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मटना ची भाजी और अम्बाड़ी दाल, वारली दावत की ख़ासियत

महाराष्ट्र के पालघर ज़िले में हमने वारली आदिवासी समुदाय के साथ कई दिन बिताए. इस दौरान उनके कई गाँवों में जाना और रहना हुआ. हमने इन आदिवासियों की ज़िंदगी को थोड़ा क़रीब से देखा और समझा.

पालघर की तहसील डाहणू की अपने आप में एक रोचक कहानी है. मसलन यह एक आदिवासी बहुल इलाका है. लेकिन यहाँ पारसी समुदाय की जड़ें भी गहरी हैं. यहाँ की भाषा और खान-पान पर भी पारसी समुदाय का असर मिलता है.

जब हम पालघर के वारली आदिवासियों से मिले तो हमें उनके रीति रिवाज भी समझने का मौक़ा मिला. उनके शादी ब्याह कैसे होते हैं, उनके उत्सव या पर्व कैसे मनाए जाते हैं. यहाँ के एक गाँव झारली पाड़ा में हमने वारली आदिवासी समुदाय की एक दावत में भी हिस्सा लिया.

हमने देखा कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में संघर्ष करने वाले ये आदिवासी उत्सव मनाते हैं तो सभी परेशानियों को भूल जाते हैं. सामूहिकता और सहयोग इस समाज की ख़ासियत है. नए ज़माने के चलन का असर इस समुदाय के उत्सव मनाने के अंदाज़ पर भी पड़ा है.

वैसे ही खान-पान पर भी वह असर नज़र आता है. मसलन खाने में प्याज़-टमाटर तेल का कम ही सही पर इस्तेमाल होता है. लेकिन एक बात है जो प्रभावित करती है, वो है सामुदायिक सहयोग.

यहाँ जो हो रहा था उसे देख कर अच्छा लग रहा था. नए ज़माने की सुविधाओं के साथ मिल जुल कर काम करना, मन को खुश कर देता है. हम दावत वाले घर सुबह ही पहुँच गए थे.

यहाँ हमने देखा की गाँव की महिलाएँ और लड़के लड़कियाँ मौजूद थे. सबने मिल कर खाना बनाने की तैयारी शुरू की. लड़कियाँ लड़के सब मिल कर काम कर रहे थे. औरतों ने सब्ज़ियाँ और मटन काटते समय गीत गाने शुरू कर दिए थे.

गीत वारली भाषा के थे, शब्द तो हमारी समझ में नहीं आ रहे थे. लेकिन अंदाज़ा लगा रहे थे कि कुछ उनकी ज़िंदगी में आ रहे बदलावों की बात हो रही है. हंसते खेलते दोपहर के लिए खाना तैयार कर दिया गया.

औरतों ने ही सारा खाना बनाया था. लेकिन ऐसा नहीं था कि मर्द सहयोग नहीं कर रहे थे. यह भी नहीं था कि जो खाते पीते घर की औरतें हैं वो सिर्फ़ हल्के काम करेंगी. हमने देखा की गाँव के एक संपन्न परिवार की औरत लकड़ियों का बोझा अपने सिर पर लेकर आई थी.

लड़के और लड़कियाँ पानी ढो रहे थे. खाना बनते हुए आप इस स्टोरी में उपर दिए वीडियो में देख सकते हैं. लेकिन इस दावत में जो हमने महसूस किया उस फ़ीलिंग को शेयर करना शब्दों में कठिन है.

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