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अंडमान की ओंग जनजाति के राजा, रानी ने किया बच्चे का स्वागत

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की दुर्लभ जनजाति ओंग जनजाति (Onge tribe) की आबादी में वृद्धि हुई है. एक अधिकारी ने कहा कि अंडमान की ओंग जनजाति के राजा टोटोको (King Totoko) और रानी प्रिया (Queen Priya) ने सोमवार को जीबी पंथ अस्पताल में एक बच्चे का स्वागत किया, जिससे जनजाति की कुल आबादी 136 हो गई.

2.5 किलोग्राम वजनी बच्चे का जन्म शाम करीब 5.55 बजे सामान्य प्रसव से हुआ. आदिवासी कल्याण विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि टोटोको की यह आठवीं संतान है.

केंद्रीय जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने इस खबर पर खुशी जताते हुए कहा, “अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में ओंग जनजाति के एक नए सदस्य के आगमन की घोषणा करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है. मैं टोटोको और प्रिया को बधाई देता हूं. मैं स्थानीय प्रशासन को मां और बच्चे की अच्छी देखभाल करने का निर्देश दूंगा.”

मुंडा ने विभिन्न केंद्रीय योजनाओं के माध्यम से क्षेत्र में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) की रक्षा के लिए चल रहे प्रयासों पर भी प्रकाश डाला.

अस्पताल के सूत्रों ने पुष्टि की कि मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं. अस्पताल के एक वरिष्ठ स्टाफ सदस्य ने कहा, “हमने उन्हें आदिवासी वार्ड में निगरानी में रखा है और उन्हें एक या दो दिन में छुट्टी दे दी जाएगी.”

बच्चे के जन्म पर पूरे ओंग समुदाय में खुशी का माहौल है.

1858 में अंग्रेजों द्वारा दंडात्मक बंदोबस्त की स्थापना के बाद से महामारी, शराब के बदले में शोषण और अंग्रेजों के साथ टकराव के कारण ओंग, जारवा, शोम्पेन, ग्रेट अंडमानी और सेंटिनलीज जैसी आदिम जनजातियों की आबादी में भारी गिरावट आई है.

ओंग जनजाति

ओंग समुदाय ने एक समय पूरे लिटिल अंडमान पर कब्ज़ा कर लिया था लेकिन अब वे दो सेटलमेंट : डुगोंग क्रीक और साउथ बे में बसे हैं.

ओंग जनजाति ने लंबे समय तक अपनी ताकत और आक्रामकता से बाहरी दुनिया के संपर्क से खुद को बचा कर रखा.

लेकिन शुरुआत में वे अंग्रेजों के संपर्क में आए जिन्होंने द्वीप पर नियंत्रण पाने के लिए ही उनसे मित्रता की. ओंग जनजाति के साथ संपर्क स्थापित करने में अंग्रेज़ों को 1885 में पहली बड़ी सफलता मिली जब 24 आदिवासियों को पकड़ लिया गया. इन्हें जारवा समझकर पकड़ा गया था लेकिन बाद में पता चला कि वो ओंग जनजाति से हैं और कछुओं के अंडों की तलाश में लिटिल अंडमान से निकले थे. इनमें से 11 आदिवासियों को पोर्ट ब्लेयर लाया गया और बाक़ी को छोड़ दिया गया.

वहीं 1950 के बाद जब भारत सरकार ने शरणार्थियों को अंडमान द्वीप समूह में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया तो गैर-ओंग आबादी ने बसना शुरू कर दिया. ये गैर-ओंग आबादी बीमारियां लेकर आईं और द्वीपों के पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ दिया. परिणामस्वरूप ओंग की जनसंख्या घटने लगी.

अध्ययन बताते हैं कि ओंग जनजाति और ग्रेट अंडमानी जनजाति के लोग सबसे पहले बाहरी दुनिया के संपर्क में आए और इसका सबसे ज़्यादा नुकसान भी इन्हीं को झेलना पड़ा.

ओंग की भाषा जारवा जनजाति से मिलती-जुलती प्रतीत होती है.

(Representative image.Credit: X/@TribalAffairsIn)

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