया ही नज़र आ रहा था. ऐसा लगता है कि गोंड समुदाय भी अब एक संगठित धर्म के तौर पर अपनी पहचान बनाने के रास्ते पर है. 

बड़ा देव की पूजा के बाद गाँव के सभी लोग मिल कर खैर माई या खैर माता की पूजा के लिए बढ़ते हैं.खैर माता गोंड समुदाय के कई देवी देवताओं में से एक है.

आदिवासी देवी देवताओं और पुरखों की पूजा धन्यवाद ज्ञापन और समुदाय के कल्याण की धारणा के साथ की जाती है. मसलन आदिवासी समुदाय फ़सलों के अलावा जंगल, नदी और पहाड़ से अपनी जीविका जुटाता है.

इसलिए वह कुदरत को धन्यवाद करता है…उसके पर्व और पूजा इसी से जुड़े होते हैं. इसके अलावा परिवार और समुदाय को किसी आपदा, विपत्ति या बीमारी से बचाने के लिए भी पूजा की जाती है……

आदिवासी समुदायों की पहुँच भी धीरे धीरे अब आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं तक हो रही है. इन समुदायों में शिक्षा का प्रसार भी बढ़ रहा है. लेकिन ये समुदाय गाँव में किसी भी बीमारी के संकेत को अपने पुरखों की नाराज़गी से जोड़ते हैं.

मसलन अगर गाँव में हैज़ा, मलेरिया या फिर कोई और बीमारी फैलती है तो ग्राम पटेल, दीवान, कोटवार और अन्य सयाने लोग मिल कर चर्चा करते हैं और पुरखों को शांत करने के लिए पूजा की जाती है.

आदिवासी समुदाय के समाज की बनावट, उनकी प्रशासनिक व्यवस्था और परंपरागत नियम क़ानून …उनकी धार्मिक आस्था और जीवन दर्शन से गहरे जुड़े हुए हैं.

इसलिए इन धार्मिक आस्थाओं और जीवन दर्शन को समझे बिना आदिवासी समुदायों को समझना नामुमकिन है.

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