Mainbhibharat

आदिवासियों की केरल में बड़ी जीत, सरकार ने रद्द की अदिरपल्ली जलविद्युत परियोजना

केरल सरकार ने त्रिशूर ज़िले में चालकुडी नदी बेसिन पर प्रस्तावित 163 मेगावाट अदिरपल्ली जलविद्युत परियोजना को रद्द कर दिया है.

जैव विविधता से भरे जंगल में निर्माण के खिलाफ़ पर्यावरणविदों, जंगल में रहने वाले आदिवासियों औऱ आदिवासी संगठनों के बढ़ते विरोध के बीच यह फैसला आया है.

प्रस्तावित परियोजना के निर्माण क्षेत्र से पेड़ों को काटने और हटाने के लिए केरल राज्य बिजली बोर्ड (KSEB) द्वारा लगभग दो दशक पहले जमा किए गए 4.11 करोड़ रुपये वन विभाग अब लौटा देगा. विभाग और बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों की एक उच्च स्तरीय बैठक में रक़म के तत्काल हस्तांतरण का फ़ैसला लिया गया है.

वन अधिकारियों ने केएसईबी निदेशक बोर्ड को यह भी बताया कि वैकल्पिक वनीकरण के लिए जमा की गई 1.14 करोड़ रुपये की एक और राशि भी जल्द ही लौटा दी जाएगी.

परियोजना रिपोर्ट के अनुसार, निर्माण शुरू करने के लिए वन विभाग को इलाक़े से 15,145 विशाल पेड़ काटने पड़ते, कम से कम 136 हेक्टेयर जंगल की ज़मीन जलमग्न हो जाती, और सैकड़ों आदिवासी बेघर हो जाते.

डाउन टू अर्थ के मुताबिक़ अदिरपल्ली और वाझचाल गांवों के निवासी, जो अपनी ज़मीन और घरों के जलमग्न होने के ख़तरे का सामना कर रहे थे, इस फ़ैसले से खुश हैं और इसका स्वागत किया है.

काडर आदिवासी लंबे समय से परियोजना का विरोध कर रहे हैं

चालकुडी नदी संरक्षण मंच के एस.पी. रवि का कहना है कि पैसा लौटाने का क़दम इशारा करता है कि केएसईबी ने स्थायी रूप से परियोजना को रद्द कर दिया है. अगर सरकार इसे फिर से शुरु करने के बारे में सोचती है तो उसे पूरी प्रक्रिया फिर से शुरु करनी होगी. पर्यावरण मंजूरी फिर से लेनी होगा, और एक नया पर्यावरण प्रभाव अध्ययन किया जाएगा.

आदिवासी समुदाय इसे मज़बूत संगठित लॉबी पर जीत के रूप में देखते हैं. अदिरपल्ली की आदिवासी नेता और केरल में किसी आदिवासी समूह की पहली महिला प्रमुख, गीता वीके कहती हैं, “इन जंगलों और उनकी जैव विविधता की रक्षा के लिए बांध के पक्ष में खड़ी एक मज़बूत लॉबी से 1996 से ई लड़ रहे हम लोगों के लिए यह बड़ी राहत है.”

स्थानीय आदिवासी समुदायों को पिछले कुछ दशकों में कई बार विकास से संबंधित परियोजनाओं के लिए विस्थापित होना पड़ा है.

पिछले साल जून में, केरल सरकार ने भारी पर्यावरण और आजीविका से जुड़े मुद्दों को दरकिनार करते हुए केएसईबी से परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए कहा था. आदिवासी कहते हैं कि इस तरह के सरकार के आदेश वन अधिकार अधिनियम के कई हिस्सों की अनदेखी करते हैं.

अधिनियम के अनुसार प्रभावित होने वाले आदिवासी लोगों की स्वीकृति के बिना बांध का निर्माण नहीं किया जा सकता. अब यह आदिवासी इस बात से खुश हैं कि सरकार ने ज़मीनी हकीकत को आखिरकार समझ लिया है.

केएसईबी का मानना है कि यह प्रस्तावित पनबिजली परियोजना राज्य में तीसरी सबसे बड़ी परियोजना होती. हालाँकि, शुरुआत से ही संरक्षणवादियों और नदी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि इसके लागू होने पर पश्चिमी घाट में बचे हुए इकलौते रिपेरियन वन जलमग्न हो जाएंगे. यह पर्यावरण को बड़ा झटका होता.

अदिरपल्ली वॉटरफ़ॉल एक मशहूर पर्यटन केंद्र है

माधव गाडगिल के नेतृत्व वाली WGEEP ने एक विस्तृत रिपोर्ट में, अदिरपल्ली जलविद्युत परियोजना को ‘undesirable’ करार दिया था. रिपोर्ट में कहा गया था, “अदिरपल्ली बांध में बोर्ड द्वारा दावा की गई बिजली पैदा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है. अगर इसे लागू किया जाता है तो परियोजना डाउनस्ट्रीम सिंचाई योजनाओं और अदिरपल्ली वॉटरफ़ॉल को प्रभावित करेगा.”

केएसईबी के अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि नदी में इतनी बिजली पैदा करने के लिए पर्याप्त पानी है ही नहीं. पिछले चार दशकों में जलवायु परिवर्तन और वनों की कटाई ने नदी के जल स्तर को काफ़ी कम कर दिया है.

गाडगिल रिपोर्ट में भी स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यह परियोजना चालकुडी नदी की नाजुक पारिस्थितिकी को नष्ट कर देगी, और काडर समुदाय की आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी. यहां तक ​​कि जो लोग जलमग्न इलाक़ों से बाहर रहते हैं वो भी प्रभावित होंगे.

Exit mobile version