तेलंगाना के खम्मम जिले में 18 महिलाओं सहित 21 आदिवासी किसानों को जेल भेज दिया गया. पुलिस हिरासत में लिए गए लोगों में तीन दुध पीते बच्चों की मां भी शामिल हैं.
वहाँ मौजूद लोगों ने बताया कि ए रानी, नाम की महिला जिसे भी हिरासत में लिया गया था, अपनी एक साल की बेटी को गोद में लिए हुए देखी गई.
इन आदिवासी किसानों को पोडु भूमि के मसले पर वन अधिकारियों के साथ गतिरोध के बाद हिरासत में लिया गया. जानकारी मिली है कि कुछ किसानों को गुरूवार तो कुछ को शुक्रवार को ग़िरफ़्तार किया गया है.
पुलिस ने कई गंभीर धाराओं में इन आदिवासी किसानों पर मामले दर्ज किए हैं. इन मामलों में पुलिस ने हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर किसानों व उनके परिजनों को गिरफ्तार कर लिया है.
आदिवासी किसानों का कहना है जिस भूमि पर वो दशकों से खेती कर रहे हैं उसे वन विभाग ज़बरदस्ती छीन रहा है. खम्मम के येल्लाना नगर गांव के किसानों ने वन विभाग के अधिकारियों को इस कोशिश से रोका था. इसको लेकर दोनों गुटों में कहासुनी हो गई.
इसके तुरंत बाद, वन अधिकारियों ने पुलिस से संपर्क किया, जिन्होंने आदिवासी किसानों के खिलाफ आईपीसी की धारा 307, 353 और 158 आर/डब्ल्यू 149 के तहत मामला दर्ज किया.
स्थानीय पत्रकारों ने बताया है कि इस मामले के संबंध में कुल 23 किसानों पर मामला दर्ज किया गया है. इनमें से 12 को गुरुवार को, नौ को शुक्रवार को पकड़ा गया. पुलिस के अनुसार इस मामले में अभी दो लोग फरार हैं.
राज्य प्रायोजित मेगा वृक्षारोपण अभियान के कारण, वन विभाग 20 हेक्टेयर भूमि को साफ करने के लिए गांव पहुंचा. यहाँ किसानों की कपास और ज्वार की फसल खड़ी थी.
वन अधिकारियों द्वारा फसलों को नष्ट करने के बारे में जानने के बाद, महिलाएं और पुरुष खेत की तरफ़ दौड़ पड़े. इसके बाद दोनों ही पक्षों की तरफ़ से एक बहस छिड़ गई.
कई वर्षों से पारंपरिक रूप से जमीन पर खेती करने वाले किसानों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के लिए वन और पुलिस अधिकारियों की काफ़ी आलोचना भी हो रही है.
राज्य में कई विपक्षी दलों ने पुलिस और वन विभाग को किसानों के ख़िलाफ़ का करने का दोषी ठहराया है.
पोडु (वन) भूमि के मुद्दे पर किसानों और वन अधिकारियों के बीच पहले भी हिंसक झड़पें देखने को मिली हैं.
तेलंगाना में, वन क्षेत्रों के करीब भूमि पर पारंपरिक रूप से आदिवासियों द्वारा खेती की जाती रही है. यह देखा गया है कि हर साल खेती के मौसम के दौरान किसान समुदाय और अधिकारियों के बीच तनाव बन जाता है.
श्रीकाकुलम, विज़ियानगरम, विशाखापट्टनम, खम्मम के अलावा पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी में आदिवासी पोडु खेती करते हैं.
विशेषज्ञ कहते हैं कि पहले आदिवासी जंगल के एक हिस्से को साफ़ करके एक फ़सल लेते थे. इसके बाद कम से कम 20 साल बाद उस भूमि पर खेती की जाती थी.
इससे पर्यावरण का संतुलन और ज़मीन की उर्वरा बनी रहती थी. उस समय आदिवासी आबादी कम ही थी.
लेकिन आदिवासी आबादी बढ़ने के साथ ही पोडु भूमि पर दबाव बढ़ा है. अब यह चक्र 3 साल तक सिमट गया है. इसके साथ ही इस खेती की वजह से ज़मीन की उपजाऊ शक्ति भी कम हो रही है और जंगल का कवर भी कम हो रहा है.
विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि आज के ज़माने में पोडु खेती का कोई औचित्य नहीं है. क्योंकि इस तरह से की गई खेती से आदिवासी आबादी का भरण पोषण अब नहीं हो सकता है.
लेकिन इस बात का जवाब कौन दे कि पहाड़ी ढलानों पर खेती करने वाले आदिवासी किसानों के पास विकल्प क्या है.
आदिवासियों के खिलाफ यह वन अधिकारियोंं द्वारा किया गया निंदनीय कार्य है। आदिवासियों द्वारा उगाया हुआ यह फसल सभी देशवासियो के लिए होती है।उनके जीविका का एकमात्र तरीका फसल उगाकर निस्वार्थ रूप से सभी को भोजन उपलब्ध करता है, ये वही आदिवासी लोग है।
फसल को नुकसान पंहुचाना गलत है।
Ye sarasar adiwasi pr julm ho rha sarkar in logo pe dhayan de….