लोकसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र में गोंड गोवारी समुदाय (Gond Gowari community) के आरक्षण की मांग तेज हो रही है.
सोमवार को गोंड गोवारी ने अपनी मांग को लेकर करीब 10 घंटे तक नागपुर की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया.
गोवारी समुदाय की राज्य सरकार से लंबे समय से यह मांग रही है की उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) की श्रेणी में शामिल किया जाए.
उन्होंने राज्य सरकार को अपनी मांग पूरी करने के लिए 12 फरवरी तक का समय दिया है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा है कि अगर उनकी यह मांग पूरी नहीं की गई, तो वे अपना आंदोलन तेज़ करेंगे. साथ ही उन्होंने नागपुर समेत विदर्भ के प्रमुख शहरों को बंद करने की भी धमकी दी है.
हालांकि सोमवार देर शाम महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के हस्तक्षेप के बाद समुदाय ने अपना यह प्रदर्शन बंद कर दिया था. फडणवीस ने गोंड गोवारी समुदाय को 10 फरवरी को मुंबई में बातचीत करने का निमंत्रण भेजा है.
गोंड गोवारी समुदाय 1985 से पहले और फिर 2018 से 2020 तक आरक्षण का लाभ उठा रहे थे. लेकिन 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में गोवारियों के आरक्षण से संबंधित लिए गए फैसले में रोक लगा दी.
इसी संदर्भ में वरिष्ठ गोवारी सदस्य शालिक नेवारे बताते है की सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गोवारी समुदाय के छात्रों और युवाओं को बहुत परेशानी हो रही है.
उन्होंने कहा कि हमारे समाज के कई बच्चों को जब पूरी फीस देने के लिए कहा गया तो कई छात्र-छात्राओं ने बीच में ही कॉलेज छोड़ दिया.
उन्होंने कहा, “हम सिर्फ अपने 10 लाख नागरिकों के लिए लाभ वापस पाना चाहते हैं और जब तक सरकार हमारा आवेदन स्वीकार नहीं कर लेती तब तक हम पीछे नहीं हटेंगे.”
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गोवारी का आरक्षण संघंर्ष
ब्रिटिश काल के दस्तावेजों के मुताबिक गोंड गोवारी मुख्य रूप से पशुपालक हैं जो मध्य भारत में रहते थे.
लगभग 60 साल पहले गोंड गोवारी समुदाय अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल होने के बहुत करीब पहुंच गए थे. विधेयक को संसद में पेश किया जाना था लेकिन तब सत्र स्थगित हो गया. यह बात 1967 की है, तब से गोवारी समुदाय के लोग एसटी सूची में शामिल होने और आरक्षण लाभ प्राप्त करने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
नवंबर 1994 में नागपुर के विधान भवन तक गोवारी समुदाय ने अपनी मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान इन पर लाठीचार्ज हुई, जिसके कारण भगदड़ उत्पन्न हुई और इस भगदड़ में 100 से अधिक गोवारियों की मौत हो गई.
फिर 2018 में गोवारी समाज के लिए एक आशा की किरण उत्पन्न हुई, जब नागपुर हाई कोर्ट ने उन्हें सूची में शामिल करने की मांग पर अपनी हामी भरी. हालांकि 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी.
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गोवारी और गोंड गोवारी में अंतर
भारत में कोई भी जनजाति तब तक आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकती जब तक कि वह केंद्र के संविधान अनुसूचित जनजाति आदेश 1950 की सूची में शामिल न हो.
इस सूची में नामों को शामिल करने या बाहर करने के लिए संसद द्वारा समय-समय पर संशोधन किया जाता है.
गोवारियों के लिए समस्या इसलिए पैदा हुई क्योंकि केंद्र की इस सूची में गोवारियों के लिए कोई अलग प्रविष्टि नहीं है.
1956 में, “गोंड गोवारी” शब्द को सूची में शामिल किया गया, जिसके बाद गोवारियों को गोंड समुदाय की एक उप-जनजाति/जाति माना जाने लगा.
ऐसा माना जाता है की गोंड-गोवारी गोंड और गोवारी समुदाय से संबंध रखते थे, जो अब अस्तित्व में नहीं हैं.
यहां तक कि 2018 में नागपुर हाई कोर्ट ने भी सरकारी रिकॉर्ड के आधार पर सहमति व्यक्त की है कि 1911 के बाद से अभिलेखों में गोंड-गोवारी का कोई उल्लेख नहीं है.
लेकिन फिर भी गोवारी समुदाय के सदस्य जो एसटी सूची में शामिल होना चाहते है, उन्हें अधिकारियों के सामने गोंडों के साथ अपनी निकटता साबित करनी पड़ती है.
इसी समस्या को ठीक करने के लिए आदिवासी गोवारी जमात संगठन समन्वय समिति (महाराष्ट्र) ने केंद्र की सूची में ‘गोवारी’ शब्द को एक अलग प्रविष्टि के रूप में शामिल करने की कोशिश की थी.
जिसका प्रमाण 1967 और 1979 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा भेजे गए प्रस्ताव में देखने को मिल जाता है, लेकिन दोनों ही समय यह प्रस्ताव संसद तक नहीं पहुंच सका. गोवारी समाज का यह संघंर्ष आज तक खत्म नहीं हुआ है.