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झारखंड : लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार, कानून व्यवस्था और आदिवासियों के मुद्दे होंगे अहम

झारखंड में पलायन का मुद्दा एक लंबे समय से चुनौती बनी हुई है. सरकारें लगातार इसका प्रभावी समाधान करने के लिए संघर्ष कर रही हैं. पिछली सरकारों के प्रयासों के बावजूद जिसमें हेमंत सोरेन सरकार द्वारा शुरू की गई पहल भी शामिल है, पलायन बड़े पैमाने पर जारी है.

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने लोकसभा चुनाव 2024 में झारखंड में सभी 14 सीट को जीतने का लक्ष्य रखा है. वहीं विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने एनडीए की महत्वाकांक्षाओं को विफल करने के लिए अपने प्रयास तेज़ कर दिए हैं.

इस गहमागहमी वाले राजनीतिक परिदृश्य में कई कारक आगामी चुनावों के नतीजे को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जो इस प्रकार हैं :-

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी : झारखंड की भाजपा इकाई प्रधानमंत्री की छवि और उनकी नीतियों, खासकर उन कल्याणकारी योजनाओं को भुनाने की कोशिश करेगी, जिनसे देश और झारखंड के लोगों को फायदा हुआ है.

पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन : प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी आगामी लोकसभा चुनाव में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकता है.

झामुमो नीत सत्तारूढ़ गठबंधन गिरफ्तारी के पीछे राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाते हुए भाजपा पर उंगली उठा रहा है. सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद कथित भूमि धोखाधड़ी से जुड़े धनशोधन के मामले में 31 जनवरी को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया था.

भ्रष्टाचार : झारखंड ने हाल के वर्षों में भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण ध्यान आकर्षित किया है. इन आरोपों की वजह से ईडी और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा छापेमारी और जांच की एक लंबी सीरीज देखने को मिली.

पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत कई चर्चित नेता और भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)की अधिकारी पूजा सिंघल और छवि रंजन जैसे वरिष्ठ सरकारी अधिकारी इन जांच के दायरे में आए.

भाजपा मुख्य रूप से अवैध खनन और भूमि सौदों से संबंधित भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्तारूढ़ गठबंधन पर हमला करती रही है.

कानून और व्यवस्था : सामूहिक बलात्कार, हत्या, लूट और जबरन वसूली के मामलों में वृद्धि आगामी चुनावों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनकर उभर रहा है, खासकर झारखंड में विपक्ष के लिए.

हाल में एक विदेशी पर्यटक के साथ सामूहिक बलात्कार और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सुभाष मुंडा की हत्या ने राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति पर प्रकाश डाला है.

पलायन : झारखंड में पलायन का मुद्दा एक लंबे समय से चुनौती बनी हुई है. सरकारें लगातार इसका प्रभावी समाधान करने के लिए संघर्ष कर रही हैं. पिछली सरकारों के प्रयासों के बावजूद जिसमें हेमंत सोरेन सरकार द्वारा शुरू की गई पहल भी शामिल है, पलायन बड़े पैमाने पर जारी है. लाखों मजदूर दूसरे राज्यों में आजीविका तलाशने के लिए मजबूर हैं.

मानव तस्करी : झारखंड मानव तस्करी का गढ़ माना जाता रहा है. हर साल राज्य से नाबालिगों समेत हजारों लड़कियों की बड़े शहरों में तस्करी की जाती है, जहां वे घरेलू सहायिका के तौर पर काम करती हैं और उनमें से कई को यौन शोषण और घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है.

सरना धार्मिक संहिता : झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन ने लोकसभा चुनाव के दौरान कई प्रमुख मुद्दों को उठाने की तैयारी की है जिनमें पलायन की समस्या और आदिवासियों के लिए एक अलग धर्म के रूप में ‘सरना’ की मान्यता की मांग प्रमुख है.

झामुमो के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने नवंबर 2020 में विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर जनगणना में सरना को एक अलग धर्म के रूप में शामिल करने की मांग की थी. झामुमो ने भी राष्ट्रपति को पत्र लिखकर सरना को अलग धर्म बनाने में हस्तक्षेप की मांग की है.

1932 का खतियान : 1932-खतियान (भूमि बंदोबस्त) आधारित अधिवास नीति एक और प्रमुख मुद्दा है जिसके जरिए ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक भाजपा को घेरने की कोशिश करेंगे.

झारखंड सरकार ने 1932-खतियान आधारित अधिवास नीति को राज्य विधानसभा में पारित कर दिया है लेकिन यह राज्यपाल के पास लंबित है.

सत्ता विरोधी लहर : राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक समाज का एक वर्ग पिछले पांच वर्ष में कुछ सांसदों के प्रदर्शन से असंतुष्ट है. लोगों का मानना है कि पिछले पांच वर्ष में जीवन से जुड़े बुनियादी मुद्दे अनसुलझे रह गए हैं.

बेरोजगारी : युवाओं के लिए विशेष तौर पर यह एक बड़ा मुद्दा रहा है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक राज्य नौकरी के अवसरों के मामले में पिछड़ा हुआ है.

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