दक्षिण गुजरात के आदिवासियों को एक बड़ी जीत हासिल हुई है. आदिवासियों के कड़े विरोध के बाद, केंद्र सरकार ने बजट में प्रस्तावित पार-तापी-नर्मदा रिवर-लिंक परियोजना पर फिलहाल रोक लगा दी है.
परियोजना को रोकने का फैसला दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और गुजरात के आदिवासी सांसदों और विधायकों के साथ एक बैठक के बाद आया. इस बैठक में राज्य भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल भी शामिल थे.
द हिंदू के अनुसार गजेंद्र सिंह शेखावत ने राज्य के नेताओं को आश्वासन दिया है कि अगर गुजरात परियोजना को लेकर सहमत नहीं है, तो इसे लागू नहीं किया जाएगा.
उन्होंने बैठक में राज्य के नेताओं से कहा कि परियोजना शुरू करने के लिए गुजरात और महाराष्ट्र दोनों की सहमति बेहद जरूरी है, और एक राज्य भी सहमत नहीं है, तो परियोजना शुरू नहीं की जा सकती.
उधर, राज्य के भाजपा नेता आरोप लगा रहे हैं कि दक्षिण गुजरात में आदिवासियों को कांग्रेस पार्टी गुमराह कर रही है.

5,000 से ज्यादा आदिवासी गुजरात की राजधानी गांधीनगर में प्रस्तावित पार-तापी-नर्मदा नदी लिंक परियोजना का विरोध करने के लिए इकट्ठा हुए थे. आदिवासियों को डर है कि परियोजना से दक्षिण गुजरात के हजारों आदिवासी निवासी विस्थापित हो जाएंगे.
गांधीनगर में विरोध रैली आयोजित करने से पहले, हजारों आदिवासियों ने 18 मार्च को डांग में अपना कड़ा विरोध दर्ज किया था. अब तक, निवासियों ने परियोजना के विरोध में आधा दर्जन रैलियां और विरोध प्रदर्शन किए हैं.
उनका दावा है कि इस परियोजना से वलसाड, डांग और नवसारी जिलों के आदिवासियों की आजीविका नष्ट हो जाएगी.
केंद्र द्वारा प्रस्तावित परियोजना का मकसद सरदार सरोवर परियोजना के माध्यम से पश्चिमी घाट के ज्यादा पानी वाले इलाकों से सौराष्ट्र और कच्छ तक पानी ले जाने का प्लान था. इन इलाकों में पानी की कमी है.
परियोजना के प्रस्ताव
परियोजना के तहत सात बांधों से 395 किलोमीटर लंबी नहर के जरिए पानी ले जाने का प्रस्ताव था. सात बांधों में से एक महाराष्ट्र में, और बाकी छह गुजरात के वलसाड और डांग जिलों में स्थित होते.
विवादास्पद परियोजना तीन नदियों को जोड़ने की कोशिश करती है – पार, जो महाराष्ट्र के नासिक से निकलती है और गुजरात में वलसाड से होकर बहती है, तापी जो गुजरात में सापुतारा से निकलकर महाराष्ट्र और सूरत से होकर बहती है, और नर्मदा, जो मध्य प्रदेश से निकलती है और महाराष्ट्र और गुजरात में भरूच, नर्मदा और वडोदरा जिले से होकर बहती है.
राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) द्वारा तैयार की गई डीटेल्ड परियोजना रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र और गुजरात में प्रस्तावित बांधों के निर्माण से लगभग 6065 हेक्टेयर भूमि जलमग्न हो जाती.
कुल 61 गांव इससे प्रभावित होते, जिनमें से एक पूरी तरह डूब जाता, और बाकी 60 का कुछ हिस्सा डूब जाता. प्रभावित परिवारों की कुल संख्या लगभग 2,509 होगी.

विपक्ष का समर्थन
आदिवासियों के इस विरोध को विपक्षी कांग्रेस का समर्थन मिला है.
दक्षिण गुजरात के प्रमुख आदिवासी नेता, कांग्रेस विधायक अनंत पटेल ने कहा था कि वह किसी सूरत में परियोजना लागू नहीं होने देंगे.
विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासियों के बढ़ते विरोध के मद्देनजर राज्य सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि परियोजना पर काम शुरू करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है.
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