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जारवा जनजाति को वेस्ट कोस्ट पर किया गया शिफ़्ट, महामारी से बचाने के लिए ज़रूरी था

अंडमान में जारवा जनजाति के लोगों को वेस्ट कोस्ट पर शिफ़्ट कर दिया गया है. कोविड-19 संक्रमण से इस जनजाति को जारवा रिज़र्व के अंदर ही दूसरे हिस्से में ले जाया गया है.

अंडमान प्रशासन को ने जारवा लोगों को बाहरी संपर्क से बचाने के लिए उठाया है. 

प्रशासन ने कहा है कि जारवा रिज़र्व से हो कर गुज़रने वाले अंडमान ट्रंक रोड़ (Andaman Trunk Road) के आस-पास जारवा ना आ सकें इसलिए यह कदम उठाया गया है.

प्रशासन का कहना है कि एटीआर पर किसी भी यात्री के संपर्क से जारवाओं को बचाने के लिए यह कदम ज़रूरी था.

जंगल, अंडमान और निकोबार आदिम जनजातीय विकास समिति और पुलिस कर्मी जारवा रिज़र्व में संयुक्त गश्त भी की जा रही है.

इसके अलावा प्रशासन का मछली पालन विभाग भी मछुआरों को जागरूक कर रहा है कि वो जारवाओं या दूसरी आदिम जनजातियों से संपर्क ना करें.

इस काम के लिए मछुआरों के संगठनों के साथ जागरूकता शिविर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. 

अंडमान प्रशासन ने कहा है कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की सभी जनजातियाँ पूरी तरह से सुरक्षित हैं. इन आदिम जनजातियों को वायरस से बचाने के लिए सभी उपाय किए गए हैं. 

लिटिल अंडमान के ओंग

प्रशासन ने यह भी जानकारी दी है कि ग्रेट अंडमानी जनजाति के लोगों को भी स्ट्रेट आइलैंड में शिफ़्ट कर दिया गया है. अंडमान प्रशासन ने यह भी दावा किया है कि कोविड-19 के बारे में रोकथाम, संरक्षण और देखभाल के लिए सख़्त दिशा निर्देश जारी कर दिए गए थे. 

प्रशासन ने सभी फ़ील्ड वर्कर्स को सेनेटरी किट, मास्क उपलब्ध कराए हैं. इन फ़ील्ड वर्कर्स को निर्देश दिए गए हैं कि जब वो जारवा या दूसरी जनजाति के लोगों के संपर्क में आएँ तो दस्ताने और मास्क ज़रूर पहनें. 

प्रशासन ने कहा है कि इन जनजातियों को राशन वितरण के दौरान भी उचित दूरी बना कर रखने को कहा गया है. प्रशासन ने सभी ज़रूरी दवाओं , सैनिटाइज़र, मास्क, थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर और कपड़ों जैसी ज़रूरी चीजों का पर्याप्त स्टॉक रखा है. 

अंडमान निकोबार द्वीप समूह में जारवा के अलावा ग्रेट अंडमानी, ओंग, शोम्पेन, सेंटेनली और निकोबारी जनजाति के लोग रहते हैं. इन जनजातियों में से निकोबारी जनजाति तो छोड़ दें तो यह माना जाता है कि ये अभी पाषाण युग (Stone Age) में ही रह रही हैं.

इन्हें भारत सरकार पीवीटीजी या आदिम जनजाति कहती है. इन आदिवासियों से बाहरी लोगों के संपर्क पर पाबंदी है. क्योंकि यह माना जाता है कि बाहरी संपर्क से इन आदिवासियों को ऐसी बीमारी मिल सकती हैं जो हमारे लिए बेशक मामूली हैं, पर उनके लिए जान लेवा साबित हो सकती हैं. 

अंडमान और निकोबार के अलावा भी देश के अलग अलग राज्यों में कई जनजातियाँ हैं जिन्हें पीवीटीजी यानि आदिम जनजातियाँ कहा जाता है.

इन जनजातियों की कुल संख्या 75 है. इन जनजातियों में ओडिशा की बोंडा जनजाति में कोरोना वायरस फैलने की ख़बर आई थी.

हालाँकि प्रशासन का दावा है कि सही समय पर उठाए गए कदमों की वजह से बोंडा आदिवासियों में किसी सदस्य की मौत नहीं हुई है. 

देश की आदिम जनजातियों पर कोविड-19 के प्रभावों की जानकारी देते हुए जनजातीय कार्य मंत्रालय की तरफ़ से यह जानकारी दी गई है. 

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