HomeAdivasi Dailyआदिवासी छात्र को पेंशनभोगी महिला से मिली आर्थिक मदद

आदिवासी छात्र को पेंशनभोगी महिला से मिली आर्थिक मदद

हेबल प्रधान एमबीबीएस डॉक्टर बनना चाहता है. जिसके लिए उसने पिछले साल नीट की परिक्षा दी थी और उसे अब एसएलएन कॉलेज और हॉस्पिटल में दाखिला भी मिल रहा है. लेकिन समस्या ये है की ना ही हेबल और ना ही उसके माता-पिता के पास इतने पैसे है की वो उसकी एमबीबीएस की फीस भर पाए.

ओडिशा (Odisha) के कंधमाल जिले (kandhamal District) में रहने वाले एक आदिवासी लड़के (tribal youngster)की अटूट समर्पण, दृढ़ता और कड़ी मेहनत की चर्चा लगभग हर जगह हो रही है. इस लड़के का नाम हेबल प्रधान है.

दरअसल, हेबल MBBS डॉक्टर बनना चाहते हैं. जिसके लिए उन्होंने पिछले साल NEET की परिक्षा दी थी और उन्हें अब शहीद लक्ष्मण नायक मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में दाखिला मिल रहा है.

लेकिन समस्या ये है कि न तो हेबल और न ही उनके माता-पिता के पास इतने पैसे है की वो उनकी एमबीबीएस की फीस भर पाएं.

परिवार ने जैसे-तैसे फीस की कुछ रकम जुटा तो ली है लेकिन उनके पास अभी भी 85 हज़ार रुपये कम है.

ऐसे में हेबल ने कुछ दिन पहले सरकार से ये आग्रह किया था कि वे सरकारी योजना के तहत मिलने वाले पैसे को जल्द से जल्द उपलब्ध करवाए.

इसके लिए हेबल ने पिछले साल अक्टूबर में ही आवेदन कर दिया था, पर अभी तक इससे कुछ सफलता हासिल नहीं हुई है.

लेकिन अब उनके जीवन में एक उम्मीद की किरण उजागर हुई है. सरकार ने तो नहीं लेकिन कटक में पुलिस अस्पताल की सहायक मैट्रन साबित्री नायक (sabitri nayak helped tribal youngster of rupees 1 lakh) ने अपनी पेंशन से बची हुई रकम हेबल को देने का फैसला किया है.

जैसे ही साबित्री को हेबल के बारे में खबरों से पता चला, उन्होंने तुरंत अपने परिवार के सदस्यों से संपर्क किया और अपनी पेंशन से पैसे देने का फैसला किया.

साबित्री ने कहा, “मैंने अपने बेटे और पति को पैसे से हेबल की मदद करने की अपनी इच्छा के बारे में बताया और मेरा पूरा परिवार मेरे इस फैसले से बेहद खुश है.”

उनके बेटे ने आदिवासी युवक हेबल की मदद के लिए एक लाख रूपये उनके खाते में भेज दिए हैं.

साबित्री ने कहा कि उन्हें हेबल और उनके परिवार से एक धन्यवाद पत्र भी मिला है.

हेबल की कहानी

साल 2020 में हेबल ने अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी की थी. इस दौरान आए कोविड-19 महामारी के चलते वो अपने घर लौट आया और उसने खेती-किसामी में अपने परिवार की मदद की.

इसके बाद 2021 में अपने परिवार को वित्तीय सहायता देने के लिए वो हैदराबाद गया, जहां उसने एक ई कॉमर्स कंपनी में डिलीवरी बॉय का काम शुरू किया. इस काम के लिए उसे 10,000 से 13,000 रूपये प्रति माह मिला करते थे.

हेबल ने बताया कि उसने सात महीने में 25 हज़ार बचा लिए थे. जिसके बाद उसने ओडिशा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी (ओयूएटी) में एक कोर्स के लिए आवेदन किया और 2022 में वहां दाखिला ले लिया. लेकिन वित्तीय समस्याओं के कारण वे कोर्स जारी नहीं रख सके.

जिसके बाद निराश होकर वो फिर से डिलीवरी बॉय का काम करने लगा. लेकिन उसने फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ी और पिछले साल NEET की परीक्षा दी.

हेबल के पिता एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक के रूप में काम करते हैं, जिसके लिए उन्हें प्रति माह 7000 रूपये मिलते हैं और उनकी मां एक गृहिणी हैं.

उनका भाई एक सरकारी इंजीनियरिंग स्कूल में डिप्लोमा की पढ़ाई कर रहा है और उनकी बहन कंधमाल जिले के बालीगुडा कॉलेज में अंडरग्रेजुएट छात्रा है.

उसके माता-पिता ने किसी तरह लोन लेकर फीस का इंतज़ाम तो कर दिया था लेकिन फिर भी उनके पास 85 हज़ार रुपये कम थे. जिसके लिए हेबल ने सरकार से मदद की गुहार लगाई, लेकिन ये काम नहीं आया. अब सावित्री नायक हेबल की जिंदगी में उम्मीद की किरण बनकर आई हैं.

वहीं इस पूरी घटना से एक संदेह पैदा होता है कि क्या सरकार की योजनाएं जरूरतमंद की सहायता के लिए है?

Photo Credit:- Times of india

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