HomeAdivasi Dailyविस्थापन के ख़िलाफ़ डटे आदिवासी, सामुदायिक वन अधिकार बना हथियार

विस्थापन के ख़िलाफ़ डटे आदिवासी, सामुदायिक वन अधिकार बना हथियार

आदिवासी समूह की पहली महिला प्रमुख, गीता वीके कहती हैं, “ये हमारे जंगल हैं, और हम इन्हें छोड़कर बाहर नहीं जाएंगे. हम यहीं रहेंगे और वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग करके इस जंगल की रक्षा करेंगे.”

केरल के काडर आदिवासी समुदाय ने केरला स्टेट इलेक्ट्रीसिटी बोर्ड यानि केएसईबी की एक जल विद्युत परियोजना के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है. उनका कहना है कि केरल में दूसरा कोई समुदाय नहीं है जिसको विकास के नाम पर इतनी बार विस्थापन और अनिश्चितता का सामना करना पड़ा हो. केरल में किसी आदिवासी समूह की पहली महिला प्रमुख, गीता वीके कहती हैं, “ये हमारे जंगल हैं, और हम इन्हें छोड़कर बाहर नहीं जाएंगे. हम यहीं रहेंगे और वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग करके इस जंगल की रक्षा करेंगे.”

एफ़आरए का उल्लंघन

केएसईबी को इस जल विद्युत परियोजना के लिए अनक्कायम वन के कई पेड़ काटने होंगे. जब इन आदिवासियों को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया. अधिकारियों ने आश्वस्त किया कि काडर आदिवासियों की नौ बस्तियों की सहमति के बिना इलाक़े में इस तरह की कोई परियोजना लागू नहीं की जा सकती. फ़ॉरेस्ट राइट्स एक्ट के तहत इन बस्तियों के आदिवासियों को तमिलनाडु के मलक्कप्पारा से लेकर अदिरपल्ली के बीच के जंगलों पर सामुदायिक वन अधिकार (सीएफ़आर) हासिल हैं.

आजीविका पर असर

इस जल विद्युत परियोजना से कम से कम चार काडर बस्तियां प्रभावित होंगी. यह समूह विस्थापित हो जाएंगे, और उनकी आजीविका पर असर पड़ेगा. अधिकारी भी मानते हैं कि यह परियोजना काडर बस्तियों के काफ़ी क़रीब है, और इसके लिए शुरुआती चरण में ही 20 एकड़ से ज़्यादा वन भूमि को साफ़ करने की ज़रूरत होगी. अनक्कायम वन भूमि पर काडर आदिवासी पूरी तरह से निर्भर हैं. सभी नौ बस्तियां मामूली वन उपज इकट्ठा करके ही अपना जीवन व्यापन करती हैं. 

केएसईबी का कहना है कि परियोजना को आठ साल पहले केरल वन विभाग द्वारा दी गई सहमति के आधार पर लागू किया जा रहा है. इन नौ काडर बस्तियों के सीएफ़आर समन्वय समिति की सचिव, अजिता वी के अनुसार केएसईबी के इस क़दम से क्षेत्र में रहने वाली सभी जनजातियों को झटका लगा है क्योंकि परियोजना शुरू होते ही इन्हें यहां से जाना होगा. अजिता ने अब केएसईबी के सीएफ़आर और एफ़आरए का उल्लंघन करने वाले इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ केरल उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है. अपने अंतरिम आदेश में उच्च न्यायालय ने केएसईबी को निर्देश दिया है कि काडर द्वारा दायर मामले पर अंतिम निर्णय लेने तक क्षेत्र से किसी भी पेड़ को न काटा जाए. 

मलयालम में काडर का अर्थ है वनवासी. यह आदिवासी छोटे समुदायों में रहते हैं, और खानाबदोश जीवनशैली का पालन करते थे, लेकिन अब खेती करते हैं. फ़िलहाल केरल में इनकी जनसंख्या 1,848 है, जिनमें से 90 प्रतिशत अनक्कायम क्षेत्र की नौ बस्तियों में रहते हैं.

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