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हमारी पहचान सिर्फ़ आदिवासी है, धर्म कोड को मान्यता देनी होगी

दिल्ली में गुरूवार को कई राज्यों के आदिवासी प्रदर्शन के लिए जमा हुए. ये आदिवासी असम, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल से यहाँ पहुँचे थे. यह प्रदर्शन आदिवासियों की अलग धार्मिक पहचान को क़ानूनी मान्यता देने की माँग के समर्थन में किया गया था. 

दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने वाले आदिवासी कार्यकर्ताओं और नेताओं का कहना था कि अगली जनगणना में आदिवासियों की धार्मिक पहचान का कॉलम जोड़ा जाना चाहिए. इस सिलसिले में कई आदिवासी संगठन सरना धर्म कोड बनाए जाने की माँग कर रहे हैं.

झारखंड और पश्चिम बंगाल सरकार इस मामले में केंद्र सरकार को अपनी सिफ़ारिश भी भेज चुकी हैं. जंतर मंतर पर हुए इस प्रदर्शन का नेतृत्व पूर्व सांसद और बीजेपी के आदिवासी नेता सलखान मूर्मु ने किया. उनका कहना था कि आदिवासी ना तो ईसाई है और ना ही वो हिन्दू है. उसकी एक ही पहचान ‘आदिवासी’ है.

न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के हवाले से छपी ख़बरों में बताया गया है कि सलखान मूर्मु ने दावा किया है कि सरना धर्म कोड बनवाने के लिए आंदोलन तेज़ किया जाएगा. जंतर-मंतर पर जमा हुए आदिवासियों ने अपनी परंपराओं के अनुसार अपने पुरखों और देवताओं की पूजा अर्चना भी की थी.

जंतर-मंतर पर जमा हुए आदिवासियों में से ज़्यादातर संताल आदिवासी समुदाय के लोग बताए गए हैं. सलखान मूर्मु ने बताया कि जंतर मंतर पर जमा हुए आदिवासी 5 राज्यों के 250 आदिवासी बहुल ब्लॉक से जमा हुए थे. ये प्रदर्शनकारी जिन राज्यों से आए थे उनमें बिहार, झारखंड, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और असम के लोग शामिल थे.

सरना धर्म कोड की माँग के दार्शनिक आधार को समझने के लिए यह ग्राउंड रिपोर्ट देख सकते हैं.

सलखान मूर्मु का कहना था कि आदिवासी समुदायों के अपने देवी देवता हैं. इसके साथ ही आदिवासी समाज का अपना अलग धर्म और परंपरा है. उन्होंने कहा कि वो आदिवासियों के सरना धर्म को क़ानूनी मान्यता देने की माँग को लेकर राष्ट्रपति से मिलना चाहते थे.

लेकिन राष्ट्रपति भवन से उन्हें समय ही नहीं दिया गया. अंततः उन्होंने पुलिस के माध्यम से राष्ट्रपति के नाम प्रदर्शनकारियों की तरफ़ से एक ज्ञापन सौंपा था. उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदायों के धर्म को क़ानूनी मान्यता ना दिए जाने के कारण आदिवासी समाज के लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए बहकाया जाता है.

सरना धर्म की माँग के लिए ओड़िशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम के कई आदिवासी संगठन आंदोलन कर रहे हैं. झारखंड की विधान सभा ने सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पास भी किया है.

पश्चिम बंगाल सरकार का भी कहना है कि उसने केंद्र सरकार से सरना धर्म को मान्यता देने की सिफ़ारिश की है. लेकिन केंद्र सरकार इस मसले पर चुप्पी साधे है.

कोविड की वजह से 2021 की जनगणना टल गई थी. लेकिन अब स्थिति सामान्य हो रही है और जनगणना का काम शुरू हो सकता है. इसलिए आदिवासी संगठन इस माँग को और तेज़ कर सकते हैं. 

सरना धर्म को आदिवासियों के धर्म के तौर पर मान्यता देने में कुछ पेचीदा मसले हैं. क्योंकि सरना धर्म को सभी आदिवासी समूह स्वीकार नहीं करते हैं. गोंड, भील और कई दूसरे आदिवासी समुदाय अपने अपने अलग धर्म को मानते हैं.

लेकिन सरना धर्म की माँग करने वाले संगठनों का कहना है कि इस मसले को आसानी से सुलझाया जा सकता है. सरकार चाहे तो आदिवासी धर्म कोड ला सकती है जिसमें अलग अलग इलाक़े के आदिवासी समूहों की मान्यता के हिसाब से धर्म कोड को उसमें शामिल किया जा सकता है. 

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